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1971 Indo-Pak War: इंडियन नेवी को देखते ही आज भी पाकिस्तानियों को समुदंर में आ जाता है पसीना

1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई

पाकिस्तान और भारत के बीच कई लड़ाईयां हुईं हैं। इसमें से एक लड़ाई 1971 में हुई थी जिसे लेकर कई किताबें लिखी गई और हर किताब में कई खुलासे हुए। 1971 की लड़ाई से पहले भारत के नौसेनाध्यक्ष एडमिरल एसएम नंदा ने ब्लिट्ज़ अख़बार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने नौसेना के अपने करियर की शुरुआत कराची से की थी। उन्होंने आगे कहा कि आज भी उन्हें मुझे काराची के बंदरगाह के बारे में हर चीज याद है और मौका मिलेगा ता वहां आग लगेन से नहीं चूकुंगा।

सोवियत संघ से खरीदीं थीं मिसाइल बोट

भारत ने अपने नौसैनिक ठिकानों की रक्षा के लिए सोवियत संघ से कुछ मिसाइल बोट ख़रीदने का फ़ैसला किया। कैप्टेन केके नैयर के नेतृत्व में भारतीय नौसैनिक अधिकारियों का दल सोवियत संघ भेजा गया ताकि वो सोवियत विशेषज्ञों से इस जटिल मिसाइल बोट को चलाने का प्रशिक्षण ले सकें। ये बोट रक्षा करने के लिए थी हमला करने के लिए नहीं। जनवरी 1971 में इन मिसाइल बोट्स को सोवियत संघ से भारत लाया गया। हर मिसाइल बोट का वज़न करीब 180 टन था। पता चला कि मुंबई बंदरगाह में बड़े जहाज़ से इन बोटों को उतारने के लिए ज़रूरी क्रेन उपलब्ध नहीं है। तब इनको कोलकाता ले जाया गया।

कोलकाता से मुंबई लाई गईं थीं रशियन बोट

अब दिक्क़त आई कि इन्हें बंबई कैसे ले जाया जाए? कई प्रयोगों के बाद लेफ़्टिनेंट कमांडर क्वात्रा ने एक टोइंग गैजेट बनाया, जिसकी मदद से इन आठ मिसाइल बोटों को आठ नौसैनिक पोतों द्वारा टो करके कोलकाता से मुंबई ले जाया गया। दूर के लक्ष्य को बर्बाद करने के लिए इन मिसाइल बोटों से कई अभ्यास किए गए। नौसैनिक अधिकारी इन मिसाइल बोटों की रडार रेंज और उनकी मिसाइलों का सटीक निशाना देख कर आश्चर्यचकित रह गए। ये तय किया गया कि अगर भारत पाकिस्तान युद्ध शुरू होता है तो इन मिसाइल बोटों का इस्तेमाल कराची पर हमले के लिए किया जाएगा।

एक-एक कर डुबोए पाकिस्तान नेवी के कई जंगी जहाज

चार दिसंबर, 1971 की रात तीन मिसाइल बोट्स निपात, निर्घट और वीर कराची के लिए रवाना हुई। उनको दो पेट्या क्लास फ़्रिगेट किल्टन और कछाल टो करके ले जा रहे थे।1971 के युद्ध के दौरान भारत के नौसेनाध्यक्ष रहे एडमिरल एसएम नंदा अपनी आत्मकथा 'द मैन हू बॉम्ब्ड कराची' में लिखते हैं, ''इसकी आशंका थी कि दिन के दौरान कराची के तट पर लगे रडार इन मिसाइल बोटों की गतिविधियों को पकड़ सकते थे और उन पर हवाई हमले का ख़तरा बन सकता था। इसलिए तय किया गया कि हमला रात में किया जाएगा। सूरज डूबने से पहले तक ये मिसाइल बोट कराची में मौजूद युद्धक विमानों की पहुँच से बाहर रहेंगे। रात में तेज़ी से अपना काम कर वो सुबह होते-होते फिर पाकिस्तानी वायुसेना की पहुँच से बाहर निकल जाएंगे।

पीएनएस खैबर को ध्वस्त कर 1965 का लिया बदला

पाकिस्तानी नौसेना का पोत पीएनएस ख़ैबर कराची से दक्षिण पश्चिम में गश्त लगा रहा था। ये वही पोत था, जिसने 1965 के युद्ध के दौरान भारत के द्वारका नौसैनिक ठिकाने पर हमला बोला था। इंडियन डिफ़ेंस रिव्यू के जुलाई, 1990 के अंक में टास्क ग्रुप के कमांडर केपी गोपाल राव ने एक लेख में इस अभियान का वर्णन करते हुए लिखा था, ''ख़ैबर को रात 10 बजकर 15 मिनट पर पता चल पाया कि भारत के पोत कराची की तरफ़ बढ़ रहे हैं। उसने अपने रास्ता बदल हमें पकड़ने के लिए अपनी गति तेज़ कर दी। 10 बजकर 40 मिनट पर जब ख़ैबर हमारी रेंज में आ गया, निर्घट ने उस पर पहली मिसाइल दागी। 'ख़ैबर ने भी अपनी विमानभेदी तोपों से गोले चलाने शुरू कर दिए, लेकिन वो मिसाइल को ख़ुद को लगने से नहीं रोक पाया। उसके बॉयलर रूम में आग लग गई। तभी मैंने उस पर दूसरी मिसाइल दागने का आदेश दिया। दूसरी मिसाइल लगते ही उसकी गति शून्य हो गई और पोत से गहरा धुआँ निकलने लगा। 45 मिनट के बाद पीएनएस ख़ैबर कराची से 35 मील दक्षिण पश्चिम में डूब गया।

इन मिसाइल बोटों को आदेश थे कि कराची की तरफ़ जितनी संभव हों, उतनी मिसाइलें दाग़ी जाएं। आइएनएस निपट को अपने रडार पर कीमारी तेल टैंक दिखाई दिए। जब उनकी रेंज सिर्फ़ 18 मील रह गई तो निपात ने उन तेल टैंकों पर भी एक मिसाइल दाग दी। कराची पर 6 दिसंबर को भी 'ऑपरेशन पाइथन' कोडनेम से एक और हमला किया जाना था, लेकिन उसे ख़राब मौसम और खराब समुद्र की वजह से स्थगित कर दिया गया।

4 दिसंबर 1971 की वो भयानक रात, कराची आज भी नहीं भूल पाता

इस हमले के दौरान कराची बंदरगाह पर कई मिसाइल दागे गए। सारी मिसाइल सटीक निशाने पर लगी। इस ऑपरेशन के खत्म होने पर कराची के तेल डिपो में लगी आग को सात दिनों तक नहीं बुझाया जा सका। अगले दिन जब भारतीय वायुसेना के विमान चालक कराची पर बमबारी करने गए तो उन्होंने रिपोर्ट दी, ये एशिया का सबसे बड़ा बोनफ़ायर था। कराची के ऊपर इतना धुआं था कि तीन दिनों तक वहाँ सूरज की रोशनी नहीं पहुंच सकी। पाकिस्तान की नौसेना को इससे इतना धक्का लगा कि उसने अपने सभी पोतों को कराची बंदरगाह के अंदरूनी इलाके में बुला लिया।

एडमिरल गोर्शकॉव नौसैनिकों से मिलने भारत आए

सोवियत उपग्रहों के ज़रिए कराची के आसपास लड़ी जाने वाली इस नौसैनिक लड़ाई के दृश्य सोवियत नौसेना प्रमुख एडमिरल गोर्शकॉव के पास पहुंच रहे थे।एडमिरल गोर्शकॉव को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि जिन मिसाइल बोटों को उन्होंने भारत को उसके नौसैनिक ठिकानों के रक्षण के लिए दिया था, वही मिसाइल बोट्स कराची पर हमला करने में इस्तेमाल की जा रही थीं।

इंडियन नेवी के जांबाजों से मिलने के लिए सोवियत प्रमुख एडमिरल ने तोड़ दिया प्रोटोकॉल

गोर्शकॉव भारती के जवानों का शौर्य देख कर इतने खुश हुए कि उन्होंने वहां मौजूद अपने साथियों को गले लगा लिया। लड़ाई के कुछ दिनों बाद एडमिरल गोर्शकॉव अपने बेड़े के साथ मुंबई पहुंचे। मेजर जनरल कारडोज़ो लिखते हैं कि'गोर्शकॉव ने भारत के नौसेना प्रमुख एडमिरल नंदा से कहा कि वो उन नौसैनिकों से मिलना चाहते हैं, जिन्होंने उनकी दी गई मिसाइल बोटों का इस्तेमाल करते हुए कराची पर हमला किया था। उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिस बोट का इस्तेमाल सोवियत संघ डिफेंस के लिए करता था इसी बोट से भारत ने हमला कर पूरे कराची बंदरगाह को तबाह कर दिया।