प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता इस वक्त सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है। और उनकी यह लोकप्रियता तब देखने को मिलती है जब वह किसी भी विदेशी दौरे पर जाते हैं। उस दौरान पुरी दुनिया के नेताओं से लेकर मीडिया हाउस, बिजनमैन और यहां तक की चीन-पाकिस्तान तक की नजर उनपर रहती है। भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व लेवल पर एक अलग ही मुकाम पर पहुंचा दिया है। अब भारत को एक और बड़ी उपलब्धी मिली है जिसके चलके पूरी दुनिया में भारत का डंका बजेगा। क्योंकि अब भारतीय कंपनियां भी देश के बाहर हथियार बनाएंगी और माना जा रहा है कि दोस्त रूस के साथ करार हो सकता है।
दरअसल, भारत और रूस के बीच इसी महीने की शुरुआत में हुए 2+2 डायलॉग में देश से बाहर हथियारों के निर्माण को लेकर सहमति बनी है। इसे लेकर कोई करार नहीं हुआ है, लेकिन दोनों देशों के बीच नॉन-पेपर एक्सचेंज हुआ है। इसके तहत सेंट्रल एशिया के देशों कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान में हथियारों के उत्पादन का प्रस्ताव है। यह उत्पादन इन देशों में स्थित सोवियत काल की फैक्ट्रियों में ही किया जाएगा।
मीडिाय में आ रही खबरों की माने तो, दोनों देशों के बीच इसे लेकर सहमति बनी है और आने वाले दिनों में इस पर प्रस्ताव पर आगे बढ़ सकते हैं। पीएम मोदी सेंट्रल एशिया के देशों को भारत के विस्तृत पड़ोसियों को दर्जा देते रहे हैं। हाल ही में इन देशों के विदेश मंत्रियों की मीटिंग भी दिल्ली में बुलाई गई थी। इस बैठक में अफगानिस्तान को लेकर चर्चा हुई थी, जिसे लेकर कहा जा रहा है कि भारत एक बार फिर से अपनी पैठ पड़ोसी मुल्क में मजबूत करने की स्थिति में आ गया है। अब यदि सेंट्रल एशिया के देशों में भारत हथियारों के उत्पादन का काम करता है तो यह किसी बड़ी समफलता से कम नहीं होगा। इसकी एक वजह यह भी है कि भारत लंबे समय से हथियारों के आयातकर्ता की बजाय एक्सपोर्टर बनना चाहता है, इस लिहाज से सेंट्रल एशिया के देशों में हथियार उत्पादन बड़ी सफलता होगी। सेंट्रल एशिया के ज्यादातर देशों में रूस के ही हथियारों का इस्तेमाल होता है। अब यहां की सोवियत काल की फैक्ट्रियों में भारत के साथ मिलकर रूस हथियारों का उत्पादन करेगा।
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कई रिपोर्टों में यह भी बताया जा रहा है कि, यहां बने हथियारों को सेंट्रल एशिया के देशों को दिया जाएगा। इसके अलावा भारत की जरूरतें भी पूरी हो सकेंगी। इसके साथ ही भारत को सेंट्रल एशिया के मुस्लिम बहुल देशों में अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगा। इससे अपगानिस्तान में भी भारत मजबूत स्थिति में आ सकेगा। हालांकि, भारत की अफगानिस्तान में एंट्री करना पाकिस्तान और चीन के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा।