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स्वतंत्रा सेनानी संन्यासी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती महासमाधि में लीन

Swami Swaroopanand Saraswati

Swami Swaroopanand Saraswati: राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले और सनातन धर्म के चार सबसे बड़े धर्मगुरुओं में से एक शारदा और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) झोतेश्वर धाम के परमहंसी आश्रम में महासमाधि में लीन हो गए। स्वामी स्वरूपानंद जी ने 11 सितंबर 2022 को ही देह त्याग की थी। कुछ ही दिन पहले स्वामी स्वरूपानंद जी का 99वां जन्मोत्सव मनाया गया था। प्रायः धर्मगुरु राजनीति से दूर रहते हैं, इस तरह के सवालों से वो मुंह फेर लेते हैं। लेकिन, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) बिल्कुल अलग थे, उन्हें सियासत से जुड़े सवालों का भी खुल कर जबाब देते थे। वो अपनी राय भी तय मानकों और आम धारणा से अलग जाहिर करते। यहां कि पीएम मोदी के कार्यकाल का मूल्यांकन तक कर चुके हैं और राहुल गांधी को सियासी समझ में कच्चा बता चुके हैं। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का भारत की आजादी से लेकर अबतक काफी योगदान रहा है।

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9 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर बन गए थे साधु
शारदा और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) का जन्म मध्य प्रदेश में के सिवनी के दिघोरी गांव में हुआ था। उनमें वैराग्य की ऐसी भावना जगी कि  9 साल की ही उम्र में उन्होंने अपना घर त्याग दिया था।  तमाम जगहों का भ्रमण करते-करते गाजीपुर की रामपुर पाठशाला और फिर काशी आकर ब्रह्मलीन धर्मसम्राट स्वामी करपात्री महाराज एवं स्वामी महेश्वरानंद जैसे विद्वानों से वेद-वेदांग, शास्त्र आदि की दीक्षा ली। इसके बाद 1950 में उन्होंने ज्योतिष्पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज से विधिवत दंड सन्यास दीक्षा ली। इसके बाद वो स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्हें आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक, द्वारकाशारदा पीठ का शंकराचार्य बनाया गया। वो एक स्वतंत्रता सेनानी भी रहे हैं, भारत के आजादी में उनका भी योगदान रहा है। इसलिए उन्हें क्रांतिकारी साधु भी कहा जाता था।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
भारत की आजादी में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का अहम योगदान रहा है। यहां तक की वो जेल भी जा चुके हैं। 1942 में जब ‘भारत छोड़ो’ का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वो क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान वो वाराणसी की जेल में 9 और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने तक जेल में भी रहे और जेल के भीतर रहकर भगवद अलख जगाते रहे।

1950 में बने दंडी संन्यासी
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 1950 में दंडी संन्यासी बनाये गए। शास्त्रों के अनुसार दंडी संन्यासी केवल ब्राह्मण ही बन सकते हैं। दंडी संन्यासी को ग्रहस्थ जीवन से दूर रहना पड़ता है। उस दौरान उन्होंने ज्योतिषपीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-संन्यास की दीक्षा ली थी। इसके बाद उनकी पहचान स्वामी स्वरूपान्नद सरस्वती के रूप में हुई। फिर 1981 में उनको शंकराचार्य की उपाधि मिली।

नेहरू-इंदिरा से नजदीकियां
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को नेहरू-गांधी परिवार का काफी करीबी माना जाता था। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक स्वामी स्वरूपानंद का आशीर्वाद ले चुके हैं। गांधी परिवार अक्सर उनके दर्शन के लिए मध्य प्रदेश जाता रहता था। यहां

VHP से मतभेद
बद्रीकाश्रम के  शंकराचार्य पद विवाद में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को समर्थन दिए जाने के कारण स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती वीएचपी और आरएसएस के विरुद्ध हो गए थे। 2017 में कोर्ट के आदेश के बाद स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का बद्रीकाश्रम पीठ के शंकराचार्य का अभिषेक हुआ था।

पत्रकार को जड़ चुके हैं थप्पड़
राजनीतिक मामलों में अपनी राय रखने वाले स्वामी स्वरूपानंद एक बार एक पत्रकार को थप्पड़ भी जड़ चुके हैं। दरअसल, बात 2014 की है जब एक पत्रकार ने उनसे बस ये पूछा था कि, नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल में से आपको कौन बेहतर प्रधानमंत्री लगता है। इस पर वो इतना भड़क गए कि एर पत्रकार को थप्पड़ जड़ दिया।

महाकुंभ का बहिष्कार
शंकराचार्य स्वरूपानंद 2013 महाकुंभ का बहिष्कार कर चुके हैं। दरअसल, प्रयागराज में 2013 के कुम्भ मेले में उनका और स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती तथा काशी सुमेरूपीठ के स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती का विवाद गहरा गया। जमकर बयानबाजी और मेला क्षेत्र के शंकरचतुष्पाथ से स्वामी वासुदेवनंद का शिविर हटाने की बात पर शंकराचार्य स्वरूपानंद चर्चा अड़ गए थे। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उस दौरान राज्य के तत्कालीन सीएम थे उन्होंने प्रयागराज में हर की पैढ़ी जैसे घाट बनाने का ऐलान किया तब सबसे पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद ने इसका विरोध किया।

साईं बाबा को बता चुके हैं अमंगलकारी
स्वमी स्वरुपानंद साईं बाबा के धुर विरोधी रहे हैं, वो उनकी पूजा करने को गलत बताते हैं। उनका कहना था कि, हिंदू मंदिरों में सांई प्रतिमा स्थापित करना देवी-देवताओं का अपमान करने के बराबर है। उनका कहना था कि, अगर सांई सचमुच चमत्कारिक हैं तो इस संकट का समाधान करें। उन्होंने कहा कि सांई बाबा फकीर और अमंगलकारी थे। जब भी उनकी पूजा होती है जब आपदा आती है और वहां सूखा, बाढ़ और अकाल मृत्यु होती है। अब महाराष्ट्र में भी यही हो रहा है।

मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर विरोध
शनि शिगणापुर मंदिर में महिलाओं की प्रवेश के लिए जब आंदोलन चल रहा था तो उस दौरान महिला समानता की बात हो रही थी, उस वक्त स्वमी स्वरुपानंद का भी बयान सामने आया, उन्होंने कहा था कि, शनि एक पाप ग्रह है। उनकी शआंति के लिए लोग प्रयास करते हैं। महिलाओँ को मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिलने पर इतराना नहीं चाहिए। शनि पूजा से महिलाओँ का हित नहीं होगा, उनके प्रति अपराध और अत्याचार में बढो़तरी होगी।

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राम मंदिर को लेकर बयान
राम मंदिर के भूमि पूजना की तारीख 5 अगस्त रखी गई थी, इस तिथि को स्वामी स्वरूपानंद अशुभ बताये थे। इसके साथ ही उन्होंने अयोध्या में श्रीराम के मंदिर के शिलान्यास पर भी सवाल उड़ा कर दिये थे। उन्होंने कहा था कि, भाद्रपद के महीने में किसी भी तरह का शुभ कार्य का शुभारंभ अच्छा नहीं माना जाता है। ऐसे में श्रीराम मंदिर निर्माण का शिलान्यास बेहद ही अशुभ मुहूर्त में किया गया है। यहां तक कि, वो श्रीराम मंदिर के ट्रस्टियों को लेकर वो सवाल खड़ा कर चुके हैं।