सआदत हसन मंटो के जन्मदिन पर विशेष:
कथित सभ्य समाज के बेशर्म सच का चिट्ठा लिखने वाला एक बदनाम अफ़साना निगार,जिसने महसूस कराया था कि उस समाज के कपड़े क्या उतारना,जो पहले से ही नंगा है।उसने अपने लेखन में दर्जीगीरी करने से इन्कार कर दिया था। तीन बार की कोशिश में सिर्फ़ 12वीं पास था,मगर बेहद पढ़ा-लिखा।
बहुत लिखा,कहानियां लिखीं,रेडियो लिखा,फ़िल्में लिखीं। ठंडा गोश्त, खोल दो, काली शलवार, आख़िरी सल्यूट, हतक,टेटवाल का कुत्ता, धुआं, बारिश सबकुछ लिखी।
मुंबई उसकी रगों में इस क़दर था कि वह ख़ुद को चलता फिरता मुंबई कहता था। 1948 में पाकिस्तान का रुख़ कर लिया,उसने ‘हलाल और झटका’ और “यज़ीद” लिखी। पाकिस्तान में आने वाले दिनों के अतिवाद की भविष्यवाणी लिखी।मुकदमे झेले,जेल गया,ग़रीबी झेली,पुलिस और प्रशासन की परेशानियां-दुश्वारियां झेली,मगर लिखना नहीं छूटा।इस बदनाम लेखक ने समाज की बेशर्मी लिखी।पाकिस्तान की हुक़ूमत,प्रशासन और इस्लाम के हालत पर हौले-हौले हाथ रख दिया और धर्म के आधार पर बना पाकिस्तान ताज़िंदगी उसका दुश्मन रहा।
मंटो की कहानी: हलाल और झटका
“मैंने उसकी शहरग पर छुरी रखी। हौले हौले फेरी और उस को हलाल कर दिया।
“ये तुम ने क्या किया?”
“क्यूँ?”
“उसको हलाल क्यूँ किया?”
“मज़ा आता है इस तरह।”
“मज़ा आता है के बच्चे, तुझे झटका करना चाहिए था… इस तरह।”
और हलाल करने वाले की गर्दन का झटका हो गया।