मंगलवार, 16अगस्त 2022यानी आज पूरा देश भारत के रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहा है। इस दौरान देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने दिल्ली स्थित 'सदैव अटैल' जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर प्रार्थना सभा का भी आयोजन किया गया। मालूम हो कि 'सदैव अटल'' वाजपेयी का स्मारक है। साल 2018में आज ही के दिन दिल्ली केअखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में वाजपेयी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था।
गौरतलब है, अटलजी की शख्सियत ही ऐसी थी कि अपने तो अपने विरोधी भी उनसे प्यार करते हैं। यही वजह है कि उन्हें राजनीति में अजातशत्रु कहा जाता था, हो भी क्यों न क्योंकि अटलजी ऐसे नेता थो जिन्हें अपनी हार की भी दुख नहीं था, बल्कि वह अपनी हार पर भी हंसे लगे थे। जानिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा यह अनोखा किस्सा।
16 अगस्त 2022 यानी आज पूरा देश भारत रत्न #AtalBihariVajpayeeJi की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहा है
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— इंडिया नैरेटिव (@NarrativeHindi) August 16, 2022
हार का मुंह देखने के बाद हंसे थे अटलजी
दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी देश में संस्कारित राजनीति के सबसे बड़े प्रतीक भी माने जाते हैं। यह मामला 1984का है। जनसंघ और बीजेपी की संस्थापक ग्वालियर के सिंधिया घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के समय से साथ रहे है। विजयाराजे सिंधिया अटलजी को अपना धर्मपुत्र मानती थी। 1984के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर लोकसभा सीट से बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी मैदान में उतारा था। लेकिन उस वक्त विजयाराजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस में थे, ऐसे में कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतार दिया। जिससे यह चुनाव दिलचस्प हो गया।
'मां-बेटे की बगावत को सड़क पर आने से रोका'
अटल जी से इस हंसी का कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया, 'मेरी हार का मुझे गम नहीं है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने मां-बेटे की बगावत को सड़क पर आने से रोक दिया। अगर मैं ग्वालियर से चुनाव नहीं लड़ा तो माधवराव सिंधिया के खिलाफ राजमाता चुनाव लड़तीं। मैं नहीं चाहता था कि ऐसा हो।' 2005 में अटल जी ने ग्वालियर की हार का दोबारा जिक्र किया था। उन्होंने साहित्य सभा में कहा था कि ग्वालियर में मेरी हार के पीछे इतिहास छिपा हुआ है, जो मेरे साथ ही चला जाएगा। दरअसल, ग्वालियर के सिंधिया घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के समय से साथ रहे। विजयाराजे सिंधिया अटलजी को अपना धर्मपुत्र मानती थीं। वाजपेयी ने इसी बात का जिक्र करते हुए कहा था कि वो मां-बेटे में लड़ाई नहीं चाहते थे।