ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) एक बार फिर सुर्खियों में है। रिपोर्टों के अनुसार, यूके सरकार द्वारा सहायता प्राप्त इस ब्रॉडकास्टर ने स्वीकार कर लिया है कि उसने अपनी आय को कम बताया और इस तरह कम करों का भुगतान किया। राष्ट्रीय दैनिक टाइम्स ऑफ़ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स दोनों ने अज्ञात सीबीडीटी अधिकारियों के हवाले से यह रिपोर्ट प्रकाशित की है। एचटी ने कहा है कि इस समाचार संगठन ने सीबीडीटी को एक ईमेल में स्वीकार किया है कि उसने अपने कर रिटर्न में लगभग 40 करोड़ रुपये की आय कम दिखाया है।
सीबीडीटी के एक अधिकारी के हवाले से एचटी ने कहा, ‘मामले के तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचने तक विभाग इसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करता रहेगा।’
बीबीसी ने कोई बयान जारी नहीं किया है। इसने न तो रिपोर्टों का खंडन किया है और न ही स्वीकार किया है।
फ़रवरी में आयकर विभाग ने नई दिल्ली और मुंबई में बीबीसी के परिसर में स्थानांतरण मूल्य निर्धारण नियमों के कथित ग़ैर-अनुपालन और इसके मुनाफ़े की बड़ी गड़बड़ियों को लेकर सर्वेक्षण किया। लेकिन, कई मीडिया संगठन, ग़ैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और अधिकार कार्यकर्ता बीबीसी के समर्थन में सामने आये।
कई लोगों ने आईटी सर्वेक्षणों के समय पर सवाल उठाया था, जो केंद्र द्वारा दो भाग वाले वृत्तचित्र – इंडिया: द मोदी क्वेश्चन की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने के कुछ ही दिनों बाद किए गए थे।
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बोर्ड के अध्यक्ष आकार पटेल ने तब कहा था, “कर विभाग के छापे, जिन्हें ‘सर्वे’ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, एक महीने से भी कम समय में आया था, जब संगठन ने एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म किया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुले तौर पर आलोचना की गयी थी। ये छापे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोर अपमान है। भारतीय अधिकारी स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के आलोचनात्मक कवरेज को लेकर बीबीसी को परेशान करने और डराने की कोशिश कर रहे हैं।”
लेकिन, अगर बीबीसी ने करों का कम भुगतान करने की बात स्वीकार की है, जैसा कि रिपोर्ट्स बताती हैं, तो समाचार संगठन को भी कुछ जवाब देना होगा।
सीबीडीटी के एक पूर्व अधिकारी ने इंडिया नैरेटिव को बताया कि कर अधिकारी अक्सर उन समाचार संगठनों को छोड़ देते हैं, जो लक्षित होने के डर से कर मानदंडों का पालन करने में विफल रहे हैं।
पूर्व अधिकारी ने बताया,“जब भी भारत में किसी समाचार संगठन पर किसी भी तरह का सवाल या सर्वेक्षण किया गया है, हम अनुचित जांच के दायरे में आए हैं। जबकि हम कंपनियों या यहां तक कि व्यक्तियों को कर संबंधी प्रश्न भेज सकते हैं, जब समाचार संगठन की बात आती है तो हम इस तरह के अभ्यास के लिए इतने खुले नहीं होते हैं। समाचार संगठन अनिवार्य रूप से खुद को किसी भी तरह की जांच से ऊपर पेश करते हैं।”
इस बीच रॉयटर्स इंस्टीट्यूट डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट 2022 ने खुलासा किया कि बीबीसी न्यूज़ पर भरोसा पिछले पांच वर्षों में 20 प्रतिशत अंक गिरकर 75 प्रतिशत से 55 प्रतिशत हो गया है। सर्वेक्षण में कहा गया है, “जो लोग कहते हैं कि वे बीबीसी पर अविश्वास करते हैं, ऐसे लोगों का अनुपात बढ़ा है, जो कि 11 प्रतिशत से बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया है।”
बीबीसी के विवादों पर इंटरनेट पर खोज करने से कई विकल्प सामने आयेंगे।
2021 में बीबीसी ग़लत तौर-तरीकों के कारण सुर्खियों में था, जिससे उन्होंने दिवंगत प्रिंस डायना का इंटरव्यू लिया था। एक पूर्व वरिष्ठ न्यायाधीश लॉर्ड डायसन ने एक स्वतंत्र जांच की थी, उन्होंने पाया था कि बीबीसी के पत्रकार मार्टिन बशीर ने न केवल साक्षात्कार को सुरक्षित करने के लिए नक़ली दस्तावेज़ों का इस्तेमाल किया था,बल्कि ब्रॉडकास्टर के शीर्ष अधिकारियों से भी झूठ बोला था।
1995 में जिस तरह से साक्षात्कार प्राप्त किया था, उसके लिए बीबीसी को “बिना शर्त माफ़ीनामा” जारी करना पड़ा था।
भारत में कई लोगों ने पीएम मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के समय पर सवाल उठाया। एक विश्लेषक ने पहले कहा था, “सुप्रीम कोर्ट- भारत की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले को बंद कर दिया है और यह कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के दौर में हुआ था, दंगे 20 साल पहले हुए थे, इस बिंदु पर इस तरह के किसी डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म का क्या उद्देश्य है।”
बीबीसी के संपादकीय दिशानिर्देश इस तरह हैं: “हम स्वतंत्र, निष्पक्ष और ईमानदार हैं। हम सटीकता और निष्पक्षता के उच्चतम मानकों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और अपने दर्शकों को जानबूझकर या भौतिक रूप से गुमराह करने से बचने का प्रयास करते हैं।”
लेकिन, अब समय आ गया है कि सिर्फ़ बीबीसी ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के समाचार संगठन अपने इस तरह के आदर्श उपदेशों का स्वयं पालन करें।