इस वक्त दुनिया के कई देशों हालात ठीक नहीं चल रहे हैं। किसी के बीच युद्ध जारी है तो किसी देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई है। सबसे ज्यादा बुरा हालात श्रीलंका का है। उसके बाद पाकिस्तान भी उसी डूबती नाव पर सवार हो चुका है। पाकिस्तान में तो आलम यह है कि, यहां पर सिर्फ 6-8 घंटों के लिए कई जगहों पर बिजली आ रही है। जिसके चलते ये बड़ा सकंट देश में है। महंगआई अपने रिकॉर्ड हाई पर है। अब यहां पर एक नया संकट शुरू हो गया है। जिसके बाद कहा जा रहा है कि, आने वाले दिनों में इसकी भरपाई नहीं हुई तो आत्महत्या की दर बढ़ सकती है।
पाकिस्तान की सत्ता से जब इमरान खान को हटाया गाया और शाहबाज शरीफ को पीएम पद पर बैठाया गया तो जनता को लगा था कि, उनकी समस्याएं खत्म होंगी। लेकिन, समस्याएं खत्म होने के बजाय और भी ज्यादा बढ़ गई। रिकॉर्ड हाई पर महंगाई के बीच यहां के कई शहरों में दवाओं की भारी कमी आ गई है। जिससे देश में आत्महत्या की दर में वृद्धि का भय पैदा हो रहा है। पाकिस्तान मीडिया की रिपोर्ट है कि जिस दवा से शहरों के बाजार सबसे ज्यादा जूझ रहे हैं, वो लिथियम कार्बोनेट है, जो मानसिक विकारों और इससे जुड़े रोगों में सबसे कारगार दवा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक और पाकिस्तान साइकियाट्रिक सोसाइटी (पीपीएस) के पूर्व अध्यक्ष ने इलाज के लिए सबसे प्रभावी दवा के रूप में काम वाले फॉर्मूलेशन का जिक्र करते हुए कहा, पिछले कुछ महीनों से लिथियम कार्बोनेट बेचने वाला कोई भी ब्रांड बाजार में उपलब्ध नहीं है। यह दवा मानसिक विकारों और इससे जुड़े रोगों में सबसे कारगर दवा मानी जाती है। इशके आगे रिपोर्ट में बताया गया है कि, इसी तरह बच्चों में अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटि डिसऑर्डर (एडीएचडी) के इलाज के लिए मिथाइलफेनिडेट और बच्चों और वयस्कों में मिर्गी के लिए क्लोनाजेपम ड्रॉप्स और टैबलेट सहित कुछ अन्य आवश्यक दवाएं भी बाजार में कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं।
इस्लामाबाद के एक अन्य वरिष्ठ फार्मासिस्ट, सलवा अहसान ने कहा कि लिथियम कार्बोनेट दवा पूरे देश में उपलब्ध नहीं थी, कच्चे माल की लागत बढ़ गई थी और इसलिए कंपनियां अब उनका निर्माण नहीं कर रही हैं। रिपोर्ट की माने तो, कराची, लाहौर और इस्लामाबाद में कई फार्मेसियों के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि टीबी, मिर्गी, पार्किंसंस रोग, अवसाद, हृदय रोग और अन्य के इलाज के लिए कई महत्वपूर्ण दवाएं उपलब्ध नहीं है। क्योंकि दवा कंपनियां उत्पादन की लागत बढ़ जाने से इनका उत्पादन नहीं कर रही है।