ब्रिटिश गृह सचिव सुएला ब्रेवरमैन ने यह कहकर बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है कि पीडोफ़ाइल यानी बच्चों के साथ यौन सम्बन्ध बनाने वाले गिरोहों के ‘ग्रूमिंग गैंग्स’ के “लगभग सभी” लोग ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुष थे, जिनका रवैया ब्रिटिश मूल्यों के साथ असंगत था और है।
ब्रेवरमैन ने स्काई न्यूज़ को बताया कि कुछ ब्रिटिश पाकिस्तानी बाल दुर्व्यवहार,यानी चाइल्ड एब्यूज़ नेटवर्क चला रहे थे और अधिकारी और नागरिक समाज राजनीतिक शुद्धता से आंख मूंदे हुए थे।” (हमें अक्सर देखने में मिलता है कि) कभी-कभी देखरेख और कभी-कभी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से जूझ रहीं संकटग्रस्त गोरी अंग्रेज़ लड़कियों का पीछा ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुषों के इस गिरोह द्वारा किया जाता है, ये लोग उनका बलात्कार तक किया जाता है, उन्हें नशा कराया जाता है और नुक़सान पहुंचाया जाता है। ऐसा करने वाले सब के सब बाल शोषण के गिरोह या नेटवर्क में काम करते हैं।”
Evil grooming gangs must never be able to prey on vulnerable children. @RishiSunak and I today launched a new taskforce to make sure child sex abusers have nowhere to hide and face the full force of the law.
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— Suella Braverman MP (@SuellaBraverman) April 3, 2023
वामपंथी दलों और ब्रिटिश मुसलमानों की तीखी आलोचना के बावजूद सरकार “इस तरह के अपराधों में शामिल ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुष गिरोहों के आसपास इस चुप्पी की संस्कृति” पर नये क़ानून बनाने बनाने जा रही है।
ब्रिटिश सरकार ने पुलिस के तहत एक विशेषज्ञ टास्क फोर्स का गठन किया है। इसके पीछे सख़्त सज़ा देने, एक नई हॉटलाइन स्थापित करने और उन भयानक अपराधों में शामिल अपराधियों की पहचान करने और उन्हें पकड़ने के लिए डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करने किये जाने की योजना है, जिन्होंने जीवन भर के लिए हज़ारों श्वेत ब्रिटिश लड़कियों को भयभीत कर रखा है।
I will do whatever it takes to root out grooming gangs once and for all.
Here's how 👇 pic.twitter.com/ZOLoMxippH
— Rishi Sunak (@RishiSunak) April 3, 2023
समझा जा सकता है कि कंज़र्वेटिव पार्टी की सरकार ने जिन शब्दों का इनके लिए इस्तेमाल किया है, उसके लिए उस पर हमला किया गया है। ब्रिटिश मीडिया ने आक्रामक और नस्लवादी होने को लेकर सरकार की आलोचना की है। सरकार का बचाव करते हुए सुनक ने मीडिया को बताया कि इन लड़कियों के यौन शोषण के अपराधियों को “सांस्कृतिक संवेदनशीलता और राजनीतिक शुद्धता के कारण अनदेखा किया गया है।”
ब्रिटिश समाज इस मुद्दे पर विभाजित है कि क्या ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुषों को 11 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों पर यौन हमलों के मामलों के लिए अलग-थलग किया जाना चाहिए, जिन्होंने न्यूकैसल, केघली, रॉदरहैम, रोचडेल, पीटरबरो, आयलेसबरी, ऑक्सफोर्ड और ब्रिस्टल जैसे शहरों को हिलाकर रख दिया है। कन्या शोषण का मुद्दा कम से कम 1997 से चल रहा है, लेकिन राजनीतिक शुद्धता, वामपंथियों के दबाव और नस्लवादी या इस्लामोफ़ोबिक क़रार दिए जाने के डर से अंग्रेज़ों द्वारा इस मामले पर चुप्पी साध ली गयी है।
ज़्यादातर मामलों में कम उम्र की लड़कियों के शोषण के दोषी पाए गए पुरुषों में दो अफ़्रीकियों के अलावा पाकिस्तानी मुस्लिम पुरुष भी शामिल होते थे। शोषण के मामले अलग-अलग जगह और अलग-अलग पीड़ितों के बीच अलग-अलग होते हैं, लेकिन अधिकांश में कम उम्र की गोरी लड़कियों को सिगरेट, ड्रग्स और पैसे देकर बलात्कार और वेश्यावृत्ति के लिए फ़ंसाना शामिल होता है।
Suella Braverman, UK Home Secretary is right to single out Pakistanis. They account for the vast majority of pedo-grooming gangs. Only a fool would think otherwise. Other groups are involved on a much lower level.
Speak to people in Birmingham, Bradford, Manchester,… pic.twitter.com/lWQgvq9gzK
— Imtiaz Mahmood (@ImtiazMadmood) April 2, 2023
गोरे लोगों के रूप में अपराधियों की नस्लीय पहचान को मिटाने या ‘एशियाई लोग’ शब्द के तहत भरमाने के प्रयासों के बावजूद यह मुद्दा सतह के नीचे उबलता रहा है। हाल ही में ब्रिटिश चैनल जीबी न्यूज़ ने एक डॉक्यूमेंट्री, ‘ग्रूमिंग गैंग्स: ब्रिटेन्स शेम’ जारी की, जिसमें इसने उन लड़कियों के साथ बातचीत की गयी थी, जिनके साथ बार-बार दुर्व्यवहार किया गया था और धर्मार्थ कार्यकर्ताओं से भी बात की गयी थी, जो लगातार इस दुर्व्यवहार के शिकार होने वाले बच्चों की सहायता करने के लिए काम करते थे।
इस डॉक्यूमेंट्री से यही पता चलता है कि इसके बारे में पहले से ही पता था,लेकिन जातीय पहचान ने दुर्व्यवहार करने वालों को क़ानून से बचाये रखा।
'If we don't, the same abuse will just keep happening.'
Charlie Peters calls for a national response into credible allegations of grooming gangs.@CDP1882 pic.twitter.com/zXzcII5k5e
— GB News (@GBNEWS) February 11, 2023
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इस डॉक्यूमेंट्री में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे मीडिया, देखभाल कर्मी, पुलिसकर्मी, परामर्शदाता और संपूर्ण ब्रिटिश प्रणाली राजनीतिक शुद्धता की ताक़त के ख़िलाफ़ ढहती रही है और शोषित बच्चों को दुर्व्यवहार करने वालों के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाता रहा है।
हाल ही में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रिवेंट रिपोर्ट की समीक्षा ने इस तथ्य को इंगित किया कि पाकिस्तान के उलेमाओं द्वारा धार्मिक घृणा को ईशनिंदा क़ानूनों जैसे विचारों के माध्यम से ब्रिटेन में निर्यात किया गया है। इस्लाम की कठोर व्याख्यायें ब्रिटिश मुस्लिम समाज में भी रिस रही हैं, या फिर सबको आत्मसात करने वाली उदार ब्रिटिश संस्कृति में वैमनस्य पैदा की जा रही हैं।
एक अलग ख़बर में ‘द गार्जियन’ ने एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की है कि कैसे पाकिस्तानी सेना ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लादेशी महिलाओं का नरसंहार किया था। एक मोड़ पर तो यह रिपोर्ट कहती है: “आधिकारिक अनुमान यही है कि जिन बंगाली महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया,उनकी संख्या 200,000 और 400,000 के बीच है, हालांकि कुछ लोगों द्वारा उन संख्याओं को भी दकियानुसी माना जाता है … हालांकि जातीय बलात्कार विभाजन के वर्षों पहले की विशेषता रही थी, जिसे बंगाली महिलाओं को भोगना पड़ा था। 20वीं शताब्दी में तो महिलायें “युद्ध में जानबूझकर किसी हथियार की तरह इस्तेमाल” की जाती रही हैं। लेकिन, इस चौंकाने वाले बड़े पैमाने के बावजूद, इस क्षेत्र के बाहर इसके बारे में बहुत कम जानकारी है…”
ब्रिटिश समाज भारी मंथन के दौर में है, क्योंकि यह नाव की लैंडिंग, सांस्कृतिक अस्मिता की अपनी असफल नीति, लीसेस्टर में दंगों के साथ-साथ युवा ब्रिटिश लड़कियों को सिर्फ़ इसलिए न्याय से वंचित कर दिया जाता रहा है, क्योंकि यह एक राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। नवीनतम स्थिति यह है कि कैसे ब्रिटिश स्कूली बच्चों के परिवार ईशनिंदा पर हमले के डर से छिप रहे हैं और कैसे एक शिक्षक इस्लामवादी कट्टरपंथियों से अपनी जान को ख़तरा होने के कारण छिप रहा है।