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गाय का गोबर: तेलंगाना के आदिवासियों की आमदनी का नया सोना

तेलंगाना के आदिवासियों का कमाल, वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए गाय के गोबर का बेहतरीन इस्तेमाल

जिसे कचरा माना जाता था और जिसे कहीं भी फेंक दिया जाता था, वही चीज़ आदिवासी किसानों के लिए वरदान और आय का स्रोत बन गयी है। तेलंगाना के आदिलाबाद ज़िले के उत्नूर मंडल के चार गांवों के आदिवासी किसानों ने वर्मीकम्पोस्ट के उत्पादन के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि की है और जैविक खेती की ओर भी रुख़ कर लिया है।

वर्मीकम्पोस्टिंग, केंचुओं का उपयोग करके कम्पोस्ट बनाने की एक वैज्ञानिक विधि है। ये कीड़े आमतौर पर मिट्टी में रहते हैं, बायोमास पर पलते हैं और पचे हुए पदार्थ के रूप में  इसे विसर्जित कर देते हैं।

अलीगुड़ा, उमापति कुंटा, जीआर नगर, और थुकाराम नगर गांवों के निवासियों ने मिलकर गोबर को बिचौलियों को न बेचने और इसके बजाय वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए उपयोग करने का निर्णय लिया है। यह सेंटर फॉर पीपल्स फॉरेस्ट्री के समर्थन के कारण संभव हो पाया है, जिसने उन्हें इसे बनाने के लिए यूनिट स्थापित करने में मदद की है।

इन यूनिट में जो कुछ बनाया जाता है, उसका उपयोग आदिवासियों द्वारा अपने खेत में खेती के लिए किया जाता है, बाक़ी बचे वर्मीकंपोस्ट खुले बाज़ार में बेच दिया जाता है।

ग़ैर-सरकारी संगठन, CPF ने आदिवासी किसान सेवा केंद्र नामक ग्राम-स्तरीय समितियों का गठन किया है और ये जागरूकता शिविरों के माध्यम से किसानों का मार्गदर्शन करती हैं। इसके अलावा, वे फील्ड विजिट भी आयोजित करते हैं, जिन्हें फार्मर फील्ड स्कूल कहा जाता है। इन पहलों से वर्मीकम्पोस्ट इकाइयों की स्थापना में मदद मिली है और उत्नूर मंडल में ही पिछले एक साल में इनमें से 58 की स्थापना की जा चुकी है।

सीपीएफ 2022 से आदिवासियों को जैविक खेती के बारे में जागरूकता पैदा करके गोबर के मूल्य का एहसास कराने के लिए काम कर रहा है। आदिवासियों के पास बड़ी संख्या में मवेशी हैं और पहले वे सिर्फ़ गोबर से छुटकारा पाना चाहते थे और इसे गांव के बाहरी इलाक़े में फेंक दिया जाता था। इससे उन्हें प्रति ट्रैक्टर 3,000 से 4,000 रुपये मिलते थे।

इन जागरूकता शिविरों के बाद कुछ आदिवासी किसानों को प्रशिक्षण दिया गया और उन्हें लाभांश का भुगतान किया गया। जब समुदाय के अन्य लोगों को गाय के गोबर के मूल्य का एहसास हुआ, तो वे भी वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करके जैविक खेती करने में शामिल हो गए। प्रशिक्षित आदिवासी अपने गांवों में इकाइयां स्थापित करने में मदद करते हैं।

वर्मीकम्पोस्ट के उत्पादन में 30 से 45 दिनों का समय लगता है, जिससे किसान प्रति माह 8,000 से 10,000 रुपये के बीच कमा सकते हैं।