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JRD TATA की 119 वीं जयंती पर ख़ास।टाटा की कहानी,सुधा मूर्ति की जुबानी!

JRD TATA और सुधा मूर्ति

JRD TATA यानी जहांगीर रतनजी दादा भाई की आज 119वीं जयंती है। जेआरडी टाटा की जयंती पर उनसे जुड़ी कुछ रोचक कहानियां जो ख़ास है। वैसे तो जेआरडी टाटा से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं,जो न सिर्फ रोचक है,बल्कि हमसब के लिए प्रेरक भी। आज उन्हीं कहानियों में से एक पन्ना आपके लिए लाया हूं।

ग्रेट ब्रिटेन के पीएम ऋषि ,सुनक की सास,इन्फोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति की पत्नी और इन्फोसिस फाउंडेन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति को आप जानते ही होंगे। सुधा मूर्ति ने पिछले दिनों द कपिल शर्मा शो में जेआरडी टाटा(JRD TATA) के बारे में एक किस्सा सुनाई जो काफी रोचक और प्रेरक है। सुधा मुर्ति ने इस प्रोग्राम में कहा कि ‘जेआरडी टाटा बहुत हैंडसम दिखते थे’

वैसे तो JRD TATA से जुड़े कई दिलचस्प कहानियां हैं। उसी कहानियों में से एक किस्सा सुधा मूर्ति से संबंधित भी है। सुधा मूर्ति से जुड़ी हुई कहानी जो न सिर्फ दिलचस्प है,बल्कि वो टाटा ग्रुप में बदलाव लाने की कहानी भी गढ़ती है। दरअसल,एक बार सुधा जेआरडी टाटा से गुस्सा हो जाती हैं और उन्हें एक खत लिख डालती हैं। फिर क्या था इस खत ने ऐसा कर दिया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। सुधा मूर्ति की ओऱ से लिखी गई चिठ्ठी टाटा ग्रुप में बदलाव का कारण बन जाता है।जानते हैं पूरी कहानी।

जब सुधा मूर्ति को आया गुस्सा

कपिल शर्मा के प्रोग्राम में सुधा मूर्ति ने आगे कहा कि ‘बात 1974 की है,जब मैं बेंगलुरु स्थित टाटा इंस्टीट्यूट से एमटेक कर रही थी। और उस दौरान मैं अपनी क्लास में एक मात्र लड़की थी,जो एमटेक कर रही थी। साल 1972 में मैंने बीई किया था। और उस दौरान में भी पूरी यूनिवर्सिटी में मैं अकेली लड़की थी।‘ सुधा मूर्ति ने आगे कहा कि ‘मुझे पीएचडी करने के लिए अमेरिका से स्कॉलरशिप मिल रहा था। मैं होस्टल जा रही थी,तभी मुझे नोटिस बोर्ड पर एक विज्ञापन चस्पा हुआ मिला। जिसमें लिखा हुआ था कि टेल्को पुणे और जमशेदपुर में इंजीनियर ढूंढी जा रही है। लेकिन डिस्क्लेमर की तरह उसके नीचे लिखा था-लेडीज स्टूडेंट्स नीड नोट अप्लाई। जैसे सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है कि सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। विज्ञापन पढ़ते ही खुशी तो हुई लेकिन डिस्क्लेमर पढ़ने के बाद बहुत गुस्सा आया। कॉलेज स्टूडेंट थी उम्र 22-23 साल की होगी औऱ उस समय गुस्सा भी बहुत आता था,लेकिन आजकल नहीं आता। मैं हॉस्टल पहुंची और एक पोस्टकार्ड लिया।‘

JRD TATA
‘बहुत सुंदर दिखते थे JRD TATA’

बहुत सुंदर थे जेआरडी टाटा

आगे सुधा मूर्ति ने कहा कि” जेआरडी टाटा प्रत्येक साल हमारे कॉलेज आते थे, दूर बैठी मैं उनको देखती थी,क्योंकि मैं उस दौरान कॉलेज की छात्रा थी,मध्यम वर्गीय परिवार से आती थी। और ऐसे बड़े-बड़े शख्सियत को नजदीक से जाकर बात करने की हिम्मत कहां थी। जेआरडी टाटा बहुत ही हैंडसम थे।

सुधा मूर्ति ने लिखी चिठ्ठी

सुधा मूर्ति जेआरडी टाटा को एक खत लिखी,जिसमें उन्होंने लिखा ‘सर जेआरडी टाटा, जब देश आजाद नहीं था, तब आपका ग्रुप शुरू हुआ था। आपका ग्रुप केमिकल, लोकोमोटिव और आयरन एंड स्टील इंडस्ट्री में काम करता था। आप हमेशा समय से आगे की सोचते थे। और समाज में महिला और पुरुष दोनों बराबर होते हैं। महिलाओं को अगर आप चांस नहीं दे रहे हैं, तो आप महिलाओं की सेवाओं से वंचित रह रहे हैं। इसका मतलब है कि आपका देश प्रोग्रेस नहीं कर पाएगा।’

खत लिखा पर पता मालूम नहीं

सुधा मूर्ति खत में आगे लिखती हैं, ‘महिलाओं को शिक्षा और नौकरी के अवसर नहीं। तो ऐसा देश औऱ समाज कभी भी ऊपर नहीं आता सकता है। यह आपकी कंपनी की गलती है कि आप महिलाओं को मौके नहीं दे रहे हैं। ऐसे मैंने लिख दिया। लेकिन उनका एड्रेस मुझे मालूम नहीं था। हम हुबली के हैं। उन दिनों में इंटरनेट भी नहीं था। फिर मैंने सोचा कि किसने यह लिखा है लेडीज स्टूडेंट नीड नोट टू अप्लाई.. टेल्को कंपनी ना! ओके, तो मैंने जेआरडी टाटा, टेल्को बॉम्बे… इतना लिखकर ही पोस्टकार्ड पोस्ट कर दिया।’

JRD TATA
ख़त पढ़ने के बाद JRD TATA ने टाटा ग्रुप में किया बदलाव

खत पढ़कर जेआरडी टाटा को आया गुस्सा

मूर्ति ने प्रोग्राम में आगे बताया, ‘जेआरडी तो काफी बड़ी हस्ती थे। उनको वो पोस्टकार्ड मिला। पोस्टकार्ड पढ़ने के बाद उनको बहुत गुस्सा आया। उन्होंने स्टाफ को बुलाया और कहा- एक लड़की यह पूछ रही है और यह अन्याय है। उसको एक चांस देना चाहिए। उसने अच्छा नहीं किया तो हम फेल कर देंगे।‘

मूर्ति ने आगे कहा कि ‘उस समय मैं लेडीज हॉस्टल में थी। वहां फोन नहीं होता था, क्योंकि बॉयज लोगों से फिर लड़कियां फोन करती थीं। एनीवे, हमें एक टेलीग्राम मिला। प्लीज अटेंड टेल्को फाइनल इंटरव्यू इन पुणे एट अवर एक्सपेंस फर्स्ट क्लास ट्रेन टिकट। पुणे और बेंगलुरु में प्लेन नहीं था उस समय। वह 1974 की बात थी। 50 साल हो गया ना। मेरी सहेलियां थीं, सब पीएचडी करती थीं। उन्होंने कहा आप जाइए। पुणे में साड़ी बहुत अच्छी मिलती है। हम सब 30 रुपये इकट्ठे करते हैं और एक साड़ी मुफ्त में देते हैं आपको। मैं वहां गई। मैं टेक्निकली बहुत-बहुत अच्छी हूं। मैंने सारे टेक्निकल सवालों के जवाब दिए।‘

जब सुधा मूर्ति ने पूछे सवाल

‘तब मैंने भी एक सवाल पूछ लिया- वाई आर यू नोट टेकिंग वुमन? तब उन्होंने कहा- बेटा प्लीज अंडरस्टेंड, तुम बहुत अच्छी इंजीनियर हो। लेकिन हमारा एक प्लांट जमशेदपुर में है और एक प्लांट पुणे में है। अभी तक एक भी लड़की ने जॉइन नहीं किया है। वहां शिफ्ट में काम होता है। मर्दों के साथ काम करना होता है और आप अकेले होते हैं। नहीं तो आप आरएंडडी या फिर पीएचडी में बराबर काम कर सकते हैं। मैंने बताया कि मेरे नानाजी इतिहास के टीचर थे। उन्होंने कहा था कि 10 हजार कदमों की यात्रा हमेशा एक कदम से शुरू होती है। इसीलिए हमने बोला कि अगर आप ऐसे ही सोचते रहेंगे तो इस दुनिया में कभी भी लड़कियां आगे नहीं आ पाएंगी। एक ना एक दिन तो उन्हें आगे आना ही होगा और आपको यह शुरू करना चाहिए। फिर मुझे जॉब मिल गई।’

नौकरी लगने के बाद जेआरडी को हुई सुधा की चिंता

सुधा मूर्ति ने आगे कहा कि इस वाक्या के आठ साल बाद एक दिन बॉम्बे हाउज की सीढ़ियों पर जेआरडी से उनकी सामना हो गई। सुधा मूर्ति अकेली थीं। जेआरडी इस बात से परेशान हुए कि वो अकेली हैं, उनके पति उन्हें लेने नहीं आए हैं और रात हो रही थी। इसके बाद जेआरडी टाटा तब तक उनके साथ खड़े होकर उनसे बतियाते रहे जब तक उनके पति नारायणमूर्ति उन्हें लेने नहीं आ गए।

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