पाकिस्तान की सेना को देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिहाज़ से ज़िम्मेदारी की बड़ी भूमिका को क़ुबूल करने की जरूरत है। पिछले साल पूर्व सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया था कि सेना दशकों से राजनीति में दखल दे रही है।
उन्होंने कहा, “मेरी राय में इसका कारण पिछले 70 वर्षों से सेना द्वारा राजनीति में लगातार दखल देना है, जो असंवैधानिक है।” उन्होंने कहा था कि गिरती आर्थिक स्थिति को एक सबक के रूप में लिया जाना चाहिए और सभी हितधारकों को देश के हितों की रक्षा के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है। पिछले साल नवंबर में जनरल असीम मुनीर ने पाकिस्तान के नये सेना प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला था।
लेकिन जो देश के हालात हैं,उससे ज़ाहिर है कि किसी तरह का सबक नहीं लिया गया है।
शक्तिशाली सेना के साथ अपने संबंधों में खटास लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की हालिया गिरफ़्तारी से एक बार फिर देश में राजनीतिक उथल-पुथल तेज़ हो गयी है, जो एक डिफ़ॉल्ट की ओर बढ़ रहा है। राजनीतिक संकट अर्थव्यवस्था को और नुक़सान पहुंचायेगा।
जहां इस्लामाबाद इस समय $ 6.5 बिलियन बेलआउट पैकेज के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ बातचीत कर रहा है, वहीं महीनों तक बातचीत चलने के बावजूद दोनों अभी तक किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाये हैं।
व्यापार समुदाय को अब डर है कि यह बहुपक्षीय ऋणदाता 9 जून को घोषित किए जाने वाले बजट पर अपनी मुहर नहीं लगा सकता है। कारोबारियों ने पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक़ डार को बजट की रूपरेखा तैयार करने से पहले बातचीत के लिए आमंत्रित करने में रुचि नहीं दिखायी है।
आईएमएफ़ की वित्तीय सहायता के बिना पाकिस्तान डिफ़ॉल्ट को टालने में सक्षम नहीं हो सकता । लेकिन, गहराते राजनीतिक संकट के साथ कई लोगों को यह डर है कि आईएमएफ़ ऋण के लिए अपनी स्वीकृति देने से पहले इस्लामाबाद पर और दबाव डालेगा।
पाकिस्तान में राजनीतिक संकट कोई नयी तो बात नहीं है।लेकिन, निष्पक्ष चुनाव दुर्लभ हैं और किसी भी प्रधानमंत्री ने कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है।
स्थानीय समाचार पत्र डॉन में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा गया है, “हालांकि पाकिस्तान का बहुप्रतीक्षित दूसरा विभाजन नहीं होने जा रहा है, लेकिन नीचे की ओर तेज़ी से गिरावट आयेगी, क्योंकि ग़रीब भूखे मरेंगे, शहर तेज़ी से अनुपयोगी हो जायेंगे और अमीर पश्चिम की ओर भाग जायेंगे।” साथ ही कहा कि देश और अर्थव्यवस्था चलाना सेना का काम नहीं है।
डॉन ने कहा कि राष्ट्रीय राजनीति में एक निर्णायक भूमिका, चाहे गोपनीय हो या प्रत्यक्ष, व्यक्तियों के व्यक्तिगत संवर्धन के लिए मांगी गयी थी और इसका राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है।
ब्रुकिंग्स के एक शोध में बताया गया है कि पाकिस्तान में राजनीतिक दल सीधे तौर पर राजनीति में सेना के हस्तक्षेप की ओर इशारा करते हैं, “लेकिन तभी जब वे विपक्ष में हों; जब वे सरकार में होते हैं और उस समर्थन का इस्तेमाल करते हैं, तो वे इसे चुनौती देने में बहुत कम रूचि दिखाते हैं।
यह ख़ान की पार्टी के लिए भी उतना ही सच था, जब वह सत्ता में थी, और यह अब शरीफ़ की सरकार के लिए भी उतना ही सच है,जबकि वह सत्ता में है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आम नागरिकों के हितों की हमेशा अवहेलना की गयी है और वे देश की राजनीतिक अस्थिरता के लंबे इतिहास की क़ीमत चुकाते रहे हैं।