पिछले महीने मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों ने दस्तक दी थी। देश में करीब 70 साल बाद विदेशी सरजमीं से 8 चीतों को लाया गया। ये चीते नामीबिया से कूनो लाए गए हैं, जिन्हें देखने की उत्सुकता लोगों में खूब देखी गई। हर कोई इन चीतों को एक बार निहारना चाहता है। इतना ही नहीं देश में चीतों की आबादी बढ़े इसके लिए भी कोशिशें जारी हैं। इसी बीच मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) से गुड न्यूज सामने आई है। दरअसल, आशा नाम की मादा चीता के गर्भवती होने की खबर सामने आ रही है। ये नाम खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही दिया है। नामीबिया से आए 8 चीतों में 3 मादा चीता हैं। इनमें से एक ‘आशा’ भी शामिल है। ‘आशा’ के गुड न्यूज देने की सूचना से वन अधिकारियों में उम्मीद जगी है कि जल्द चीतों की आबादी देश में बढ़ेगी।
जानकारी के मुताबिक, नामीबिया से भारत लाए गए 8 चीतों में तीन मेल चीते हैं। इनकी उम्र 2 से 5 साल के बीच बताई जा रही है। बता दें कि पिछले 70 सालों से भारत से चीते विलुप्त हो गए थे। एक समझौते के तहत नामीबिया से चीते भारत लाए गए हैं। मध्यप्रदेश सरकार चीतों के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए 450 से अधिक चीता मित्र नियुक्त किए हैं। ‘चीता मित्र’ चीते के रहन-सहन और तौर-तरीकों के बारे में जागरूक करेंगे।
भारत को मिला दोहरा उपहार
नामीबिया से चीतों को भारत लाने में अहम भूमिका निभाने वाले चीता संरक्षण कोष के प्रमुख लॉरी मार्कर ने भी ऐसे संकेत दिए हैं। मार्कर ने बताया, चूंकि आशा नामीबिया में एक प्राकृतिक जंगली वातावरण में रहती थी, इसलिए उसने नामीबिया में ही गर्भधारण किया होगा। यह भारत के लिए दोहरे उपहार की तरह है। मार्कर के अनुसार, आशा को गर्भकाल के दौरान पूरी तरह से शांत वातावरण की आवश्यकता होगी। लोगों को उसके आसपास जाने से रोका जाएगा। ताकि उसका तनाव कम हो सके और वह अच्छे चीतों को जन्म दे सके।
याद दिला दें, 17 सितंबर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिवस पर को अफ्रीका के नामीबिया से 8 चीतों को श्योपुर के कुनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं उन्हें बाड़े में छोड़ा था। वैसे गर्भवती होने से आशा की किरण नजर आने लगी है। यह बात इसलिए भी इतनी महत्वपूर्ण है क्योंकि सत्तर साल बाद देश में चीते जन्म लेंगे। नन्हें चीतों के आगमन के लिए कुनो नेशनल पार्क भी पूरी तरह से तैयार है।
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चीता शावकों की सुरक्षा भी बड़ी टेंशन
प्रोजेक्ट चीता में एक और चुनौती है कि गैर-संरक्षित इलाकों में बड़े शिकारियों की वजह से चीता शावकों की मृत्यु दर नेशनल पार्क और वन्यजीव अभ्यारण्य जैसे संरक्षित क्षेत्रों में अधिक होता है। ऐसे इलाको में, चीता शावक मृत्यु दर 90 फीसदी तक हो सकती है। जन्म के समय, शावकों का वजन 240 ग्राम से 425 ग्राम तक होता है और वे अंधे और असहाय होते हैं। सीसीएफ का कहना है कि एक या दो दिन बाद, मां को अपने शिकार के लिए शावकों को छोड़ना होगा, ताकि वह उनकी देखभाल करना जारी रख सकें।
शावकों के लिए यह सबसे मुश्किल दौर होता है, क्योंकि उन्हें असुरक्षित छोड़ दिया जाता है। फिलहाल इसके लिए भी जरूरी तैयारी की जा रही है। मादा चीता शावकों के आने पर करीब डेढ़ साल तक उनकी देखभाल करेगी। इसके बाद शावक अपनी मां का पीछा करना शुरू कर देते हैं। जब वह शिकार की तलाश में होती है। हालांकि, कुछ महीनों के दौरान वह दूर या तेज नहीं चल सकते।