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नेताजी के दुस्साहस से डरते थे अंग्रेज़: स्मृति व्याख्यान में NSA डोभाल

नेताजी सुभाष चंद्र बोस (फ़ोटो: Twitter/@VinodDX9)

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने शनिवार को कहा कि “धृष्टता” और “दृढ़ता” के गुणों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक उत्कृष्ट नेता बना दिया। डोभाल दिल्ली में पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्मृति व्याख्यान में बोल रहे थे।

एनएसए ने कहा कि नेताजी में सभी बाधाओं के ख़िलाफ़ अकेले दम पर अंग्रेज़ों से लोहा लेने का दुस्साहस था। उन्होंने एक पराजित सेना को एक बड़े उद्देश्य के पीछे लामबंद करके प्रेरित कर दिया, जय हिंद, “इत्तेहाद, इत्माद, कुर्बानी” (एकता, विश्वास, बलिदान) जैसे आदर्श वाक्य दिए और यह सुनिश्चित किया कि लोग जाति, धर्म और लिंग के भेद से ऊपर उठकर अपने एकमात्र उद्देश्य के पीछे लग जायें।यह एकमात्र उद्देश्य दरअस्ल औपनिवेशिक शासन को पूर्ण रूप से समाप्त करने का लक्ष्य था।

डोभाल ने कहा कि नेताजी का दूसरा गुण उनका तप था।तप,अर्थात् तमाम बाधाओं के बावजूद दृढ़ रहने और अपने लक्ष्य को कमज़ोर न पड़ने देने की उनकी क्षमता। स्वतंत्रता के समय नेताजी होते, तो भारत का विभाजन नहीं होता। डोभाल ने कहा, “जिन्ना ने कहा था कि मैं केवल एक नेता को स्वीकार कर सकता हूं और वह सुभाष बोस हैं।’’

“सुभाष चंद्र बोस भारतीयों के लिए केवल प्रभुत्व का दर्जा नहीं,पूर्ण स्वतंत्रता चाहते थे। वह चाहते थे कि भारतीय पक्षियों की तरह स्वतंत्र महसूस करें और देश की पूर्ण स्वतंत्रता से कम पर कभी समझौता न करें। डोभाल ने स्मारक व्याख्यान में कहा कि यह एक ऐसी मानसिकता है, जो भारत को आगे बढ़ा सकती है।हम जानते हैं कि हम 2047 में अपनी आज़ादी के शताब्दी वर्ष की ओर हैं।

 

तो क्या नेताजी के प्रयास सफल हुए ?

इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली, जिनके नेतृत्व में भारत को स्वतंत्रता मिली थी, उन्होंने पद छोड़ने के बाद भारत की यात्रा के दौरान बंगाल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और कार्यवाहक राज्यपाल न्यायमूर्ति जेबी चक्रवर्ती के एक प्रश्न के उत्तर में जो कुछ कहा था।

डोभाल ने कहा कि जब उनके मित्र जस्टिस चक्रवर्ती ने अंग्रेज़ों के जल्दबाज़ी में भारत छोड़ने के वास्तविक कारण के बारे में पूछा, तो एटली ने कई कारणों का हवाला दिया, उनमें से प्रमुख भारतीय सेना और नौसेना के कर्मियों के बीच ब्रिटिश ताज के प्रति वफादारी का क्षरण था। यह नेताजी की सैन्य गतिविधियों का परिणाम था।

एनएसए के अनुसार, एटली ने कहा था कि हम नेताजी बोस और उनके विचारों से डरते थे। रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह, जबलपुर विरोध ने हवा में उस तिनके के रूप में काम किया, जिसने अंग्रेज़ों के लिए 1857 की पिछली यादें ताज़ा कर दी थी। उन्हें डर था कि नेताजी के विचारों की भावना से प्रभावित मित्र राष्ट्रों के लिए द्वितीय विश्व युद्ध जीतने वाले 25 लाख भारतीय सैनिक अंग्रेज़ों के लिए एक बुरा सपना होंगे, इसलिए उन्होंने जल्दबाज़ी में भारत छोड़ देने का फ़ैसला किया।

डोभाल ने स्मृति व्याख्यान में कहा कि “सुभाष बोस की विरासत को हमारा मार्गदर्शन करते रहना चाहिए। इतिहास नेताजी के प्रति निर्दयी रहा है। इसलिए, लाल क़िले में एक संग्रहालय का निर्माण, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में उनके नाम पर एक द्वीप का निर्माण, प्रधानमंत्री द्वारा देश में एक नयी मानसिकता बनाने के प्रयास का हिस्सा है।

नेताजी का राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दर्शन अपने समय से कहीं आगे का था।उनका मानना था कि आज़ादी के बाद उनकी प्राथमिकता एक मज़बूत सेना का निर्माण था। हमें कभी भी अपनी सुरक्षा को कमज़ोर नहीं होने देना चाहिए, अन्यथा हम इसे जाने-समझे बिना ही बिखर जायेंगे।

नेताजी एक मज़बूत रक्षा उद्योग चाहते थे। नियोजन मॉडल के माध्यम से आर्थिक स्वतंत्रता के उनके दर्शन का एक संदर्भ था। उस समय पूंजीवाद को उपनिवेशवाद के पर्याय के रूप में देखा जाता था और इसे शोषणकारी माना जाता था। इसलिए, नेताजी के वामपंथी के रूप में सीधे-सीधे वर्णन को अधिक निष्पक्ष रूप से देखने की आवश्यकता है। यह देखते हुए वह गहरे धार्मिक नज़र आते थे कि वे स्वामी विवेकानंद और श्री अरबिंदो से प्रभावित थे। उन्होंने वेदों को पढ़ा था, लेकिन कट्टर धर्मनिरपेक्ष बने रहे। डोभाल ने कहा कि वह अंदर से एक कट्टर हिंदू थे।

 

आज भारत क्या करे,इसे लेकर नेताजी क्या चाहते थे ?

वह चाहते कि 1.4 बिलियन भारतीयों को अपने पेट में लगी आग से बुझाये और कल के अपने प्रदर्शन से बेहतर प्रदर्शन करे। भारत की सबसे बड़ी संपत्ति उसका मानव संसाधन है। “अगर हम अपने श्रम को हर साल अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकते हैं, तो 2050 तक जब हम वैश्विक कार्यबल का 40% योगदान देंगे, तो हम एक ताक़त बन चुके होंगे। हमारा मानव संसाधन हमारी एक बड़ी पूंजी है और इसे राष्ट्रवादी होना चाहिए। दुनिया में भारत के प्रति कोई विरोध नहीं हो। हमें आईसीईटी जैसी पहलों के माध्यम से महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों को देश में लाना चाहिए। भारत एक लागत प्रभावी और उत्पादक गंतव्य देश है। नेताजी ने भारतीयों में विश्वास जताया। डोभाल ने कहा कि हमारा काम इस विरासत को आगे बढ़ाकर लोगों की सेवा कर सकता है।