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क्यों राहुल गांधी की ज़मानत की लत उन्हें मुसीबत में डाल सकती है

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत द्वारा दो साल जेल की सज़ा सुनाये जाने के बाद ज़मानत मिल गयी है

सूरत की एक अदालत द्वारा आपराधिक मानहानि के एक मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दो साल की सज़ा सुनाये जाने के बाद आज उन्हें ज़मानत मिल गयी है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में एक रैली में राहुल गांधी ने एक बयान देते हुए कहा था- “सभी चोरों का एक ही सरनेम मोदी कैसे हो सकता है ?” कांग्रेस नेता को 15,000 रुपये की ज़मानत देनी पड़ी और उन्हें अपील करने की अनुमति के लिए 30 दिनों के लिए सज़ा पर रोक लगा दी गयी है।

यह पहली बार नहीं है जब गांधी को अदालत द्वारा सज़ा सुनाये जाने के बाद ज़मानत दी गयी है।

2015 में वायनाड के सांसद को उनकी मां और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ उस नेशनल हेराल्ड मामले में भी ज़मानत दी गयी थी, जिसे भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आगे बढ़ाया था।

नवंबर 2016 में महाराष्ट्र की भिवंडी अदालत ने आरएसएस कार्यकर्ता द्वारा दायर एक अन्य मामले में जूनियर गांधी को जमानत दे दी थी। गांधी ने दावा किया था कि आरएसएस ने महात्मा गांधी की हत्या की थी।

जबकि ज़मानत देश के नागरिक को प्रदान किए गए अधिकार का मामला है, कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि कई कथित अपराधों के लिए बार-बार ज़मानत किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ भी जा सकती है।

हम्मुराबी और सोलोमन के क़ानूनी विशेषज्ञ और प्रबंध भागीदार मनोज कुमार ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “कई कथित अपराधों के लिए बार-बार ज़मानत कोई अधिकार नहीं है। आगे जाकर, यह अदालत द्वारा सज़ा के मामलों में किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ भी जा सकती है। मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा दी गयी सज़ा और इस सज़ा के आधार सहित सभी प्रासंगिक तथ्यों पर विचार करने के बाद अपीलीय अदालत सहित समस्त अदालतों के पास ज़मानत देने का विवेक होगा।” । कुमार ने कहा, “अदालतों के पास व्यक्ति के आचरण और जांच में सहयोग के स्तर के आधार पर ज़मानत की शर्तों को संशोधित करने की शक्तियां हैं।”

दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 437(5) और 439(2) के तहत अदालत के पास किसी भी ज़मानत को बाद के चरण में भी रद्द करने की शक्ति है।

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि भारत में न्यायपालिका की प्रक्रिया पूरी तरह से स्वतंत्र बनी हुई है और देश के संविधान में इसका प्रावधान है।

यदि किसी सज़ायाफ्ता व्यक्ति को लगता है कि उसे अनावश्यक रूप से सज़ा सुनायी गयी है, तो वह हमेशा हाई कोर्ट में जा सकता/सकती है।

2019 में आरएसएस के एक अन्य कार्यकर्ता द्वारा दायर मानहानि के मामले में राहुल गांधी को मुंबई की एक अदालत ने ज़मानत दे दी थी। कांग्रेस नेता ने कार्यकर्ता-पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या को “भाजपा-आरएसएस विचारधारा” से जोड़कर एक टिप्पणी की थी।वह ज़मानत 15 हज़ार रुपये के मुचलके पर दी गयी थी।

 

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