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सिद्धारमैया की मुफ़्त चावल योजना फ्लॉप

मुफ़्त चावल देने के अपने तर्कहीन वादे को पूरा करने में असमर्थ कर्नाटक के मुख्यमंत्री हर किसी पर गड़बड़ करने का आरोप लगा रहे हैं (फ़ोटो: सौजन्य: ANI)

रामकृष्ण उपाध्याय  

“प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलो चावल मुफ़्त” देने का अतार्किक और अव्यवहारिक वादा करने और सत्ता में आने के बाद इसे लागू करने में असमर्थ होने के कारण कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया गाली-गलौच पर उतर आये हैं और हर किसी पर ग़रीबों की मदद के लिए अपनी इस पसंदीदा योजना में “गड़बड़” करने का आरोप लगा रहे हैं।

ज़ाहिर है कि उन्हें “अन्न भाग्य” योजना को लागू करने के लिए आवश्यक प्रति माह 2.5 लाख टन चावल प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है, लोग सवाल करने लगे हैं कि क्या राज्य में चावल की खपत के संबंध में कोई तर्कसंगत आकलन किया गया था। “लगभग 7.5 करोड़ लोगों में से केवल 60% लोग चावल खाते हैं, जबकि उत्तरी कर्नाटक में बाक़ी आबादी रागी या ज्वार पसंद करती है। आम तौर पर पांच सदस्यीय परिवार महीने में ज़्यादा से ज़्यादा 3 से 4 किलो चावल की खपत करता है। ऐसा होने पर सिद्धारमैया प्रति व्यक्ति 10 किलो देने के इच्छुक क्यों हैं ? इतने अधिक चावल का एक परिवार क्या करेगा ?” अब ये तमाम प्रश्न पूछे जा रहे हैं।

प्रारंभ में सिद्धारमैया ने भारतीय खाद्य निगम (FCI) पर 36.60 रुपये प्रति किलो पर 2.28 लाख टन चावल की आपूर्ति करने का वादा करने और बाद में इसे वापस लेने का आरोप लगाया था, वह आरोप मढ़ते हुए कहते हैं कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारी योजना में एक अड़ंगा लगाना चाहते हैं।” उन्होंने कहा कि एफसीआई के स्थानीय मुख्य कार्यालय द्वारा 8 जून को की गयी प्रतिबद्धता को 13 जून को “केंद्र सरकार के इशारे पर” वापस ले लिया गया था।

 

सिद्धारमैया के झूठ का पर्दाफ़ाश

लेकिन, दक्षिण बेंगलुरु से बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने दस्तावेज़ों की एक श्रृंखला जारी करके सिद्धारमैया के इस “झूठ” का पर्दाफ़ाश कर दिया है, जिसमें दिखाया गया था कि केंद्र में कृषि जिंसों पर एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने खुले बाज़ार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत राज्यों को चावल और गेहूं की बिक्री बंद करने के संबंध में 2 मई को एक चर्चा शुरू की थी, ताकि देश भर में क़ीमतों की स्थिरता बनाये रखने के लिए पर्याप्त स्टॉक रखा जा सके, और तदनुसार ही 8 जून को एक निर्णय लिया गया। सूर्या ने चुटकी लेते हुए कहा, “तो, यह स्पष्ट है कि ओएमएसएस की समीक्षा पर चर्चा कर्नाटक चुनाव से बहुत पहले शुरू हो गयी थी और ऐसा नहीं है कि यह निर्णय यह सुनिश्चित करने के लिए लिया गया था कि कांग्रेस की योजना विफल हो जाए। न तो प्रधानमंत्री मोदी और न ही भाजपा ने उस समय “सपना” आया था कि कांग्रेस कर्नाटक में सत्ता में आयेगी और उन्हें अपनी योजना को विफल करने की ज़रूरत है।”

 

यह इंगित करते हुए कि केंद्र पहले से ही हर महीने 5 किलो चावल की मुफ़्त आपूर्ति कर रहा है, भाजपा महासचिव सीटी रवि ने कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस सरकार को अपने चुनावी घोषणा पत्र के अनुसार 10 किलो चावल की आपूर्ति करनी चाहिए। प्रति परिवार प्रति व्यक्ति चावल, या उनके खातों में उतनी ही राशि डालें।” भाजपा के पूर्व मंत्री आर अशोक ने सरकार को खुले बाज़ार में गरीबों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए चावल ख़रीदने और लोगों को आपूर्ति करने की चुनौती दी।”

 

ख़रीद की तलाश

अपनी “प्रिय योजना” को लागू करने की कोशिश में ख़ुद को उलझाए रखने के बाद सिद्धारमैया ने पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से चावल की ख़रीद के लिए खोज शुरू कर दी है। खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री केएच मुनियप्पा ने मीडिया को बताया कि राज्य छत्तीसगढ़ सरकार के साथ बातचीत कर रहा है, जो चावल की आपूर्ति के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, “चावल की लागत और परिवहन लागत बहुत अधिक है। हमने मुख्य सचिव से छत्तीसगढ़ सरकार के साथ क़ीमतों पर बातचीत करने को कहा है।” संयोग से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार है और राज्य में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं।

जैसे ही इस योजना को लागू करने में असमर्थता को लेकर सरकार के भीतर निराशा बढ़ी है,वैसे ही उपमुख्यमंत्री और केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने घोषणा कर दी है कि केंद्र के पास पर्याप्त स्टॉक होने के बावजूद चावल देने से इनकार किये जाने और बीजेपी की “नफरत की राजनीति” के विरोध में केंद्र में राज्य भर में प्रदर्शन किया जायेगा।

सिद्धारमैया ने यह भी कहा कि “अन्न भाग्य योजना 1 जुलाई से ‘किसी भी क़ीमत पर’ लागू की जायेगी और हम केंद्र में भाजपा सरकार के ग़रीब विरोधी रुख़ के बारे में लोगों को बताना जारी रखेंगे।”