जून में शुरू होने वाले ख़रीफ़ सीज़न के दौरान फ़सलों की बुवाई सामान्य रहने की उम्मीद है, क्योंकि इस साल एल नीनो की संभावित स्थिति को लेकर चिंतायें बढ़ गयी हैं। कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि अप्रैल और मई में बेमौसम बारिश के बावजूद ज़मीन की जुताई और मिट्टी मिलाने जैसी तैयारियां बिना किसी परेशानी के पूरी कर ली गयी हैं। दरअसल, पिछले महीने की बारिश ने कपास और गन्ने जैसी कुछ प्रमुख फ़सलों की बुआई में मदद की है।
महाराष्ट्र स्थित किसान संघ, शेतकारी संगठन के वरिष्ठ नेता अनिल घनवत ने पहले इंडिया नैरेटिव को बताया था,”फिलहाल, हमें ख़रीफ़ फ़सलों की बुवाई में कोई समस्या नहीं दिख रही है, लेकिन हमें अल नीनो जैसी स्थितियों के लिए बाद के चरण में देखना होगा, अगर ऐसा होता है तो उत्पादन में कमी आयेगी लेकिन अन्यथा हम पटरी पर हैं।”
ख़राब मानसून का भारत के आर्थिक सुधार पर ज़बरदस्त प्रभाव पड़ सकता है, खाद्य क़ीमतों और समग्र मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है। शुद्ध बोये गये क्षेत्र के लगभग 60 प्रतिशत भाग की सिंचाई मानसून पर निर्भर होती है।
जून में शुरू होने वाले ख़रीफ़ सीज़न के दौरान बोई जाने वाली कुछ मुख्य फ़सलों में धान, मक्का, दालें, जूट और मूंगफली शामिल हैं। ख़रीफ़ या गर्मियों की फ़सलें आमतौर पर अक्टूबर में काटी जाती हैं।
भारत के फ़सल उत्पादन का वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर भी प्रभाव पड़ता है। भारत दुनिया भर में लगभग 40 प्रतिशत चावल की आपूर्ति करता है। पिछले साल सरकार द्वारा चावल के निर्यात पर कई प्रतिबंध लगाये जाने के बाद भी भारत दुनिया में अनाज का शीर्ष निर्यातक बना रहा।
2022-23 में भारत का चावल उत्पादन 130 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक था। 2012-13 में चावल का उत्पादन 105 मिलियन मीट्रिक टन था।
चावल और गेहूं देश में मुख्य अनाज हैं।
हालांकि, जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों से उभरती चुनौतियों के साथ नरेंद्र मोदी सरकार आक्रामक रूप से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बाजरा के उत्पादन का विस्तार करना चाह रही है। न केवल ये छोटे अनाज चरम वाले मौसम की स्थिति का सामना कर सकते हैं, बल्कि ये कार्बन-तटस्थ फ़सलें भी होती हैं।
भारत दुनिया के सबसे बड़े और सबसे विविध खाद्य उत्पादकों में से एक है, जहां कृषि देश की आय के 20 प्रतिशत से अधिक का स्रोत बनी हुई है।