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आदि और अंत के बीच जो कुछ शेष है,सनातन वही है

सनातन:सत्य, न्याय, नैतिकता और आदर्शों की अनंतता

सनातन शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है-“सर्वदा चलने वाला” या “अनन्तकालीन”। इसे अक्सर “अदि” और “अनन्त” शब्दों के साथ जोड़कर प्रयुक्त किया जाता है, जैसे “अदि-सनातन” या “अनन्त-सनातन”।

सनातन शब्द का प्रमुख अर्थ है “अविनाशी” या “अनादि”। यह दर्शाता है कि सनातन धर्म के मूल्य और सिद्धांत नित्य और अविनाशी हैं, जो समय और परिस्थितियों के बदलने के साथ बदलने वाले नहीं हैं। इसका अर्थ भी होता है कि सनातन धर्म एक अनंत विचारधारा है, जो सदियों से चली आ रही है और आने वाले समय में भी बनी रहेगी।

यह शब्द उन तत्वों को दर्शाता है जो अभिव्यक्ति, सत्य, न्याय, नैतिकता और आदर्शों की अनंतता को संकेत करते हैं। सनातन धर्म में मान्यता है कि धर्म के मूल अमर होते हैं, और वे समय और परिस्थितियों के अनुसार नहीं बदल सकते। यह एक ऐसी प्राकृतिक गतिविधि है, जो इंसानों के अस्तित्व, जीवन, भूत, वर्तमान और भविष्य को सम्बोधित करता है।

सनातन धर्म, जिसे अन्य नामों में हिंदू धर्म या वैदिक धर्म भी कहा जाता है, एक प्राकृतिक धर्म है, जिसकी उत्पत्ति और विकास भारतीय उपमहाद्वीप में हुए हैं। इसका मूल अध्ययन वेदों पर आधारित है, जिन्हें प्राचीन भारतीय ऋषियों ने लिखा था। सनातन धर्म की अनुयायी परंपरा बहुत पुरानी है और यह मानते हैं कि धर्म सबसे पहले आदिपुरुष ब्रह्मा के द्वारा दिया गया था।

सनातन धर्म की मुख्य विशेषता यही है कि इसे एक निरंतर अवधारणा या जीवनशैली के रूप में देखा जाता है। इसमें विचारों, मूल्यों, नैतिकता, आचरणों और संस्कृति के माध्यम से जीवन का पूरा पहलू समाविष्ट है। सनातन धर्म में विश्वास करने वाले लोग ईश्वर के अस्तित्व, कर्म का महत्व, धर्मचरण और मोक्ष की प्राप्ति के लिए धार्मिक और नैतिक जीवन का महत्व स्वीकार करते हैं।

सनातन धर्म में अनेक देवी-देवताओं के पूजन, मंत्र और यज्ञ की व्यवस्था है,हालांकि किसी के लिए ये अनिवार्य नहीं है और इस धर्म में विश्वास करने वाले लोग अपने-अपने तरीक़ों से इसे पूरा करते हैं या नहीं भी करते हैं। इसमें मोक्ष के लिए मार्गों की विभिन्न परंपरायें हैं, जैसे कर्ममार्ग, भक्तिमार्ग, ज्ञानमार्ग और योगमार्ग। धर्मानुयायी लोग मोक्ष को जीवन का उच्चतम लक्ष्य मानते हैं, जिसके लिए वे चित्त शुद्धि, आत्मसाक्षात्कार और दिव्यता की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं।

सनातन धर्म में संसार को एक अनन्त चक्र के रूप में देखा जाता है, जिसमें जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म और कर्मों की प्रभावशाली चक्रव्यूह होता है। यह धर्म अन्य धर्मों और धार्मिक तत्वों के साथ सहयोग और सम्मेलन की भावना को भी समर्पित है। इस धर्म के अनुयायी लगातार बेहतर रूपांतरण की प्रक्रिया, आदर्शों की शक्ति और उदारता की उच्चता में विश्वास करते हैं।

सनातन धर्म के अनुयायी अन्य धर्मों, विचारों और संस्कृतियों का सम्मान करते हैं और मनुष्य ही नहीं,बल्कि प्राणीमात्र के एकत्व में भरोसा करते हैं और शांति की अवधारणा से अभिप्रेत रहते हैं। इसे एक प्राकृतिक धर्म के रूप में देखने का कारण यह भी है कि सनातन धर्म अपने अध्यात्मिक और धार्मिक मूल्य को जीवन के साथ-साथ प्रकृति के साथ भी संगठित रूप से स्वयं को जोड़ता है। यह धर्म प्राकृतिक मूल्यों, पृथ्वी माता की पूजा, वातावरण या पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और संतुलन के महत्व को भी उजागर करता है। इसके अनुयायी व्यक्ति को प्रकृति के साथ संघर्ष करने की ज़रूरत होने पर भी उसे स्नेहपूर्वक, सावधानीपूर्वक और सद्व्यवहार से इंटरैक्ट करना सिखाता है।

इस प्रकार, सनातन धर्म प्राकृतिक धर्म के रूप में अपनी मूल भूमिका निभाता है और अपने अनुयायियों को प्रकृति के साथ संगठित जीवन का आदर्श सिखाता है। यह धर्म सभी प्राणियों, पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश में संस्थित ईश्वर का आभास कराता है और सभी की सद्भावना, स्नेह और सामरस्य को प्रोत्साहित करता है।सनातन जर-चेतन से लेकर स्थूल और सूक्ष्म में उस चेतना के अस्तित्व को स्वीकार करता है,जिसे सुप्रीम पावर कहते हैं,यही कारण है कि सनातन धरती पर मौजूद एक-एक चीज़ में ईश्वर का दर्शन करता है,क्योंकि इसके धर्मावलंबियों का मानना है कि जबतक ईश्वर की धड़कन को एक-एक कण में महसूस किया जाता रहेगा,ये दुनिया सुंदर बनी रहेगी और जिस दिन अनदेखे ईश्वर के आदर्शवाद में देखी जाने वाली चीज़ों का अनादर होगा,दुनिया का रूप-रंग उसी दिन से बिगड़ने शुरू हो जायेंगे और अंतत: यह क़दम दुनिया के अंत की ओर ले जायेगा।इसीलिए,सनातन पूरी दुनिया को अपना एक कुटुंब मानता है और ईश्वर के विभिन्न धाराओं को मानने वालों को अपना कुटुंब क़रार देते हैं।

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |

अर्थात् : यह मेरा है ,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है;इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है|सनातन का यह महामंत्र है।