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तीर्थायन: सौ ग्राम पानी से स्नान करने की अनूठी कला

काशी विश्वनाथ मंदिर

सौ ग्राम पानी से भी स्नान किया जा सकता है। यह बात मैंने जलग्राम जखनी के संस्थापक और हाल ही में पद्मश्री से सम्मानित उमाशंकर पांडेय जी के मुंह से गत माह बोधगया वाले कार्यक्रम में सुनी थी। पिछले एक सप्ताह से मैं उनकी बात का प्रत्यक्ष अनुभव भी कर रहा हूं। बनारस में रहते हुए आजकल मैं प्रतिदिन प्रातःकाल गंगाजी में स्नान के लिए जाता हूं। मैंने नापकर तो नहीं देखा, लेकिन मेरा अनुमान है कि इस दौरान स्नान के लिए मैं सौ ग्राम पानी भी ख़र्च नहीं करता। किसी नदी या सरोवर में स्नान का यह पहलू मेरे लिए सर्वथा नया है। इस बात पर मैंने कभी पहले ध्यान नहीं दिया था।

आजकल मैं काशी में जहां रह रहा हूं, वह अपने आप में विशेष है। अगर मैं अपने निवास स्थान से पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके खड़ा होऊं, तो मेरे ठीक सामने काशी का प्रसिद्ध अस्सी घाट है। मेरी बाईं ओर दक्षिण दिशा में काशी नरेश का क़िला और दाईं ओर उत्तर में स्वामी अड़गड़ानंद जी का आश्रम है। मेरे पीछे अर्थात पूर्व दिशा में प्रसिद्ध संत देवरहा बाबा का आश्रम बना हुआ है। मैं सुबह जिस स्थान पर स्नान के लिए जाता हूं, लगभग उसी स्थान पर देवरहा बाबा अप्रैल और मई के महीने में मचान लगा कर रहा करते थे।

अभी मेरे निवास की व्यवस्था जहां हुई है, वह एक शांत और सुंदर सा आश्रम है, जिसे मेरे मित्र डा. अवधेश दीक्षित जी विकसित कर रहे हैं। यहां से काशी कथा न्यास के नाम से विविध प्रकार की गतिविधियों का संचालन होता है। अपनी स्थापना से लेकर अब तक न्यास जिस तरह काशी की सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को संजोते हुए आगे बढ़ रहा है, वह प्रशंसनीय है। सबसे अच्छी बात यह है कि इस पहल में अवधेश जी अकेले नहीं हैं। उनके साथ सामाजिक सरोकार रखने वाले ढेर सारे वरिष्ठ लोग और उत्साही युवाओं की एक मज़बूत टीम भी काम कर रही है।

अभी इसी महीने अप्रैल में काशीकथा न्यास और काशीघाट वाक युनिवर्सिटी ने मिलकर एक नया अभियान शुरू किया है, जिसका नाम है तीर्थायन। काशी में जो हजार से अधिक पुराणोक्त तीर्थस्थान हैं, उनसे अधिकाधिक लोगों को परिचित करवाना और उनके संरक्षण को लेकर प्रयास करना, इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है। आई.आई.टी बीएचयू के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. प्रदीप कुमार मिश्रा जी और बीएचयू हास्पिटल के प्रसिद्ध न्यूरोलाजिस्ट डा.  विजयनाथ मिश्रा जी इस अभियान के संरक्षक और मार्गदर्शक की भूमिका में हैं, जबकि डा. अवधेश दीक्षित पर इसके संयोजन की ज़िम्मेदारी है।

मेरा सौभाग्य है कि तीर्थायन की पहली यात्रा में मैं भी शामिल था। इसके अंतर्गत हमने प्राचीन काशी के भद्रवन और आज के भदैनी क्षेत्र के 26 तीर्थस्थलों का दर्शन किया। ये सभी तीर्थस्थल डेढ़ से दो किलोमीटर के दायरे में हैं। इस श्रृंखला की दूसरी यात्रा 23 अप्रैल को होगी। उसमें हम भद्रवन के शेष तीर्थस्थलों का दर्शन करेंगे। इसके बाद यह यात्रा केदारखंड होते हुए आगे बढ़ेगी। इस प्रकार काशी के सभी पुराणोक्त तीर्थस्थानों का दर्शन करने में लगभग एक वर्ष का समय लगेगा।

 

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