’24th Kargil Vijay Diwas:आजादी का अमृत महोत्सव’ की पृष्ठभूमि में मनाये जा रहे 24वें कारगिल विजय दिवस के अवसर पर ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) खुशाल ठाकुर, 18 ग्रेनेडियर्स के वीर कमांडिंग ऑफिसर ने अपने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए पाकिस्तानी सैनिकों पर जीत हासिल की थी और टोलोलिंग और टाइगर हिल पर कब्ज़ा कर लिया था।उन्होंने आशुतोष कुमार के साथ युद्ध के मैदान की अपनी यादें ताज़ा कीं, जब उन्होंने कारगिल से फ़ोन पर बात की थी।
इस दिन आप कैसा महसूस कर रहे हैं?
जब कारगिल विजय दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिन आते हैं, तो मैं उन ज्वलंत यादों को बार-बार याद करता हूं, जो वीर शहीदों द्वारा छोड़ी गयी थीं। मैंने ‘शांतिकाल’ में द्रास और कारगिल की दुर्गम ऊंचाइयों का दौरा किया है और तब भी मुझे इस बात पर होता है कि हमारे साहसी लोगों ने कैसे इसका मुक़ाबला किया था।
इस महान दिन पर आप कारगिल में हैं। माहौल कैसा है?
हर साल इस दिन ऐसा ही माहौल रहता है। जब मैं यहां पहुंचता हूं, तो मैं देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वालों की मिट्टी और यादों से जुड़ा हुआ महसूस करता हूं। आज भारतीय सेना प्रमुख मनोज पांडे यहां हैं और कारगिल युद्ध के दौरान सेना प्रमुख रहे जनरल वेद प्रकाश मलिक भी यहां हैं। बुधवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी शामिल होंगे। मेरा मतलब है कि यह हमारे लिए बहुत बड़ा सम्मान है।
कृपया उन कुछ महत्वपूर्ण क्षणों को साझा करें
ऐसे क्षण कई हैं। शून्य से नीचे की परिस्थितियों में 16,000 फीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग पर हमारा अंतिम हमला सबसे दर्दनाक और चुनौतीपूर्ण था। मैंने अपने सेकेंड इन कमांड लेफ्टिनेंट कर्नल आर विश्वनाथन को अपनी बाहों में खो दिया था। अचानक हुआ था, लेकिन जब मैंने चारों ओर देखा, तो वे लोग अपने अगले आदेश के लिए मेरी ओर देख रहे थे। मुझे अपने दुःख से ऊपर उठना था और बहादुरी से उनका नेतृत्व करना था। मैं स्थिति को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे सकता था। मैंने अपने 34 बहादुर साथियों को खो दिया, जिनमें 2 अधिकारी, 2 जेसीओएस और 30 सैनिक शामिल थे।
क्या आप ऐसे कुछ बहादुरों के नाम बता सकते हैं, जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया या जीत का जश्न मनाने के लिए जीवित रहे
हां। यह सबसे आत्मघाती मिशन था, जिसने युद्ध का रुख़ बदल दिया था। हमारे कई नुक़सान इलाके की प्रकृति और स्थितियों के कारण हुए थे। भीषण युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वाले और महावीर चक्र से सम्मानित किए गए वीर सैनिकों में मेजर राजेश अधिकारी (मरणोपरांत), मेजर विवेक गुप्ता (मरणोपरांत), मेजर पद्मपाणि आचार्य (मरणोपरांत) शामिल थे, हवलदार दिगेंद्र कुमार को भी एमवीसी से सम्मानित किया गया था, जबकि कर्नल रवींद्रनाथ और कैप्टन विजयंत थापर (मरणोपरांत) को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा क्या थी ?
हमें सभी बाधाओं, दुर्गम इलाक़े, एक धूर्त दुश्मन और रसद समर्थन की कमी का सामना करना पड़ा था। उस समय पीछे मुड़कर नहीं देखा जा सकता था। पूरा देश हमसे उम्मीद कर रहा था कि हम अपना काम करेंगे और अच्छा करेंगे, इसलिए ये सारी प्रतिकूलतायें अप्रासंगिक लग रही थीं। केवल एक ही विचार बार-बार आ रहा था। हम भारत को निराश नहीं कर सकते। जवानों से मेरा आह्वान था ‘विजय या वीरगति’, जिसका अर्थ है विजय या शहादत। वे आगे बढ़ गए।
यानी प्रेरणा का स्तर बेहद ऊंचा था
मैंने अपने जवानों से कहा था कि आप सिर्फ़ दुश्मन से नहीं, बल्कि शत्रुता तत्वों से भी लड़ रहे हैं। आप जो भी सामना करेंगे, मैं उसका सामना करूंगा। तंबू से उन्हें आदेश देने के बजाय, मैं उनके साथ चला था और उनके साथ गोलियों की बौछार का सामना किया था। ऐसी स्थिति थी, जब मैंने एक जेसीओ, सूबेदार रणधीर, जो मेरे सामने रेंग रहा था, और मेरे ऑपरेटर, हवलदार राम कुमार, जो मेरे ठीक पीछे थे, दोनों को खो दिया था। जब आपके लोगों को एहसास होता है कि वे खोने लायक़ नहीं हैं और उनका कमांडिंग ऑफिसर उनके साथ खड़ा है, तो वे प्रेरित और अधिक दृढ़ महसूस करते हैं।
हिमाचल प्रदेश के पीवीसी पुरस्कार विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा की कोई यादें
सचमुच महान क्षण था। वह वीरता से परिपूर्ण युवक था। पहली जीत के बाद, 18 ग्रेनेडियर्स टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ा। भारतीय सेनाओं के पास बेहतर ख़ुफ़िया इनपुट, रणनीतिक तैयारी और दुश्मन के बारे में सटीक जानकारी थी। कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफ़लमैन संजय कुमार (परम वीर चक्र के प्राप्तकर्ता) जैसे युवा अत्यधिक प्रेरित नायकों ने किसी भी क़ीमत पर टाइगर हिल को पाकिस्तानियों से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। एक और युद्ध नायक ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव थे, जिन्हें भी पीवीसी से सम्मानित किया गया था।
आप पाकिस्तान द्वारा भविष्य में किये जाने वाले किसी भी दुस्साहस के बारे में क्या सोचते हैं ?
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान को एक कड़वा सबक़ मिला है। अब पाकिस्तान में भी हालात ठीक नहीं हैं। देश पहले से ही संकट में है। अनुच्छेद 370 के ख़त्म होने के बाद सीमा और कश्मीर पर आतंकवादियों की गतिविधियों पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगा है। फिर भी भारतीय सेना सीमा पर किसी भी स्थिति या दुस्साहस से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। एकमात्र डर चीनियों और लद्दाख की स्थिति को लेकर है, जिसके लिए सेना पहले से ही हाई अलर्ट पर है।
हमारे शहीदों की स्मृति को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीक़ा क्या है?
देश के हितों की रक्षा के लिए वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उनके साथ अत्यंत सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए। अपना आभार व्यक्त करने का एक तरीक़ा उनके परिवार के साथ सद्व्यवहार करना है