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कसाई के हाथों से ऐसे बचाई जाएंगी गाय, जानकर आप भी कह उठेंगे ‘शाब्बास’

Kaushambi Cow Based Farming

Kaushambi Cow Based Farming: उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी में गौवंश (Kaushambi Cow Based Farming) को बचाने के लिए एक ऐसी कोशिश शुरू की गई है, जिसकी चारों तरफ चर्चा हो रही है। खेती ऐसी, जिससे लोगों को फायदा तो मिल ही रहा है। गौवंश की भी रक्षा हो रही है। भले ही आधुनिक युग में लोग मशीनों और खाद के जरिए फसलों की उपज बढ़ाने की बात कही जा रही हो, लेकिन यह स्वास्थ्य को भी उसी स्तर से खराब करती है। जब पुरातन खेती की बात होती है तो गौ आधारित खेती (Kaushambi Cow Based Farming) की बात सबसे अधिक की जाती है। कौशाम्बी (Kaushambi Cow Based Farming) में जब लोगों ने यहां पर प्राकृतिक संसाधनों को बेहतर बनाने का प्रयास किया तो एक बार फिर वैदिक खेती की चर्चा शुरू। योजना तैयार की गई। आगे आए राजेंद्र प्रसाद। उनकी एक कोशिश ने लोगों को अपनी सोच बदलने के लिए मजबूर किया।

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बदल गए इलाके के हालात…बेहतरीन योजना
आज इलाके के हालात बदले हुए हैं। लोगों ने प्राकृतिक संसाधनों का बेहतरीन उपयोग की योजना तैयार की। इसके आधार पर कार्य शुरू किया गया। नजर गौवंश को बचाने पर रही। गौ आधारित खेती इसका सबसे बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है। गौ आधारित कृषि यानि- गाय पर आधारित खेती की परंपरा। इस परंपरा में गाय की सेवा भी होती है। गाय से मिलने वाले गोबर और मूत्र से तैयार होने वाली खाद ‘जीवामृत’ के प्रयोग से मिटटी की गुणवत्ता भी सुधारी जा सकती है। इस परिकल्पना को मूरतगंज ब्लाक के एक छोटे से गांव देवरा में राजेंद्र प्रसाद साकार करने की कोशिश में लगे है।

क्या है पूरा मामला?
मूरतगंज विकासखंड के नरवर पट्टी के मजरा देवरा के रहने वाले राजेंद्र प्रसाद ने गांव के गौरव को वापस दिलाने का सपना गौ आधारित खेती के जरिए देखा है। इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने गौ माता को आधार बनाया। उन्होंने अपनी गौ शाला श्रीकृष्ण कामधेनु गौशाला में देशी गायो का पालन शुरू किया। देशी गाय की विभिन्न प्रजातियों की गायो का पालन पोषण कर उन्होंने न सिर्फ गांव के युवाओ के प्रेरणा श्रोत बनकर सामने आए, बल्कि गांव के युवा बेरोजगार बच्चे और बच्चियों को आत्म-निर्भर बनाने की दिशा में काम शुरू किया। इसके लिए वर्ष 2018 में एक ट्रस्ट का निर्माण कराया। इसके जरिए गांव की विलुप्त हो रही परंपरा को जीवंत करने का प्रयास शुरू किया है। इसमें वह ग्राम पुस्तकालय, लड़कियों के लिए सिलाई कढ़ाई प्रशिक्षण, युवकों के लिए जैविक खेती के महत्व के साथ गौ आधारित खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।

अपने खेतों में किया प्रयोग
गाय आधारित खेती को अपना कर राजेंद्र प्रसाद ने सबसे पहले अपने खेतों में प्रयोग किया। नतीजे एक साल के बाद अब चौकाने वाले हैं। खेत रासायनिक उवर्रक के प्रयोग से अनाज की पैदावार देते और ज्यादा से ज्यादा सिचाईं खोजते थे। वह गाय के मल-मूत्र से तैयार जीवामृत नमक जैविक उर्वरक से बंजर हो रही जमीन को संजीवनी दे रहे हैं। इसने पैदावार को बढ़ाया है। जैविक खेती ने लोगों को बीमारी की चपेट में आने से भी बचाया है। राजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि गाय अपने आप में चलता फिरता चिकित्सालय है। इसका जितना प्रयोग मानव जीवन के लिए उपयोगी है। उससे कहीं ज्यादा उपयोगी खेतों के लिए है। इसका प्रयोग अब वह स्वयं कर लोगों को प्रयोग करने की प्रेरणा देते हैं। राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि खेतों के लिए जीवामृत किसी अमृत से कम नहीं है। इसके प्रयोग से खेत में मृतप्राय हो चुके मित्र कीड़े नवजीवन पाते हैं। एक नई ऊर्जा के साथ जमीन की उर्वरा शक्ति को तैयार करने में लग जाते हैं। प्रकृति के अनुपम उपहार गौ-आधारित कृषि के गुण सीखने वाले युवा भी बताते है कि वह अब शहरों की चकाचौध से बेहतर गांव की शांत खेत और पक्षियों के कलरव है। इसमे वह अपनी जीवन की गाड़ी को भी बेहतर तरीके से चला रहे हैं।

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गौ आधारित खेती का पुराना इतिहास
देश में गौ आधारित खेती का बहुत पुराना इतिहास है। वैदिक काल में समद्ध खेती का मुख्य कारण कृषि का गौ आधारित होना ही था। वैदिक युग में प्रत्येक घर में गोपालन और पंचगव्य आधारित कृषि होती थी। भारतीय मनीषियों ने संपूर्ण गौवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास एवं संवर्धन के लिए आवश्यक समझा और ऐसी व्यवस्था विकसित की थी। इसमें जनमानस को विशिष्ट शक्ति बल और सात्विक वृद्धि प्रदान करने के लिए गौ दुग्ध, खेती के पोषण के लिए गोबर-गौमूत्र युक्त खाद, कृषि कार्याे और भार वहन के लिए बैल मिलते थे। ग्रामद्योग के अंतर्गत पंचगव्यों का घर-घर में उत्पादन किया जाता था।

सौजन्य से- नवभारत टाइम्स