पाकिस्तान में आसन्न आम चुनाव अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंचायेंगे। चुनाव कराने पर क़रीब 50 अरब रुपये ख़र्च होने का अनुमान है। 2018 में पाकिस्तान में आम चुनावों में 21 अरब रुपये से थोड़ा अधिक ख़र्च हुआ था, जबकि 2013 में यह रक़म 4.73 अरब रुपये की थी। अन्य बातों के अलावा, स्थानीय मुद्रा के भारी अवमूल्यन के कारण इस लागत में और वृद्धि हो गयी है।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में शहबाज़ शरीफ़ सरकार की शर्मिंदगी से बचने के लिए देश के चुनाव आयोग के पंजाब विधानसभा चुनावों को अक्टूबर तक स्थगित करने के फ़ैसले को असंवैधानिक बताया। अप्रत्याशित रूप से सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले ने पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के शीर्ष नेता इमरान ख़ान की भावनाओं और संभावनाओं,दोनों को बढ़ा दिया है।
बढ़ती राजनीतिक अनिश्चितता ने वित्त मंत्री इशाक़ डार को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) और विश्व बैंक की स्प्रींग मीटिंग के लिए वाशिंगटन जाने की अपनी यात्रा रद्द करना पड़ा।
चुनाव कराना – लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है,मगर एक महंगा मामला भी है।
आज डार ने पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में चुनाव कराने के लिए आवश्यक धनराशि जारी करने की मंज़ूरी के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया, हालांकि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले पर आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि अतीत में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद, या बाढ़ और भूकंप के मद्देनज़र देश में चुनावों में देरी हुई है।
सुप्रीम कोर्ट और पीएमएल-एन के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के बीच गतिरोध ने राजनीतिक परिदृश्य में अनिश्चितता को और बढ़ा दिया है, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन द्वारा जनवरी में प्रकाशित एक ब्लॉग में कहा गया था कि राजनीति में डूबे पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगला आम चुनाव कौन जीतेगा। हालांकि, उस ब्लॉग के अनुसार, चुनाव के परिणाम की परवाह किए बिना “देश की दिशा बदलने की संभावना नहीं है।”
इसके अलावा इस दक्षिण एशियाई देश में सुरक्षा की स्थिति भी बिगड़ी है।
सबसे बुरा असर इस देश के आम नागरिकों पर पड़ा है। यहां तक कि मार्च में मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 35.4 प्रतिशत हो गयी थी, लेकिन अब उसके और भी बदतर होने की तैयारी हैं, क्योंकि क़ीमतों में और वृद्धि होने की संभावना है।
डॉन ने एक लेख में कहा, “पाकिस्तान में संकट आज बेहद चिंताजनक है, अन्य सभी चुनौतियों पर राजनीतिक संकट भारी है और इसके परिणामस्वरूप अधिक महत्वपूर्ण आर्थिक और सुरक्षा मुद्दों का समाधान खोजने से ध्यान भटकता है।”
अब कई लोग जो सवाल पूछ रहे हैं वह यह है: क्या ऐसे हालात में पाकिस्तान चुनाव कराने का जोखिम उठा सकता है?