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Narendra Modi खुला आसमान चादर और धरती बिछौना, गुड़ चना खाकर गुजारे दिन

Pm Narendra Modi Struggle

Pm Narendra Modi Struggle: बिना संघर्ष के कोई अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पाता। इसके लिए दिन-रात नहीं देखा जाता सिर्फ मंजिल की ओर निरंतर चलते रहना होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही संघर्ष (Pm Narendra Modi Struggle) की बात करें तो वो आज जिस मुकाम पर हैं उसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत नहीं बल्कि कड़ी तपस्या की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंदर देश के लिए कुछ कर जाने की इच्छा बचपन से ही थी, तभी तो वो पहले भारतीय सेना में शामिल होना चाहते थे लेकिन, आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के चलते उन्हें अपने इस सपने को त्यागना पड़ा। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी रास्ते जैसे-जैसे मिले वो चलते गए। उनके संघर्ष की कहानी लाखों-कोरोंड़ों लोगों के लिए प्रेरणा है। पीएम मोदी की हिंदी सुन हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। गुजराती समझने वाले पीएम मोदी बचपन में जब ट्रेनों में मुसाफिरों को चाय बेचा करते थे तब वो हिंदी भी सीख लिए। 17 सितंबर को 1950 को जन्मे पीएम मोदी (Pm Narendra Modi Struggle) के जिवन में एक वो भी समय आया जब उन्हें सिर्फ चना और गुड़ खाकर सोना पड़ता था। उनके जन्मदिन पर कुछ ऐसे किस्से हैं जो उनकी शख्सियत को परिभाषित करते हैं।

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किस्सा- 1 (गुड़-चना ही था सहारा)
ये कहानी है एक मेडिकल अप्ताल के डॉक्टरों के साथ मीटिंग की, जिसमें काफी रात हो गई। गुजरात के भाजपा नेता मिहिर पंड्या बताते हैं कि, मीटिंग काफी लंबा खिंच गया। इसी दौरान डॉक्टरों ने मोदी से पूछा कि अस्पातल में इतनी देर हो गई है, खाने की आपकी व्यवस्था क्या है। मिहिर बताते हैं कि, ‘मोदी साहब ने बताया था कि अब मैं खानपुर कार्यालय जाऊंगा। वहां कार्यालय के बाहर एक पत्थर पड़ा है। उस पत्थर के नीचे एक पर्ची रखी होगी। उसमें एक नाम लिखा होगा कि आज इस बंदे के घर आपको खाना खाने के लिए जाना है… मोदी साहब ने बताया कि कई बार ऐसा भी होता है कि पत्थर के नीचे चिट्ठी नहीं भी होती, ऐसे में फिर चना और गुड़ खाकर वहां सो जाना है।

मिहिर कहते हैं कि, पत्थर के नीचे पर्ची नहीं मतलब उस रात खाना नहीं है। ये परेशान करने वाली बात है लेकिन, सामान्य तरीके से इस बात को वही आदमी किसी को बता सकता है जिसके दिल में देश के लिए कुछ करने की इच्छा है।

किस्सा- 2 (सैनिकों के लिए जब घर-घर बनवाई चाय)
पीएम मोदी देश की सेना में भर्ती होना चाहते थे लेकिन, आर्थिक स्थिति गवाही नहीं दे सकी। लेकिन, देश प्रेम के लिए तो उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से झोंक दिया था। बात 1971 की है जब लड़ाई छिड़ चुकी थी। पीएम मोदी की उम्र उस वक्त 21-22 साल रही होगी। पीएम मोदी के करीबी (जो कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं) प्रकाश मेहता बताते हैं कि, अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से आर्मी जा रही थी। हमने मीटिंग की कि सबको चाय पिलानी है, तो हमने तय किया कि स्टेशन पर हम बड़े बर्तन में चाय बनाकर गरम-गरम पिलाएंगे। लेकिन मोदी बोले कि ऐसे नहीं करना है। लोगों से बोलिए कि हर एक घर से थर्मस में 5-5, 10-10 कप चाय लेकर आएं। इस तरह से पूरा समाज स्टेशन पर आएगा चाय देने के लिए और हमारे सैनिकों का उत्साह बढ़ेगा। पूरे समाज को जोड़ने का यह काम उन्होंने उस समय पर किया था।

किस्सा- 3 (सर्दी में बाहर ही सो गए)
पीएम मोदी के जिवन में एक दो किस्से नहीं बल्कि कई सारे हैं। दरअसल, जिसका जिवन सिर्फ संघर्ष से भरा होता है उसके जिवन में किस्सों की कमी नहीं होती है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब प्रचारक हुआ करते थे तब वो गुजरात के संघ कार्यकर्ता महेश दीक्षित के घर आते जाते रहते थे। ठंड का मौसम था और पीएम मोदी एक दिन उनके घर रात के काफी देर से पहुंचे। इस किस्से के बारे में दीक्षित बताते हैं कि, वह और उनकी पत्नी सो चुके थे। घर के बाहर पोर्च में एक लकड़ी का बोर्ड पड़ा हुआ था। उन्होंने अपना झोला खूंटी पर लटका दिया और उसी लकड़ी के बोर्ड पर सो गए। सुबह जब दीक्षित सूर्य देवता को अर्घ्य देने बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि कोई सोया हुआ है। पूजा के बाद जब उन्होंने पास जाकर देखा तो नरेंद्र मोदी बोर्ड पर सोए हुए थे।

इसके बाद जब वो उनके पूछे कि, भाई आपने ऐसा क्यों किया। इतनी ठंडी में आप बाहर सोए। तो इसबर वो जवाब देते हैं कि, मैं आधी रात को आया था। मैं इतनी रात को आपको उठाऊं, आप उठ तो जाएंगे लेकिन मेरे घर में आने के बाद मेरी बहन की तकलीफ शुरू हो जाती। मेरे लिए क्या खाना है, क्या व्यवस्था करनी है। मेरी व्यवस्था में पूरी रात उसकी निकल जाएगी। इसी वजह से मैंने आपको नहीं उठाया। मैं नहीं चाहता था कि मेरी वजह से मेरी बहन को कोई तकलीफ हो।

किस्सा- 4 (चेहरे ढंककर करते थे सर्वे)
पीएम मोदी जब 90 के दशक में संगठन के लिए काम करते थे वो बड़ी रैली में कभी भी मंच पर नहीं बैठते थे। वो ग्राउंड में जाकर लोगों के बीच सर्वे करते थे। चंडीगढ़ के भाजपा नेता गजेंद्र शर्मा इसपर कहते हैं कि, बड़ी रैलियां के दौरान वो इस बात का पड़ताल किया करते थे कि इंचार्ज ने कितनी भीड़ जुटाई है। आमतौर वह पहले ही नोट कर लिया करते थे कि बताओ भाई साहब कितने लोगों को लेकर आओगे। कोई कहता 200 आदमी, 400 आदमी। इसके बाद रैली के समय मोदी क्या करते थे कि वह सभा स्थल में घूमते थे और यह चेक करते थे कि कौन कितने बंदे लाया। इसके बाद जब अगली मीटिंग होती तो उसमें पूछते थे कि, बोलो भाई, आप तो बोल रहे थे कि 200 बंदे लाओगे और आदमी पांच आए थे। दूसरे से पूछते कि आपने 100 का वादा किया और 2 आदमी लेकर आए थे। इस तरह से उनका अप्रोच थोड़ा अलग था।

उन दिनों का एक दिलचस्प वाकया सनाते हुए शर्मा कहते हैं, सेक्टर 22 में रैली थी और पीएम मोदी भीड़ में घूम रहे थे। वो शॉल ओढ़े हुए थे जिससे उनका चेहरा ढंका हुआ था। लेकिन, गौर से देखने पर पहचान गया। इसके बाद मैं जब उनके पास गया तो वो बोले, चुप रहो… किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि मैं क्या कर रहा हूं। तुम भी घूमो और देखों कि कितने आदमी आए हैं। इस तरह से वह रैलियों में सर्वे किया करते थे।

किस्सा- 5 (अफसरों से पहले होती थी खबर)
इस किस्से के बारे में महाराष्ट्र के सुनील लोढ़ा कहते हैं कि, वह गुजरात में एजुकेशन काउंसलिंग का काम करते थे। उन दिनों खमार नाम के एक डीएफओ थे। उनका लड़का मुझसे काउंसलिंग लेता था, तो काफी बार घर पर जाना होता था। एक बार ऐसे ही बातचीत होने लगी तो मैंने पूछा कि नरेंद्र मोदी के सीएम बनने के बाद कैसा चल रहा है काम। उन्होंने बताया कि नरेंद्र भाई के साथ मीटिंग के लिए हम अलग-अलग विषयों पर कम से कम 10 सवालों पर होमवर्क करके जाते थे कि ये भी पूछ सकते हैं ये भी पूछ सकते हैं।

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उन्होंने कहा कि उन 10 सवालों की छोड़िए, मोदी ने एक ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब हमारे पूरे डिपार्टमेंट के पास नहीं था। एक घटना ऐसी घटी थी जिसके बारे में पूरे डिपार्टमेंट को भनक तक न थी। मोदी ने तुरंत कहीं फोन लगाया और उससे बात करके घटना के बारे में अपडेट अधिकारियों को दिया। मतलब डिपार्टमेंट के लोगों को पता ही नहीं रहता था कि ऐसा भी कुछ हुआ है और सीएम को सेकेंडों में खबर पहुंच जाती थी। सुनील कहते हैं कि वह यशस्वी सीएम और पीएम हैं उसकी वजह यह है कि उनकी खुद लोकल लेवल तक डायरेक्ट पहुंच और घनिष्ठता रहती है।