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यह हक़ीक़त तो दो दुनी पांच वाली है !

Shivala Ghat Varanasi

बनारस (Banaras) में शिवाला घाट पर ईस्ट इंडिया कंपनी के यूरोपीय अफसरों का एक छोटा सा कब्रिस्तान है। इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग अर्थात ए.एस.आई. ने राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है। ए.एस.आई. ने बनारस में जिन 18 स्थानों को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है, उनमें 4 कब्रिस्तान, 2 मकबरे और 1 मस्जिद शामिल है। यहां तक तो सब ठीक है। कहानी में पेंच तब आता है जब पता चलता है कि ए.एस.आई. की सूची में एक भी मंदिर नहीं है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कोई कहे कि दो दुनी पांच होता है !

यह बात केवल बनारस तक ही सीमित नहीं है। देश के लगभग सभी जिलों और शहरों में ऐसी ही विसंगति देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए उत्तराखंड के ऐतिहासिक-धार्मिक शहर हरिद्वार की सूची देखें तो वहां राष्ट्रीय महत्व का केवल एक स्मारक है और वह है अंग्रेजों का एक पुराना कब्रिस्तान। जिन लोगों ने भी यह सूची बनाई, उन्हें मालूम था कि हरिद्वार में ग्यारहवीं शदी में निर्मित मायादेवी का मंदिर है, 13वीं शदी की एक सूफी दरगाह है, सिखों का एक बहुत पुराना गुरुद्वारा है। लेकिन, इस सबको बाहर रखते हुए उन्होंने केवल अंग्रेजी कब्रिस्तान को ही राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया।

वर्ष 2016 में ए.एस.आई की वेबसाइट बताया गया था कि बनारस में राष्ट्रीय महत्व के 20 स्मारक हैं, जिन्हें केन्द्र सरकार ने संरक्षित घोषित किया है। यह संख्या चौंकाने वाली थी। हर कोई सहज ही अनुमान लगा सकता है कि बनारस जैसे सांस्कृतिक नगर में धरोहर स्थलों की सूची हजारों में होगी। लेकिन, यहां तो बस 20 स्थानों की सूची थी। पिछले 6-7 वर्षों में इस सूची में कोई नया नाम तो नहीं जुड़ा, किंतु दो नाम गायब जरूर हो गए हैं। अब यदि आप ए.एस.आई की सूची देखेंगे तो उसमें केवल 18 स्थान ही दिखायी देंगे।

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किसी स्थान को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के जो अंतरराष्ट्रीय मानक होते हैं , उसके अनुसार बनारस में 18 नहीं बल्कि हजारों स्थान हो सकते हैं लेकिन, ए.एस.आई ने उन्हें अपनी सूची में शामिल नहीं किया है। इस मामले में बनारस कहीं अपवाद तो नहीं, लेकिन ऐसा नहीं है। अन्य प्रमुख शहरों की सूची देखने पर पता चलता है कि सब जगह बनारस जैसा ही हाल है। ए.एस.आई. की मानें तो देश भर में राष्ट्रीय महत्व के कुल स्मारक चार हजार से भी कम हैं।

भारत की इस सूची के मुक़ाबले यू.के. अर्थात ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका की पर नज़र डालने पर हैरत होती है। गूगल (Google) की मदद से मेरे सामने जो सूची आती है, उस पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है,क्योंकि यूके के राष्ट्रीय धरोहर स्थलों की सूची में लगभग साढ़े छः लाख स्थान हैं, तो अमेरिका में यह संख्या दस लाख के ऊपर है। कहां चार हजार और कहां यह लाखों की संख्या। सवाल है कि क्या ब्रिटेन और अमेरिका में भारत से अधिक धरोहर स्थल हैं ?

नहीं। बिल्कुल नहीं। यूके और अमेरिका में भारत से ज्यादा आधुनिक इमारतें हो सकती हैं, लेकिन धरोहर स्थलों के मामले में भारत भला पीछे कैसे हो सकता है ? सच्चाई यह है कि धरोहर स्थलों के मामले में भारत कम से कम यूके और अमेरिका से तो आगे ही है। हमारी समस्या बस यह है कि हमने अपने धरोहर स्थलों को व्यवस्थित रूप से सूचीबद्ध नहीं किया है। हमारे देश में लाखों ऐसे स्मारक हैं, जो गुमनामी के अंधूरे में डूब कर धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं। उनके बारे में जानने और उन्हें बचाने का राष्ट्रीय स्तर पर कोई गंभीर प्रयास नहीं हो रहा है। हमारे देश में एक बड़ा वर्ग है, जो यूके और अमेरिका की नकल करने के लिए बेताब रहता है, लेकिन आश्चर्य है कि इस मामले में वह भी मौन है।

कुछ लोगों को लग सकता है कि हमारी सूची इसलिए छोटी है, क्योंकि इसमें शामिल होने का मापदंड बहुत ऊंचा है। लेकिन, दुर्भाग्य से यह भी सच नहीं है। वास्तव में यह सूची अंग्रेजों ने अपनी औपनिवेशिक जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की थी। 1947 में हम इस सूची को खारिज करके एक नई सूची बना सकते थे। हम अपने धरोहर स्थलों की एक ऐसी सूची तैयार कर सकते थे, जिसमें भारत की आधी-अधूरी नहीं बल्कि पूरी तस्वीर दिखाई देती। लेकिन, हमने ऐसा नहीं किया। यह काम हम आज भी कर सकते हैं,मगर हम नहीं कर रहे हैं।