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46 पन्नों की फ़ाइल में दर्ज अंग्रेज़ों के लूटे रत्नों की जानकारियां

अंग्रेज़ों ने भारतीय राजघरानों से बेशुमार रत्न और आभूषण इंग्लैंड ले गए, जिनमें क़ीमती पत्थर कोह-ए-नूर भी था

यह कोई रहस्य तो है नहीं कि लगभग दो साल तक अंग्रेज़ों ने भारत पर शासन किया। भारत उनके उपनिवेशों का गहना था।उन्होंने विभिन्न रियासतों और राजघरानों से क़ीमती पत्थरों और आभूषणों सहित जो कुछ भी मूल्यवान था, उन्हें लूट लिया।मगर,उन्होंने क्या-क्या लूटे,इसकी सटीक जानकारियां अबतक नहीं थी।
लेकिन अब इंडिया ऑफ़िस के अभिलेखागार में पड़ी 46 पन्नों की एक फ़ाइल की खोज से इनमें से उन कुछ रत्नों और गहनों की जानकारियां मिलती हैं, जो कि भारत से लाये गये रत्न-जवाहिरात ब्रिटिश शाही परिवार के कलेक्शन का हिस्सा हो चुके थे।

इस फ़ाइल का उल्लेख द गार्जियन अख़बार की उस रिपोर्ट में मिलता है, जो इसके प्रकाशन की ‘कॉस्ट ऑफ़ द क्राउन’ सीरीज़ का एक हिस्सा है। यह संयोग ही था कि इस फ़ाइल पर दर्ज विवरण तब एकत्र किया गया था, जब एलिजाबेथ द्वितीय की दादी क्वीन मैरी, 1912 में अपने गहनों की शाही ख़ज़ाने को जानने की इच्छुक हुई थीं।

कई महंगी चीज़ोंके बीच इस फ़ाइल में एक पन्ने से जड़े सोने के करधनी के बारे में बातें है, जिसका उपयोग महाराजा रणजीत सिंह के समय में उनके घोड़ों को सजाने के लिए किया जाता था। यह अब किंग चार्ल्स के शाही संग्रह का हिस्सा है।

ब्रिटिश समाज के डायरिस्ट फैनी ईडन और उनके भाई जॉर्ज, जो गवर्नर-जनरल थे, द्वारा 1837 में पंजाब के दौरे की रिकॉर्डिंग वाली एक पत्रिका से स्पष्ट है कि ब्रिटिश हमेशा भारतीय राजघरानों के धन, उनके कीमती पत्थरों और आभूषणों से प्रभावित थे।

महाराजा रणजीत सिंह के साथ छह साल पहले लाहौर में अंग्रेज़ों के साथ दोस्ती की संधि पर हस्ताक्षर करने वाले ईडन ने लिखा है: “वह अपने घोड़ों पर अपने बेहतरीन गहने रखते हैं, और उनकी साज-सज्जा और आवास की भव्यता की आप कल्पना ही कर सकते हैं। यदि कभी हमें इस राज्य को लूटने का मौक़ा मिला, तो मैं सीधे उनके अस्तबल में जाऊंगा।”

इस घटना के 12 साल बाद 1849 में महाराजा के सबसे छोटे बेटे और उत्तराधिकारी दलीप सिंह ने पंजाब को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपने के लिए लाहौर की अंतिम संधि पर हस्ताक्षर किए और इस अधिनियम की लूट में घोड़ों के पन्ने भी थे।

यह संधि महाराजा की अन्य संपत्तियों की तरह विश्व प्रसिद्ध कोह-ए-नूर को रानी विक्टोरिया को सौंपने की भी साक्षी है।

द गार्जियन की इसस रिपोर्ट में तैमूर रूबी नामक एक अन्य गहने का भी ज़िक़्र है, जो “चार बहुत बड़े-बड़े स्पिनल माणिकों का एक छोटा सा हार” है, जिनमें से सबसे बड़ा 325.5-कैरेट स्पिनल है। 1996 में सुसान स्ट्रॉन्ग द्वारा किए गए शोध के अनुसार, यह टुकड़ा मंगोल विजेता के स्वामित्व में कभी नहीं रहा।

इसके अलावे, एक अन्य भारतीय वस्तु एक मोती का हार है, जिसमें 224 बड़े मोती हैं। माना जाता है कि यह भी रणजीत सिंह के संग्रह का हिस्सा था।

विडंबना यह है कि क्वीन मैरी का अपने गहनों और रत्नों के बारे में जानने का निर्णय उनके औपनिवेशिक मूल को लेकर किसी नैतिक मजबूरी या चिंता नहीं थी,बल्कि उनके संग्रह की उत्पत्ति को जानने की महज़ जिज्ञासा से प्रेरित था।