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श्रद्धांजलि: प्रियंका-करीना जैसी बड़ी एक्ट्रेसेस को अपने गानों पर नचाने वाली गीतकार माया गोविंद का निधन, 400 से ज्यादा लिखे गाने

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बॉलीवुड को 400 से ज्यादा गाने देने वाली मशहूर गीतकार माया गोविंद का निधन हो गया है। उन्होंने 80 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। माया गोविंद को ब्रेन ब्लड क्लॉटिंग के कारण 20 जनवरी को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। फिर 26 जनवरी को उन्हें अस्पताल से घर शिफ्ट कर दिया गया था। घर पर ही माया गोविंद का इलाज चल रहा था। गीतकार की मौत की पुष्टि उनके बेटे अजय गोविंद ने की है। अजय गोविंद ने बताया कि बीते लंबे समय से उनकी मां माया गोविंद की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी।

अजय गोविंद ने आगे बताया कि मुंबई के जुहू स्थित आरोग्य निधि अस्पताल में माया गोविंद के इलाज में लापरवाही बरती जा रही थी। इसी को देखते हुए अजय ने मां का इलाज घर पर ही करवाना शुरू कर दिया। बीते कुछ दिनों से उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी, और आखिरकार 7 अप्रैल को माया ने हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया।  गीतकार के निधन से हिंदी सिनेमा में शोक की लहर दौड़ गई. ऐसे में हर कोई उनकी आत्मा की शांति की कामना कर रहा है। माया गोविंद का जन्म 17 जनवरी 1940 को लखनऊ में हुआ था। महज 7 साल की उम्र से माया गोविंद कविता लिखती थी। माया गोविंद कवि सम्मेलनों और मुशायरों का बड़ा नाम रहा।

देश विदेश में होने वाले कवि सम्मेलनों में उनको सुनने लोग दूर दूर से आते थे।बतौर गीतकार अपना करियर 1972 में शुरू करने वाली माया गोविंद ने 400 से ज्यादा फिल्मों में गाने लिखे। 1979 में रिलीज हुई फिल्म 'सावन को आने दो' में येशुदास और सुलक्षणा पंडित के गाए गाने 'कजरे की बाती' ने उन्हें खूब शोहरत दिलाई। निर्माता निर्देशक आत्मा राम ने उन्हें बतौर गीतकार पहला ब्रेक दिया अपनी फिल्म 'आरोप' में। इस फिल्म के 'नैनों में दर्पण है' और 'जब से तुमने बंसी बजाई रे' जैसे गीतों ने माया गोविंद को रातों रात मशहूर कर दिया। इसके बाद उन्होंने 'बावरी', 'दलाल', 'गज गामिनी',  'मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी' और 'हफ्ता वसूली' जैसी तमाम बडी फिल्मों के गीत लिखे।

सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि माया ने टीवी की दुनिया में भी अपने टैलेंट का जलवा दिखाया और 'महाभारत' जैसे यादगार सीरियल के लिये गीत, दोहे और छंद लिखे। इसके अलावा उन्होंने 'विष्णु पुराण', 'किस्मत', 'द्रौपदी', और 'आप बीती जैसे सीरियल में अपनी लेखनी का हुनर दिखाया। उन्हें कथक में महारत हासिल थी। उन्होंने बतौर एक्ट्रेस भी पर्दे पर एक्टिंग का हुनर दिखाकर कई पुरस्कार भी जीते। घर वाले चाहते थे कि वो शिक्षक बनें लेकिन उनकी रुचि अभिनय में रही।

शंभू महाराज की शिष्य रहीं माया ने कथक का खूब अभ्यास किया। साथ ही लखनऊ के भातखंडे संगीत विद्यापीठ से गायन का चार साल का कोर्स भी किया। ऑल इंडिया रेडियो की वह ए श्रेणी की कलाकार रही हैं। साल 1970 में संगीत नाटक अकादमी लखनऊ ने उन्हें विजय तेंदुलकर के नाटक के हिंदी रूपातरण 'खामोश! अदालत जारी है' में सर्वश्रेष्ठ अभिनय का पुरस्कार दिया। बाद में वह दिल्ली में हुए ऑल इंडिया ड्रामा कंपटीशन में भी प्रथम आईं। फिल्म 'तोहफा मोहब्बत का' में भी उन्होंने अभिनय किया।