मोहम्मद अनस
इस्लामी संयम और सहिष्णुता और ज्ञान की भारतीय परंपरा का संगम उग्रवाद का मुक़ाबला करने वाली धार्मिक बहस को आगे बढ़ा पायेगा। मंगलवार को इंडो इस्लामिक कल्चरल सेंटर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-इस्सा द्वारा संयुक्त रूप से प्रसारित इस संदेश को एक विशाल सभा ने खूब सराहा, जिसमें लगभग सभी वर्गों के मुस्लिम नेता और उलेमा शामिल थे।
डॉ. अल-इस्सा ने अपने संबोधन में कहा कि अरब दुनिया (इस्लामिक आस्था का उद्गम स्थल) और भारत दोनों उन सभ्यतागत मूल्यों को साझा करते हैं, जो स्वाभाविक रूप से विभिन्न आस्थाओं और जीवन जीने के तरीक़ों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देते हैं। अल-इस्सा ने कहा, “एक प्रसिद्ध कहावत है ‘अनेकता में एकता’, यह संकेत देता है कि भारतीय जीवन का यह पंथ दुनिया भर के लोगों के बीच सद्भाव का आधार है।”
I had an insightful discussion with the Indian PM, H.E. @narendramodi, on a variety of issues. This included ways to further human-centric development and the importance of promoting understanding and harmony among the followers of faith and culture. I appreciate His Excellency's… pic.twitter.com/UCX9F2RtiR
— Mohammed Al-Issa محمد العيسى (@MhmdAlissa) July 12, 2023
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसे सिद्धांतों को केवल अवधारणा बनकर नहीं छोड़ा जाना चाहिए और उन्हें व्यवहार में लाया जाना चाहिए ताकि उनका उद्देश्य फलदायी रूप से सामने आ सके।
डोभाल ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि शांति, सद्भाव और सह-अस्तित्व की इच्छा भारतीय दर्शन का मूल है। उन्होंने कहा, “गौरवशाली सभ्यता वाले देश के रूप में कोई भी धर्म यहां ख़तरे में नहीं है, भारत हमारे समय की चुनौतियों से निपटने के लिए सहिष्णुता, संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने में विश्वास करता है।”
अपने भाषण में उन्होंने इस अल्पज्ञात तथ्य को सामने रखा कि पैग़ंबर मुहम्मद की पत्नी ख़दीजा ने भारतीय रेशम और कश्मीरी शॉल के प्रति अपनी पसंद व्यक्त की थी, और इस बात पर प्रकाश डाला कि इस्लामी व्यक्तित्वों और भूमि के साथ भारत के संबंध इस्लाम की शुरुआत से ही हैं।
संदेश का स्वागत और महत्व
डोभाल और अल-इस्सा को सुनने के लिए इकट्ठा होने वालों में कई उलेमा, छात्र (मदरसों से भी), समुदाय के नेता और प्रमुख हस्तियां शामिल थीं। सूफ़ी संगठन से जुड़े मदरसे के छात्रों का एक समूह इस बात से उत्साहित था कि अब सूफ़ी एक ऐसे सऊदी विद्वान को सुनने के लिए आ रहे हैं, जो हाल तक अनसुना था।
पुरानी दिल्ली के एक मदरसा छात्र अशरफ़ जामेई ने कहा, “हालांकि डॉ. अल-इस्सा की छवि उदारवादी होने की है, लेकिन हम सऊदी अरब के विद्वानों को सुनने के प्रति उत्साहित नहीं रहे हैं। लेकिन, जब हमने सुना कि वह न केवल मुसलमानों के बीच, बल्कि सभी समुदायों के बीच पुल निर्माण का संदेश लेकर भारत का दौरा कर रहे हैं, तो हम उन्हें सुनने चले आए। उन्होंने उल्लेख किया कि वह विश्व शांति पर उनके दृष्टिकोण जानने के लिए सद्गुरु और श्री श्री रविशंकर जैसे हिंदू विद्वानों और आध्यात्मिक नेताओं के साथ संवाद करते हैं। यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई कि हम सूफ़ी संवाद और सभी के सम्मान में विश्वास करते हैं।”
एक अन्य मदरसा छात्र शकील, जो जमीतातुल फलाह, आज़मगढ़ से पास-आउट है,उनका कहना था कि उन्हें भी उम्मीद है कि अल-इस्सा की यह यात्रा भारतीयों के बीच इस तरह के और संवादों का मार्ग प्रशस्त करेगी।
जमीयतुल फलाह को जमात ए इस्लामी द्वारा चलाया जाता है। यहां यह जानना दिलचस्प है कि दो प्रमुख मुस्लिम संगठन – जमात ए इस्लामी और जमीयत उलेमा ए हिंद – अल-इस्सा का स्वागत करने से दूर रहे हैं।
प्रसिद्ध मुस्लिम विद्वान ख़्वाज़ा इफ़्तिख़ार अहमद भी दर्शकों में शामिल थे। उन्होंने डॉ. अल-इस्सा की इस यात्रा का संक्षेप में सारांश प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “इसने दुनिया भर के मुसलमानों, भारत के मुसलमानों और भारतीय राष्ट्र को एक मंच पर ला दिया है। यह उनकी यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण संदेश है। वह क्राउन प्रिंस और सऊदी अरब के वास्तविक शासक मोहम्मद बिन सलमान के बहुत क़रीबी हैं; और इसका मतलब यह है कि उनके शब्द और बातचीत लगभग आधिकारिक महत्व रखते हैं। उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि भारत मुसलमानों के लिए सौहार्दपूर्ण जगह है।”
स्तंभकार और इस्लामी मुद्दों पर शोधकर्ता ए. फ़ैज़ुर्रहमान ने भी अल-इस्सा द्वारा लाए गए संयम के संदेश पर सकारात्मकता व्यक्त की।उन्होंने कहा, “चरमपंथी विचारों के कट्टर समर्थक के रूप में सऊदी अरब की छवि अब पूरी तरह से बदल रही है। मैंने उदारवादी विचारों को हमेशा अपने दिल के क़रीब रखा है और मुस्लिम विचारों के इस संयम का पूरी तरह से स्वागत करता हूं।”
अखिल भारतीय मुस्लिम छात्र संगठन (एमएसओ) के अध्यक्ष शुजात अली क़ादरी ने कहा कि अल इस्सा का भारतीय सहिष्णुता के साथ संयम का यह संदेश न केवल शांति-प्रेमियों को प्रभावित करेगा, बल्कि यह शांति के लिए व्यापक विश्व संवाद का रास्ता भी खोलेगा। उन्होंने कहा, “उनका छह दिवसीय व्यस्त दौरा न केवल अंतर-धार्मिक सद्भाव पर ध्यान केंद्रित रहेगा, बल्कि यह भारतीय राजनीतिक और धार्मिक नेतृत्व को इस्लामी दुनिया के अग्रणी निकाय से जोड़ेगा।”