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Liz Truss: ‘एनर्जी प्राइस-रेडिकलिज्म हाई’ ब्रिटेन की दो बड़ी समस्याएं

Liz Truss चुनौती भरा सफर शुरू

लिज ट्रस (Liz Truss) का ब्रिटेन का पीएम बनना भारत की दृष्टि से कितना अच्छा रहा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन लिज ट्रस (Liz Truss) के ऊपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी ब्रिटेन में बढ़ रहे एनर्जी प्राइसेस और इस्लामी रेडिकलिज्म पर रोक लगाना होगा। ब्रिटेन में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के नागिरकों की संख्या बहुत अधिक है। ब्रिटेन में पाकिस्तान की ब्लैकमनी बड़े पैमाने पर लगाई गई है। भले ही ही यह ब्लैकमनी है लेकिन ब्रिटेन में निवेश की गई है इसलिए ब्रिटिश सरकार अक्सर पाकिस्तानी लॉबी के दबाव में देखी गई है। लिज ट्रस (Liz Truss) को साबित करना पड़ेगा कि वो पाकिस्तान समर्थित लॉबी के दबाव में न आएं।

ऋषि सुनक पर भारतीय मूल का होने की छाप लगी थी। भारत की दृष्टि से ऋषि सुनक का पीएम बनना इसलिए अच्छा होता क्यों कि वो लिज ट्रस से ज्यादा भारत को जानते हैं। भारत के साथ उनकी संवेदनशीलता ज्यादा है। उन्होंने अपने प्रचार के दौरान स्वंय को हिंदू होने पर गर्व भी जताया था। भारत ही नहीं दुनिया भर में जितने भी भारतीय थे उनको भी गर्व का अहसास हुआ, लेकिन राजनीति में बहुत ऐसी चीजें होती हैं जो सबके लिए अच्छी होती हैं वो राजनीति के लिए अच्छी नहीं होतीं।

ऋषि सुनक पीएम बनते तो ब्रिटेन की विपक्षी पार्टियां खास तौर से पाकिस्तान समर्थक लॉबी के सांसद ऋषि सुनक को काम करना मुश्किल कर देते। भारत में संतोष की बात यह है कि लिज ट्रस (Liz Truss) ने पीएम बनने के साथ ही इस बात को दोहराया है कि वो भारत के साथ एक ब्रहद समझौता करने के पक्ष में हैं। भारत के साथ वो जॉनसन की नीति को आगे बढ़ाएंगी। ऋषि सुनक पीएम बनते तो भी भारत के साथ जॉनसन की नीति आगे रहती लेकिन उसमें लिज ट्रस (Liz Truss) से ज्यादा मजबूती और विश्वास होता। हालांकि लिज ट्रस की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वो भारत के साथ संबंधों को जॉनसन से भी ज्यादा मजबूत और भरोसेमंद बनांए।

लिज ट्रस पर अब यह भी जिम्मेदारी है कि उन्होंने भारत के वाणिज्यमंत्री पीयूष गोयल के साथ जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं उन्हें शीघ्रता से पूरा करें। ध्यान रहे, पीयूष गोयल के साथ डिजिटल वार्ता के दौरान लिज ट्रस ने भारत के साथ व्यापार संबंधों को इंग्लैण्ड के लिए ‘बिग एण्ड इंपोर्टंट अपोर्चुनिटी’ बताया था।

लिस ट्रस (Liz Truss) के प्रधानमंत्री बनने से पाकिस्तानियों की हालत ‘भई गति सांप छछूंदर केरी’ जैसी हो गई है। ब्रिटेन में अरबी शेखों के बाद सबसे ज्यादा निवेश पाकिस्तानियों का बताया जाता है। लेकिन अरबी शेखों का निवेश व्हाइट रकम है, जबिक पाकिस्तानियों की ब्लैक मनी है। अगर, ऋषि सुनक पीएम बनते तो पाकिस्तान समर्थित लॉबी को आरोप लगाने का मौका मिलता, लेकिन अब वो आरोप लगाने के भी नहीं बचे। क्योंकि लिज ट्रस (Liz Truss) ने पीएम निर्वाचित होते ही भारत के साथ पहले से ज्यादा मजबूत संबंधों की वकालत की है तो वहीं पाकिस्तान का कहीं नाम तक नहीं लिया है। हालांकि, पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ ने लिज ट्रस को सबसे पहले ‘मुबारकबाद’ भेजकर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है। अब पता चलेगा कि वो शपथ लेने के बाद शहबाज शरीफ के साथ कितनी ‘शराफत’ से पेश आती हैं।

लिज ट्रस के सामने एक और बड़ी समस्या विपक्षी दलों के अलावा अपनी ही पार्टी के भीतर विभाजन से निपटना होगा। ऋषि सुनक को मिला समर्थन पार्टी के सांसदों की संख्या को कम जरूर बताता है लेकिन उन्हें पार्टी के भीतर मिला समर्थन लिज समर्थन के लिए बड़ी खाई को पार करने जैसा है। 

लिज ट्रस ने कहा, “हम भारत के साथ एक व्यापक व्यापार समझौते पर विचार कर रहे हैं जिसमें वित्तीय सेवाओं से लेकर कानूनी सेवाओं के साथ-साथ डिजिटल और डेटा समेत वस्तुएं और कृषि तक सब कुछ शामिल हैं। हमें लगता है कि हमारे शीघ्र एक समझौता करने की प्रबल संभावना है, जहां हम दोनों ओर शुल्क घटा सकते हैं और दोनों देशों के बीच अधिक वस्तुओं का आयात-निर्यात होते देख सकते हैं।”

प्रधानमंत्री निर्वाचित होने से पहसे लिज ट्रस (Liz Truss) को विदेश मंत्री के तौर पर अपनी पदोन्नत किया गया था। इसके बाद ट्रस ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग (डीआईटी) की कमान एनी मेरी ट्रेवेलयन को सौंप दी थी। यह उम्मीद की जा रही है कि वह (ट्रेवेलयन) अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री की अपनी भूमिका में ब्रिटेन-भारत एफटीए वार्ता पर आगे बढ़ेंगी।

जॉनसन के उत्तराधिकारी के तौर पर लिज ट्रस ने भारत-ब्रिटेन एफटीए के लिए भी अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की और उम्मीद जताई की दिवाली तक इसे पूरा करने की कोशिश की जाएगी, जो समयसीमा उनके पूर्ववर्ती बोरिस जॉनसन ने निर्धारित की थी। ट्रस ने कहा कि अगर तब तक संभव न हो सका तो “निश्चित तौर पर साल के अंत तक” इसे पूरा कर लिया जाएगा। लिज ट्रस (Liz Truss) ने कहा, ‘‘नाटो के साथ-साथ हम ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, इंडोनेशिया और इज़रायल जैसे साझेदारों के साथ काम कर रहे हैं ताकि स्वतंत्रता के वैश्विक नेटवर्क का निर्माण किया जा सके।”