बलोचिस्तान की अजादी की अलख जगाने वाली करीमा बलोच मरी नहीं अमर हो गई है। करीमा बलोच की शहादत बलोचिस्तान की जंग-ए-आजादी की आग में घी का काम करेगी। बलोचिस्तान में पाकिस्तान की आर्मी और सरकारी जासूस पीछे पड़े थे। बलोचिस्तान की आवाज पाकिस्तान से बाहर नहीं जा रही थी। करीमा बलोच (Karima Baloch) ने पाकिस्तान के जुल्मो सितम की कहानी दुनिया के सामने लाने का बीड़ा उठाया था। करीमा बलोच (Karima Baloch) पाकिस्तान सरकार को बलोचिस्तान से उखाड़ फेंकने वाली ताकतों को जगा रही थी। करीमा कनाडा इसलिए नहीं गयी थी कि उसे विदेश में रहने का शौक था। वो इसलिए गई थी क्योंकि पाकिस्तान मे रहते हुए पाकिस्तान की ज्यादातियों की जानकारी दुनिया के सामने रख पाना मुमकिन नहीं था। बलोचिस्तान के लिए उसका सुरक्षित रहना जरुरी था। यह कहना है करीमा बलोच (Karima Baloch) की बहन माहगनी बलोच का। बीबीसी उर्दू के मुताबिक माहगनी का कहना है करीमा की मौत न सिर्फ बलोचिस्तान के लिए, बलोच महिलाओं के लिए बहुत बड़ी क्षति है। माहगनी और बलोचिस्तान के लोगों का मानना है करीमा की मौत स्वाभाविक नहीं है। इसके पीछे पाकिस्तानी एजेंसियों खासकर आईएसआई की साजिश है। करीमा बलोच (Karima Baloch) और उनके संगठन ने ग्वादर शहर के चारों तरफ लगाए गए बाड़े (फेंसिंग) का विरोध कर रहे थे। ग्वादर बंरगाह, चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है जहां चीन ने एक शहर सी बसा डाला है लेकिन इस शहर में बलोचिस्तान के लोगों के घुसने पर मनाही है और इसीलिए इस शहर को कड़ी सुरक्षा घेरे में रखा गया है।
स्टॉप फेंसिंग ग्वादर बलोचिस्तान के तमाम संगठन के साथ साथ सिंध के संगठन भी सीपेक का विरोध कर रहे हैं। 11 दिसंबर को भी एक वर्चुअल वेबिनार आयोजित किया गया था जिसका हैशटैग था #StopFencingGwadar जो काफी सफल रहा।पाकिस्तानी सोशल मीडिया में पाकिस्तानी आर्मी की इस कार्रवाई के खिलाफ गुस्सा रहा। ग्वादर पोर्ट कराची के करीब है लेकिन सिंध के लोगों के प्रवेश पर भी पाबंदी है। पिछले दिनों सीपीइसी के प्रोजेक्ट से जुड़े चीनी इंजीनियरों पर कराची में जानलेवा हमले की जिम्मेदारी सिंध के एक संगठन Sindhudesh Revolutionary Army (SRA) ने ली थी। बलोचिस्तान और सिंध के संघटनों ने मिल कर पाकिस्तानी सरकार और सीपीइसी के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी है जिससे चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में काफी मुश्किलें आ रही हैं। करीमा बलोच (Karima Baloch) इन संगठनों के बीच महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी। सीपीइसी की सुरक्षा का जिम्मा पाकिस्तानी आर्मी के जिम्मे है। जानकारों को पूरा विश्वास है कि करीमा की मौत में पाकिस्तानी आर्मी और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है।
सीपीइसी के मौजूदा चेयरमैन ले. जनरल असीम बाजवा बलोचिस्तान में पाकिस्तानी साउदर्न कमांड के कोर कमाडंर थे और बलूचिस्तान में सीपीइसी के कई सारे प्रोजेक्ट की सुरक्षा का जिम्मा उन पर था और बाजवा ने वहां जम कर कहर मचाया था। तमाम विरोध करने वाले या तो गायब हो गए या फिर मार दिए गए। कनाडा में बैठकर पाकिस्तान को नाके चने चबा दिए करीमा बलोच ने जब पाकिस्तान की दमनकारी सरकार ने बलोच संगठनों के बड़े नेताओं के जेल में बंद कर दिया तब भी करीमा बलोच (Karima Baloch) ने आजादी की लड़ाई जारी रखी। करीमा को भी जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं। 2016 में बीबीसी की world’s 100 most “inspirational and influential” women की लिस्ट में करीमा का नाम शामिल था। इसी बीच उनके संगठन ने तय किया कि करीमा को किसी सुरक्षित देश में रखना जरुरी है जिससे पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई जारी रखी जा सके और उन्हें कनाडा में पनाह मिली जहां से वो बेखौफ अपनी मुहिम जारी रखे हुए थीं।
20 दिसंबर को उनकी लापता होने की खबर आयी और अगले दिन उनकी लाश मिली। लेकिन उनकी मौत कैसे हुई, किन हालातों में हुई, कनाडा के पुलिस का कहना है कि उनकी जांच जारी है लेकिन जानकारों के मुताबिक उनकी हत्या की गई है। इसके पहले मई में स्वीडन में (सुरक्षित) रह रहे बलोच पत्रकार साजिद हसन की लाश एक नदी के किनारे मिली थी। साजिद बलोचिस्तान में हो रहे बलोच लोगों पर जुल्म के खिलाफ दुनिया भर के अखबारों में लिख रहे थे। करीमा की तरह जब उन्हें पाकिस्तान में जान सा मारने की धमकियां मिलनी लगीं तो साजिद ने स्वीडन में शरण ली थी। टोरंटो में सक्रिए हैं आईएसआई के किलर दस्ते करीमा बलोच के पति हम्माल हैदर भी संगठन से जुड़े हैं। उनके मुताबिक, करीमा 20 दिसंबर को हमेशा की तरह टोरंटो सेंट्रल गईं थी और उसके बाद वो कभी वापिस नहीं आईं। हैदर के मुताबिक करीमा (Karima Baloch) को कई महीने से बलोचिस्तान में हो रहे मानवधिकारों के हनन और पाकिस्तानी आर्मी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए धमकियां मिल रही थीं । यह धमकियां पाकिस्तानी से व्हाट्स ऐप्स पर आती थीं जिसमें कहा गया था कि अगर वो पाकिस्तान वापस आ जाएं तो उनके खिलाफ लगे सारे इल्जामात हटा लिए जाएंगे और उनके संगठन के लोगों को रिहा कर दिया जाएगा।
कनाडा में निर्वसन में रह रहे बलोचिस्तान के लोगों का कहना है करीमा की लाश एक झील के किनारे मिली है। उनके मुताबिक पाकिस्तान की आईएसआई एजेंसी की पहुंच कनाडा में है खास कर उन खालिस्तानी आतंकवादियों के बीच जिन्हें वो भारत के खिलाफ मदद करता रहा है। इनमें से कुछ खालिस्तानी नेता कनाडा की राजनीति में सक्रिय हैं और मंत्री भी हैं। इसके अलावा कनाडा में काफी पाकिस्तानी भी हैं जो वहां की राजनीति में शामिल हैं। कनाडा स्थित पाकिस्तानी हाई कमीशन में ज्यादातर लोग आईएसआई के हैं जो पाकिस्तान के खिलाफ बोलने वालों पर नजर रखते हैं। पाकीस्तान हाईकमीशन के स्टाफ इन खालिस्तानियों के संपर्क में हमेशा रहे हैं। भारतीय एजेंसियों के जानकारों के मुताबिक कनाडा की एजेंसी को सारा पता है लेकिन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को सिर्फ अपनी वोट बैंक की परवाह है। जानकारों के मुताबिक आईएसआई कनाडा में राजनीतिक शरण मे रह रहे बलोच, पश्तून और सिंधियों पर कड़ी नजर रखता रहा है। खास कर उन लोगों पर जो पाकिस्तान से अलग होने और सीपीइसी के खिलाफ बात कर रहे हैं। बलोचिस्तान की आजादी का प्रतीक करीमा बलोच बलोचिस्तान में करीमा बलोच (Karima Baloch) की मौत पर 40 दिनों का शोक रखा गया है।
करीमा बलोच, बलोचिस्तान की आजादी की लड़ाई के मौजूदा दौर का सबसे मुखर प्रतीक बन गईं थीं। करीमा की लड़ाई बलोच स्टूडेंट ऑर्गनाईजेशन (BRO)के एक आम कार्यकर्ता से हुई थी और कुछ ही सालों में वो (BRO-Aazad) की चेयरपर्सन बन गईं जो बलोचिस्तान जैसे कबीलाई राज्य के लिए बहुत बड़ी बात थी जहां महिलाओं के लिए इस तरह के आंदोलनों में हिस्सा लेना तो दूर, बल्कि परदे से बाहर निकलने पर भी पांबदी थी। लेकिन करीमा ने इस प्रथा को तोड़ते हुए बलोचिस्तान के लोगों के अधिकारों के लिए सड़कों पर उतर आई। (किसी भी मूवमेंट के सफल बनाने के लिए महिलाओं की भागीदारी जारी है ) करीमा के आहवान पर बलोचिस्तान की छात्राएं, महिलाएं आंदोलनों से जुड़ती गईं। करीमा को चुप कराने की फिराक में थी पाकिस्तान आर्मी पाकिस्तानी आर्मी ने करीमा बलोच को चुप कराने की तमाम कोशिशें कीं लेकिन करीमा की आवाज और बुलंद होती गई। 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बलोचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के बीच बलोच लोगों का मुद्दा दुनिया में उठाया तो बलोच संगठनों में काफी उम्मीद जाग उठी थी। करीमा बलोच (Karima Baloch) ने भी उन्हें राखी भाई मानते हुए मदद की गुहार लगाई थी।
इसी बीच जान से मार देने की धमकियों के मद्देनजर, उनके संगठन ने करीना और उनके पति को कनाडा में सुरक्षित रहे के लिए भेजा लेकिन आईएसआई के हाथ लंबे थे। बलोच संगठनों के मुताबिक, पश्चिमी देशों की यह जिम्मदारी है कि अपने यहां शरण में आए लोगों की हिफाजत करे और अगर उनकी मौत संदिग्ध परिस्थिती में होती है और शक उस देश पर होता है जिससे जान बचा कर वो भागे है, तो उनका फर्ज बनता है कि इन मामलों की निष्पक्ष जांच करें। उम्मीद है कि मानवाधिकारों की रक्षा करने का दावा करने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो करीमा बलोच की मानवाधिकारों पर न्याय करेंगे। बलूच रिपब्लिकन पार्टी के प्रवक्ता शेर मोहम्मद बुगती के ट्वीट के मुताबिक, ये कनाडा की सरकार का फर्ज़ है कि इस घटना की जांच करे और तथ्यों के बारे में उनके परिवार और बलूचिस्तान को सूचित करे।