ऐ मुसलमानों ! ये तुमने क्या किया ?’
‘अमल की किताब थी
दुआ की किताब बना दिया
समझने की किताब थी
पढ़ने की किताब बना दिया
जिंदाओं का दस्तूर था
मुर्दों का मंशूर बना दिया
जो इल्म की किताब थी
उसे लाइल्मों के हाथ थमा दिया
तसखीर-ए-कायनात का दरस देने आई थी
सिर्फ मदरसों का निसाब बना दिया
मुर्दा कौमों को जिंदा करने आई थी
मुर्दों को बख़्शवाने पर लगा दिया
ऐ मुसलमानों ! ये तुमने क्या किया ?’
यह कविता भारत के नौवें राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने लिखी थी,जिसका अनुवाद पाकिस्तानी पत्रकार हुमायूं ग़ौहर ने किया था।
शंकर दयाल शर्मा जब मध्य प्रदेश की सरकार में शिक्षा मंत्री बनाये गये,तो बच्चों की पाठ्य पुस्तक में ‘ग’ से गणेश शब्द हटवाकर ‘ग’ से गधा करवा दिया था। उनके इस फ़ैसले का हिंदू महासभा और जनसंघ की ओर से ज़बरदस्त विरोध हुआ था। हालांकि,उसका नतीजा ढाक के तीन पात निकला।ग़ौरतलब है कि शर्मा अंग्रेज़ी साहित्य, हिंदी और संस्कृत में ट्रिपल एमए थे। उनकी पीएचडी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से हुई थी।
शंकर दयाल शर्मा की यह कविता न तो क़ुरान पर सवाल उठाता है और न ही पैग़म्बर मोहम्मद से सवाल करती है।उनका सवाल उन मुसलमानों से है,जो अपनी तमाम रूढ़ीवाद का स्रोत इन्हीं दोनों के हवाले से देते हैं।इसमें उन बेइल्म उलेमाओं की बड़ी भूमिका होती है,जो क़ुरान और पैग़म्बर मोहम्मद के इस्लाम से कन्नी काटते हुए बड़ी चालाकी से हदीस के इस्लाम की तरफ़ अपनी व्याख्या ले जाते हैं।
तारिक़ फ़तेह उन्हीं उलेमाओं को कोसते थे और इन्हीं उलमाओं के इस्लाम पर चलने वाले मुसलमानों को आड़े-हाथों लेते थे।बेशक, तारिक़ फ़तेह का यह इक़बाल किसी सरकार से जुड़कर कमज़ोर पड़ जाता था।लेकिन,उनका कंटेंट आगे भी दुनिया के लिए ही नहीं, बल्कि ख़ास तौर पर मुसलमानों के लिए प्रासंगिक रहेगा,क्योंकि तारिक़ फ़तेह सुधारवादी थे और इस वक़्त दुनिया के तमाम समुदायों की तरह मुसलमानों के बीच सुधार आंदोलन की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।ज़ाहिर है रूढ़िवादी मुसलमानों को तारिक़ फ़तेह फूटी आंखों नहीं सुहाते थे और वे मुसलमानों की रूढ़िवादिता पर मौन रहने वाले बौद्धिकों के निशाने पर भी रहते थे।
पाकिस्तान में तारीक़ फ़तेह की मौत पर जश्न मनाया है। कथित तौर पर इस्लाम की बुनियाद पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। लेकिन पाकिस्तान का आर्थिक संकट,अध्यात्मिक संकट,राजनीतिक संकट और चौतरफ़ा संकट यह दिखाता है कि उसे क़ुरान और पैग़म्बर मोहम्मद के बताये इल्म पर चलने के क़ाबिल नहीं हुआ है।तारीक़ फ़तेह पाकिस्तान की इन्हीं कमियों पर हमला करते थे और उस रौशनी पर ग़ौर करने की बात करते थे,जिससे पाकिस्तान का कोई लेना-देना नहीं।