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धू-धू जलता पाकिस्तान, दुहरायी तो नहीं जायेगी श्रीलंकाई संकट की दास्तान

राजनीतिक हालात बिगड़ने से पाकिस्तान की चरमरा चुकी अर्थव्यवस्था

ठीक एक साल पहले श्रीलंका अपने इतिहास में पहली बार डिफॉल्ट हुआ था। और अब जैसे-जैसे बढ़ती महंगाई के साथ अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले अपनी मुद्रा के ध्वस्त होने के बीच पाकिस्तान का आर्थिक संकट गहराता जा रहा है, वैसे-वैसे यह लगभग श्रीलंका के संकट की पुनरावृत्ति जैसा लगता है।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कल पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले पाकिस्तानी रुपया आज गिरकर 288.5 पर आ गया है। मुद्रा की चमक और फीकी इसलिए पड़ सकती है, क्योंकि देश के कई हिस्सों में व्यापक हिंसा के कारण देश की राजनीतिक और सुरक्षा की स्थिति गंभीर हो गयी है।

पहले से ही चरमराती अर्थव्यवस्था के लिए निहितार्थ गंभीर होंगे, हालांकि इस्लामाबाद ने अगले कुछ महीनों में मूल ऋण में 3.7 बिलियन डॉलर के पुनर्भुगतान का आश्वासन दिया है, भले ही संभावित बेलआउट पैकेज पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बातचीत अनिर्णायक रही हो। वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने चेतावनी दे दी है कि अगर पाकिस्तान आईएमएफ़ के साथ समझौता करने में विफल रहता है, तो पाकिस्तान डिफॉल्ट कर सकता है। राजनीतिक संकट से आईएमएफ के साथ सौदे में देरी हो सकती है।

इस बीच पाकिस्तान के शेयर बाज़ार में भी गिरावट आयी है। कराची स्टॉक एक्सचेंज 298.86 अंकों की गिरावट के साथ 41,074.95 पर बंद हुआ। आर्थिक संकट कुशासन और सरकार की ग़लत प्राथमिकताओं का प्रत्यक्ष परिणाम है।

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान पर नज़र रखने वाले एक विश्लेषक ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “और अब व्यवसायों के लिए चिंता यह है कि इस गिरफ़्तारी ने संकट में एक नया आयाम जोड़ दिया है। हम पहले से ही कई संकटों के बीच में हैं और अब गिरफ़्तारी और हिंसा व्यवसायों को और अधिक नुक़सान पहुंचा सकती है।” गहराते संकट का मतलब यह होगा कि पाकिस्तान के राजनीतिक वर्ग को घरेलू संकट से निपटने पर अधिक ध्यान देना होगा।

इस बीच गृह मंत्रालय ने पहले ही पंजाब और खैबर पख़्तूनख़्वा में सेना के जवानों की तैनाती को अधिकृत कर दिया है। देश में बढ़ते तनाव को रोकने के लिए मोबाइल सेवाओं को भी निलंबित कर दिया गया है। मौजूदा स्थिति से अधिक से अधिक प्रवासियों को देश छोड़ जाने के लिए प्रेरित करने की संभावना है।

ज़ाहिर है कि चीन ने पाकिस्तान की स्थिति पर कोई टिप्पणी नहीं की है, वह घटनाक्रम पर कड़ी नज़र रखेगा। तटस्थ होने के दिखावे के बावजूद चीन-पाकिस्तान के सबसे बड़े निवेशक है और उसने देश में बढ़ते सुरक्षा ख़तरों पर चिंता व्यक्त की है।

पिछले हफ़्ते ही चीन के विदेशमंत्री किन गैंग ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान कहा था कि स्थिरता विकास का आधार है और इस दक्षिण एशियाई राष्ट्र को राजनीतिक सहमति बनाने और अर्थव्यवस्था को बनाये रखने पर ध्यान देना चाहिए।

किन ने एक प्रेस वार्ता में कहा, “हमें पूरी उम्मीद है कि पाकिस्तान में राजनीतिक ताक़तें आम सहमति बनायेंगी, स्थिरता बनाये रखेंगी और घरेलू और बाहरी चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से समाधान करेंगी, ताकि यह बढ़ती अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कर सके।” फ़रवरी में चीनी दूतावास ने “तकनीकी कारणों” का हवाला देते हुए अपने वाणिज्य दूतावास अनुभाग को बंद करने की घोषणा की थी। हालांकि, इसने बंद करने का कोई कारण नहीं बताया, सूत्रों ने कहा कि देश में बढ़ती राजनीतिक अशांति एक महत्वपूर्ण कारक थी।