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PoK LitFest: पूर्व BBC पत्रकार ने कश्मीर पर पाक को दिखाया आईना,कई भ्रमों पर प्रहार

बीबीसी के पूर्व पत्रकार वुसतुल्लाह ख़ान (फ़ोटो: एक्सप्रेस ट्रिब्यून)

3-4 जून, 2023 को पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर की राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद में आयोजित पहला साहित्यिक उत्सव उस समय आयोजकों के लिए उल्टा पड़ गया, जब बीबीसी के एक पूर्व पत्रकार वुसतुल्ला ख़ान ने दर्शकों के सामने पाकिस्तान की कश्मीर नीति की आलोचना की।

देश भर में पाकिस्तान साहित्य उत्सवों (पीएलएफ) की श्रृंखला का आयोजन कर रहे पाकिस्तान कला परिषद, कराची के अध्यक्ष, अहमद शाह ने जियो टीवी के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि सांस्कृतिक और साहित्यिक विषयों के बीच मुज़फ़्फ़राबाद लिटफ़ेस्ट में “35-ए और 370 पर कश्मीर मुद्दे पर पूर्ण सत्र”का भी एक महत्व होगा। उनका मानना था कि यह “भारत कश्मीर में जो कुछ कर रहा है”,उसके बारे में दुनिया की राय को उजागर करेगा।

बीबीसी के लिए जम्मू-कश्मीर के चुनावों को भी कवर करने वाले पाकिस्तान के सबसे प्रमुख पत्रकारों में से एक , वुसतुल्लाह ख़ान ने अपने भाषण की शुरुआत में ही 1971 में पूर्वी पाकिस्तान और पिछले 75 वर्षों में कश्मीर पर पाकिस्तान की नीतियों की आलोचना की। ख़ान को “कश्मीर मुद्दे के कुछ लीक से हटकर समाधान” पर बोलना था। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि कश्मीर “कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि एक बड़े राजनीतिक वर्ग के लिए एक उद्योग है।” उनके स्पष्ट बोलने से दर्शकों के एक वर्ग ने नारेबाज़ी की।

ख़ान ने अपने ठेठ अंदाज़ में कहा,“क्षमा करें, कश्मीर कोई मुद्दा नहीं है। आप एक उद्योग हैं। (पाकिस्तान की) कश्मीर कमेटी की रोज़ी-रोटी इसी उद्योग से बंधी है। फ़ारूक़ अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती और आज़ाद कश्मीर के पूरे राजनीतिक वर्ग की रोजी-रोटी इसी उद्योग से जुड़ी है। तो मैं लीक से हटकर समाधान की तलाश में अपनी ही क्यों लुटाऊं ?”

ख़ान ने कहा,“इस (कश्मीर मुद्दे) उद्योग के कारण हमें वाहनों के बेड़े, भारी भत्ते और हमारे बजट का 90% केंद्र (इस्लामाबाद) से मिलता है। और केंद्र को ब्रैडफोर्ड (यूके में) में कश्मीर मुद्दे पर कश्मीरियों को प्रबुद्ध करने का काम मिलता है। पिछले 75 वर्षों में पाकिस्तान सरकार की कश्मीर पुलिस पर उनके सीधे हमले ने “ये मुल्क हमारा है, इस का फ़ैसला हम करेंगे और छीन के लेंगे आजादी” जैसे नारे लगाये हैं। भीड़ से इसी  तरह के और भी नारे आये ।”

ख़ान ने प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हुए कहा,”यदि आप लोग यहां एक पूर्व निर्धारित एजेंडे के साथ आये हैं और आप हमें सुनना नहीं चाहते हैं, तो हम वापस जा रहे हैं।”  ख़ान, प्रसिद्ध टेलीविज़न पत्रकार हामिद मीर के साथ उठे और विरोध में जाने लगे। संचालिका अस्मा शिराज़ी ने काफ़ी समझा-बुझाकर दर्शकों को शांत किया और ख़ान को रुकने और बोलने के लिए राज़ी किया। उन्होंने कहा, “आप 75 साल से नारे लगा रहे हैं। अगर आपको लगता है कि आपके नारों से कश्मीर को आज़ादी मिलेगी, तो अपने नारों के साथ आगे बढ़ें।”

ख़ान ने आगे बोलते हुए कहा,“हमारे (पाकिस्तान के) कश्मीर नैरेटिव को पढ़ने में ग़लती न करें। यह बिल्कुल स्पष्ट है। इस देश की कश्मीर नीति अच्छी तरह से निर्धारित है। हमें इसका समर्थन करना चाहिए और विकल्प या लीक से हटकर समाधान खोजने का कोई प्रयास किए बिना आगे बढ़ना चाहिए। मैं नहीं जानता कि आप में से कितने लोग जानते हैं कि के.एच. ख़ुर्शीद के साथ क्या हुआ था। । मेरा मानना है कि वह इस क्षेत्र के सभी नेताओं में सबसे सच्चे व्यक्ति थे। उन्होंने आज़ाद कश्मीर के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था।”

ख़ान ने व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहा,“उन्होंने (के.एच. खुर्शीद) लीक से हटकर समाधान सुझाने का प्रयास किया। उन्होंने सुझाव दिया कि पाकिस्तान आज़ाद कश्मीर सरकार को निर्वासित सरकार (कश्मीरियों की) के रूप में मान्यता दे। उन्होंने कहा कि कश्मीरी ख़ुद अपने मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जायेंगे और पाकिस्तान को केवल नैतिक समर्थन देना चाहिए। लेकिन, बचपन से ही हमें हर मामले में मामा बनने की आदत है। हमने (पाकिस्तान ने) कहा ‘आप कैसे जानते हैं कि आप क्या चाहते हैं’। हमने कहा कि हम ही आपको बतायेंगे कि आप क्या चाहते हैं। यह 75 साल से पाकिस्तान की कश्मीर नीति है। और जब भी मामाजी ने उनकी नाक में दम किया, कश्मीर मुद्दा 20 साल पीछे खिसक गया।”

अहमद शाह के अनुसार, पीएलएफ-मुज़फ़्फ़राबाद में कश्मीर के साहित्यिक विडंबनाओं और डॉ. सर मोहम्मद इक़बाल, सआदत हसन मंटो, कृष्ण चंदर, चिराग़ हसन हसरत उर्फ़ ‘सिंदबाद जहाजी ‘जैसे कश्मीरी मूल पर विभिन्न चर्चाओं के अलावा “कश्मीर के प्रतिरोध साहित्य” पर एक सत्र शामिल था। ।

पत्रकार वुसतुल्ला ख़ान, हामिद मीर, अस्मा शिराज़ी, मज़हर अब्बास, लेखक मुस्तनसार हुसैन तरार, लेखक सुहैल अज़ीज़ और प्रमुख कवियों इफ़्तिख़ार आरिफ़ और किश्वर नाहीद लिटफेस्ट के मुख्य आमंत्रित सदस्य थे।

अहमद शाह ने कहा कि पाकिस्तान कला परिषद ने लिटफ़ेस्ट के लिए ‘आज़ाद कश्मीर’ (पीओके) को एक स्थान के रूप में चुना था, क्योंकि कश्मीर क्षेत्र को 2500 साल पहले शारदा में सीखने के विश्वविद्यालय सहित एक महान सभ्यता का गौरव प्राप्त था।