मुंबई की सियासत का पारा हाई है, गर्मी को धीरे-धीरे कम हो रही है लेकिन यहां का तापमान बढ़ता जा रहा है। उद्धव ठाकरे जिस तरह से भाजपा से बगावत करते हुए और धोखा देते हुए सरकार बनाए थे वही अब उनके साथ ही हो रहा है। उस दौरान तो उद्धव को सीएम की कुर्सी पाने की ललक लगी हुई थी और अब इसी कुर्सी को बचाने के लिए वो सबकुछ करने के लिए तैयार हैं। शिवेसेना इस वक्त आपसी कलह का सामना कर रही है वो सरकार के साथ ही अपनी पार्टी भी बचाने में जुटी हुआ है। ऐसे में अब बीजेपी की धीरे-धीरे एंट्री होने लगी है। क्योंकि, शिंदे और फडणवीस की मुलाकात ने शिवसेना की टेंशन बढ़ा दी है।
शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस के बीच मुलाकात की खबर भी आई, लेकिन भाजपा ने अभी तक इस पूरे मामले पर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। शिवसेना के बागी गुट के पास दो तिहाई विधायकों का समर्थन होने के दावे के बाद भी भाजपा खुलकर सामने नहीं आई है। इसकी कुछ वजह भी है। सूत्रों की माने तो, भाजपा चाहती है कि पहले बागी गुट को विधानसभा में मान्यता मिले या फिर विधायक दल और सांसदों के साथ संगठन स्तर पर भी शिवसेना में विभाजन हो। बागी गुट खुद असली शिवसेना होने का दावा करें। ऐसी स्थितियों में बागी विधायकों की सदस्यता तो बनी ही रहेगी साथ ही भाजपा के साथ विलय से भी बचा जा सकेगा।
इस वक्त शिवसेना अकेले ही लड़ाई लड़ रही है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा बुलाई गई विभिन्न बैठकों में उम्मीद से कम नेताओं के पुहुंचने से भी शिवसेना का संकट बढ़ है। वहीं, बागी भी बहुत संभलकर धीरे-धीरे आगे कदम बढ़ा रहे हैं और अभी तक ऐसा कोई कदम उठाया जिससे कि बाजी उसके हाथ से निकले। एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की वड़ोदरा में शुक्रवार-शनिवार की दरम्यानी रात मुलाकात की खबरें तेज हो रही हैं लेकिन, इसपर अभी कोई पुष्टि नहीं किया गया है। मुंबई, बड़ोदरा और गुवाहाटी के बीच जो कुछ हुआ वह राज्य में भावी सरकार बनने की दिशा की एक बड़ी कवायद है। माना जा रहा है कि अगले एक-दो दिन में स्थति साफ हो सकेगी।