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Communal Riots Case: 150 आरोपी रिहा,सिद्धरमैया पर उठे सवाल

सिद्धारमैया, कर्नाटक के मुख्यमंत्री

रामकृष्ण उपाध्याय

बेंगलुरु: कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी ने एक पार्टी विधायक की अपील के आधार पर विभिन्न सांप्रदायिक दंगों के मामलों में 150 से अधिक आरोपियों, जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम थे, उन्हें पुलिस हिरासत से रिहा करने के सिद्धारमैया सरकार के क़दम की कड़ी निंदा की है और इसे एक “जिहादी सरकार की “तुष्टिकरण की राजनीति” क़रार दिया है।”

यह विवाद तब शुरू हुआ, जब राज्य के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने 2020 और 2023 के बीच बेंगलुरु और अन्य स्थान में हुए दंगों के सिलसिले में गिरफ़्तार किए गए “निर्दोष छात्रों” के ख़िलाफ़ मामले वापस लेने के लिए मैसूर के कांग्रेस विधायक तनवीर सैत के अनुरोध की जांच करने के लिए प्रमुख सचिव (गृह) को एक नोट भेजा। ।

परमेश्वर ने कहा कि विधायक ने सरकार से बेंगलुरु के डीजे हल्ली, केजी हल्ली, शिवमोग्गा, हुबली और अन्य स्थानों पर विरोध प्रदर्शनों और दंगों के दौरान कई निर्दोष युवाओं और छात्रों के ख़िलाफ़ दर्ज किए गए “झूठे मामलों” की समीक्षा करने और क़ानून के अनुसार मामले वापस लेने का आग्रह किया था। इसलिए, उन्होंने गृह सचिव से “आवश्यक कार्रवाई करने” के लिए कहा था।

 

‘दिखने लगा असली रंग’

राज्य भाजपा ने कहा, कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के दो महीने के भीतर “अपना असली रंग उजागर” कर दिया है और वह इस “जिहादी” सरकार की हिंदू विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ लड़ना जारी रखेगी। पार्टी ने एक ट्वीट में कहा,’ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर एक स्पष्ट प्रतीक के साथ काम कर रहे हैं कि ‘हम एक समुदाय के अपराधियों को क्लीन चिट देंगे।’ क्या इससे भी अधिक शर्मनाक कुछ है ? यह पत्र दिखाता है कि यह सरकार पीएफ़आई आतंकवादियों के इशारों पर नाच रही है।”

भाजपा के कड़े विरोध के बाद परमेश्वर ने कहा कि उनका नोट कांग्रेस विधायक तनवीर सैत के अनुरोध पर आधारित था और इसका मतलब यह नहीं था कि मामले वापस लिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ”हमने इसे केवल प्रक्रिया के तहत रखा है और कुछ नहीं किया है।”

अगस्त 2020 में बेंगलुरु के डीजे हल्ली और केजी हल्ली इलाक़ों में पुलिस गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हो गयी और 50 से अधिक लोग घायल हो गये, जब मुस्लिम भीड़ ने कथित रूप से भड़काऊ सोशल मीडिया के बाद कांग्रेस विधायक के घर में तोड़फोड़ की और एक पुलिस स्टेशन पर हमला किया। विधायक के रिश्तेदार की पोस्ट से हिंसा शिवमोग्गा, हुब्बल्ली और राज्य के अन्य स्थानों तक भी फैल गई थी। इसके बाद के एक मामले में एक हिंदू कार्यकर्ता हर्ष की भी बेरहमी से हत्या कर दी गयी।

 

एनआईए के पास मामले

तत्कालीन भाजपा सरकार ने इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया था, जिसने कथित तौर पर दंगों में भाग लेने वाले 100 से अधिक युवाओं को गिरफ़्तार किया था। अदालतों में मामलों की आंशिक सुनवाई हो चुकी है, जबकि कई आरोपी अब भी न्यायिक हिरासत में हैं।

भाजपा महासचिव वी रविकुमार ने कहा कि राज्य सरकार राज्य में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय तुष्टीकरण की राजनीति का सहारा ले रही है। जहां पूर्व मंत्री अश्वथनारायण ने कहा कि सिद्धारमैया सरकार ने अपने “जिहादी एजेंडे” का खुलासा कर दिया है,वहीं एक अन्य पूर्व मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने कहा है कि अगर आरोपियों को दंडित नहीं किया जायेगा ,तो “हर्ष के परिवार के लिए न्याय कहां है ?”

जैसे ही विवाद बढ़ा, परमेश्वर ने और अधिक शांत स्वर में कहा, “कोई भी मामला एक बार में वापस नहीं लिया जा सकता है। जब भी कोई विधायक या संगठन सरकार को मामले वापस लेने के लिए लिखता है, तो उस अनुरोध को गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट उप-समिति के समक्ष रखा जाता है। “उप-समिति इस पर फ़ैसला लेगी कि मामला वापस लिया जाए या नहीं और इसे कैबिनेट के समक्ष रखा जायेगा। हमने केवल विधायक के अनुरोध को इसी प्रक्रिया में रखा है और कुछ नहीं किया है।”

तनवीर सैत ने भी दावा किया कि उन्होंने किसी भी समुदाय के निर्दोष युवाओं के लिए क्षमा का अनुरोध किया था, न कि उन लोगों के लिए, जिन्होंने विधायक के घर या डीजी हल्ली पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी। “सरकार को तय करना होगा कि निर्दोष लोग कौन हैं। दोषियों को सज़ा मिलने दीजिए।” लेकिन गृह मंत्री को लिखे उनके पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि “पुलिस ने एक समुदाय के लोगों को निशाना बनाया और गिरफ़्तार किया था।”

पुलकेशीनगर के कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास, जिनके घर को उनके एक रिश्तेदार की सोशल मीडिया पोस्ट के कारण भीड़ ने आग लगा दी थी, भीड़ के ग़ुस्से से वह इसलिए बच गये, क्योंकि वह अपने परिवार के साथ शहर से बाहर थे। श्रीनिवास इस क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम दोनों के बीच लोकप्रिय थे, उन्होंने 2019 विधानसभा चुनाव 50,000 से अधिक वोटों से जीता था। लेकिन, मई में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुल्लाओं और मौलवियों के दबाव के कारण कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पार्टी का टिकट देने से इनकार कर दिया था।