ब्रिटिश सरकार ने एक बार फिर से भारत के आखिरी वायसराय एडविना माउंटबेटेन की डायरी और चिट्ठियों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। एंड्रयू लोवनी नाम के एक लेखक ने डायरी और चिट्ठियों को लेकर चार साल तक इंतजार किया और इस दौरान उन्होंने करीब ढाई करोड़ रुपये भी खर्ज किए, लेकिन अंत में उन्हें निराशा हांथ लगी है। ब्रिट्रिश सरकार औऱ साउथहैप्टन यूनिवर्सिटी ने माउंटबेटन की डायरी और चिट्ठियों को सार्वजनिक करने से साफ इनकार कर दिया है। लेखक एंड्रयू लोवनी का मानना है कि माउंटबेटन की डायरी से भारत-पाकिस्तान बंटवारे और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू-एडविना के रिश्तों को लेकर कई खुलासे हो सकते हैं।
उस लेटर की कुछ पक्तियां हिस्सा हैं जिसे जवाहरलाल नेहरू ने अप्रैल 1948में एडविना माउंटबेटन को भेजा था। जिसमें लिखा था कि, मैं चाहता हूं कि कोई मुझसे समझदारी से और भरोसे के साथ बात करे, जैसा कि तुम कर सकती हो… मैं खुद पर से भरोसा खो रहा हूं… जिन मूल्यों को हमने पाला उनका क्या हुआ, क्या हो रहा है? हमारे महान विचार कहां हैं?' नेहरू और एडविना ने एक दूसरे को कई पत्र भेजे थे। इससे पता चलता है कि उनके बीच कैसे संबंध थे और वे किस तरह सोचते थे। दरअसल, बंटवारे के बाद सांप्रदायिक हिंसा और फिर महात्मा गंधी की हत्या के बाद उथल-पुथल का माहौल बन गया था। इस दौरान नेहरू के लिए एडविना ही उनकी सहारा बनीं क्योंकि, उनपर वो ज्यादया भरोसा करते थे। अगर ब्रिटिश कोर्ट डायरी और चिट्ठियों को सार्वजनिक करने से मना कर दिया। माना जा रहा है कि, अगर ऐसा नहीं हुआ तो कई सारे राज खुल जाते।
एक पत्र में एडविना ने लिखा है कि, इस सुबह तुम्हें ड्राइव करके जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगा। तुमने मुझमें शांति और खुशी की एक अजीब भावना भर दी है। शायद मैंने भी तुम्हारे साथ ऐसा ही किया हो।' दोनों के बीच रिश्तों की गर्मजोशी ही ऐसी थी कि माउंटबेटन के भारत आने के 10दिनों के भीतर ही वीपी मेनन ने कहा था कि एडविना के साथ नेहरू के रिश्ते कई लोगों की आंखों में चुभ सकते हैं। एडविना की छोटी बेटी ने बाद में बताया था कि भारत से लौटने के बाद मां डिप्रेशन में चली गई थीं। एडविना रोज नेहरू को खत लिखा करतीं। पहले उन पर प्राइम मिनिस्टर लिखा होता। बाद में वह खुद के लिए लिखने लगीं। इसके जवाब में राजनयिक लिफाफे में नेहरू खत भेजा करते और जब उनके खत का जवाब नहीं आता तो वो फोन कर दिया करती थीं। अब इस इन खतों को लेकर लोगों को जानने कि इच्छा है। यहां तक कि पत्रों पर आधारित कई किताबें भी लिखा जा चुकी हैं। दोनों के बीच कैसा रिश्ता था यह जानने की लालसा हर किसी में बनी हुई है।
कोर्ट के मना करने के बाद लोवनी ने कहा है कि, मुझे नहीं लगता कि जो कुछ बचा है उसमें कोई सनसनीखेज बात छिपी है। ट्राइब्यूनल ने पाया कि साउथहैंपटन यूनिवर्सिटी के पास नेहरू और एडविना के बीच भेजे गए खत नहीं हैं। जज को बताया गया कि यूनिवर्सिटी फिजिकली पेपर्स को अपने परिसर में सुरक्षित रख रही थी लेकिन वह लॉर्ड ब्रेबोर्न के लिए ऐसा कर रही थी। यूनिवर्सिटी के पास इसे करीब 9,600रुपये में खरीदने का भी विकल्प था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इस केस के लिए लोवनी ने करीब 2से 3करोड़ रुपये खर्ज किए और बाकी पैया उन्होंने क्राउडफंडिंग से जुटाया। उन्हें शक है कि डायरी और पत्रों से भारत के बंटवारे और एडविना के रिश्ते के बारे में राज खुल सकते हैं। इसी वजह से पत्रों को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। एडविना मोहम्मद अली जिन्ना को पंसद नहीं करती थीं। उन्होंने कहा, एडविना की प्रकाशित डायर में जिन्ना को मनोरोगी होने का जिक्र है। मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान से संबंध इससे प्रभावित हो रहे हैं। लेखक का कहना है कि, यह लोगों के लिए एक तरह से जीत है क्योंकि, मैं 35,000पेज रिलीज करा सका। मुझे अपनी किताब के लिए इसकी जरूरत थी, जो तीन साल पहले आई। मैंने इसे दूसरे स्कॉलरों के लिए भी किया और इसके लिए मुझे काफी खर्च करना पड़ा जबकि निजी रूप से यह मेके किसी काम का नहीं है।
सुनवाई के दौरान नवंबर 2021 में साउथहैंम्पटन यूनिवर्सिटी ने माउंटबेटन डायरीज और पत्रों को जारी करना शुरू किया था और अब तक 35,000 पेज सार्वजनिक हो चुके हैं लेकिन 150 पैसेज या अंशों को जारी नहीं किया गया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केवल दो पैसेज को जारी किया जाए और दो के कुछ हिस्से को सार्वजनिक किया जाए और बाकी जारी नहीं होंगे क्योंकि उनमें क्वीन के साथ सीधे संवाद हुआ है या महारानी या शाही परिवार के किसी सदस्य या माउंटबेटन परिवार के बारे में निजी जानकारी है। इसमें भारत और पाकिस्तान के साथ ब्रिटेन के संबंधों के लिहाज से उपयुक्त जानकारी नहीं है।