Hindi News

indianarrative

‘भारतीय संविधान–अनकही कहानी’ की चर्चा Book Launch से पहले ही तेज, किसके सूखने लगे गले और क्यों माथे पर आया पसीना! पढ़ें यहां

लोकार्पण से पहले ही ‘भारतीय संविधान – अनकही कहानी' के चर्चे क्यों तेज

 

वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष रामबहादुर की किताब ‘भारतीय संविधान – अनकही कहानी का लोकार्पण 9 दिसंबरको होना है लेकिन किताब के तेवर आतिशबाजी अभी से करने लगे है। इस किताब में ऐसा कुछ जान पड़ता है कि नेहरू-गांधी से जुड़े तमाम रहस्यों से पर्दा उठने वाला है। इस किताब में ऐसा भी कुछ है जिससे देश की जनता पहली बार बाखबर होगी। जैसे, किस तरह बाबा साहेब अम्बेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद की अतिमहत्वपूर्ण भूमिका के बाद भी उनके कद को काट-छांट दिया गया।  राम बहादुर राय की इस किताब कालोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगें।

‘लोकनीति केंद्र’ की वेबसाइट पर लिखा गया है कि राम बहादुर राय की किताब पर चर्चा लोकार्पण के बाद होगी। लेकिन रामबहादुर राय की इस पुस्तक की चर्चा शुरू हो चुकी है। मीडिया से लेकर राजनीति तक के ‘ऊंचे वर्ग' में खूब चर्चा हो रही है। कुछ नेताओं के गले सूख रहे हैं। सर्द रात में भी पेशानी पर पसीना है… यही सोच कर कि पता नहीं ‘…इसके आगे राम बहादुर ने और कौन से राज फाश किए होंगे।’

राम बहादुर राय के प्रशंसक जितने संघ-बीजेपी में हैं उतने ही कांग्रेस, एनसीपी, जदयू और अन्य सियासी दलों में भी। ये सभी जानते हैं कि जो राम बहादुर ‘अटल बिहारी बाजपेई को भरे हॉल में अली बाबा और चालीस चोर ’कह सकते हैं वही राम बहादुर राय भारतीय संविधान की अनकही कहानी में कुछ कारनामों से परतें भी हटा सकते हैं, सौ फीसदी सच्चाई के साथ।  

 ‘लोकनीति केंद्र’  ने रामबहादुर राय की किताब में दबी कुछ चिंगारियों को कुरेदा भर है। इस किताब के पन्नों में आग ही नहीं  बल्कि ऐसा लगता है कि ज्वालामुखी छुपा हुआ है। किताब में तमाम ऐसी घटनाएं दर्ज है जो अभी तक जो बाहर नहीं आई। जिस राजद्रोह की बहुत बात आजकल बहुत हो रही है मूल संविधान के बाद उसकी कैसे वापसी हुई उसकी कहानी दर्ज है। आखिर नेहरू राजेन्द्र प्रसाद को राष्ट्रपति क्यों नहीं बनने देना चाहते थे, इसकी भी कहानी इस पुस्तक में है। यह पुस्तक भारतीय संविधान के ऐतिहासिक सच, तथ्य, कथ्य और यथार्थ की कौतूहलता का सजीव चित्रण करती है। संविधान की कल्पना, अवधारणा और उसका उलझा इतिहास इसमें समाहित है। घटनाएँ इतिहास नहीं होतीं, उसके नायक इतिहास बनाते हैं।

1920से महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन की मुख्यधारा का नेतृत्व किया। उन्होंने ही स्वराज्य को पुनर्परिभाषित किया। फिर संविधान की कल्पना को शब्दों में उतारा। इस तरह संविधान की अवधारणा का जो विकास हुआ, उसके राजनीतिक नायक महात्मा गांधी हैं। वे संविधान सभा के गठन, उसे विघटित होने से बचाने और सत्ता हस्तांतरण की हर प्रक्रिया में अत्यंत सतर्क हैं। उन्होंने हर मोड़ पर कांग्रेस को बौद्धिक, विधिक, राजनीतिक और नैतिक मार्गदर्शन दिया। संविधान के इतिहास से पता नहीं क्यों, इसे ओझल किया गया है। ग्रेनविल ऑस्टिन ने जो स्थापना दी, उसके विपरीत इस पुस्तक में महात्मा गांधी की नेतृत्वकारी भूमिका का प्रामाणिक विवरण है। पंडित नेहरू बड़बोले नेता थे। खंडित चित्त से उनका व्यक्तित्व विरोधाभासी था। संविधान के इतिहास में वह दिखता है। इस पुस्तक में उसके तथ्य हैं कि कैसे उन्हें अपने कहे से बार-बार अनेक कदम पीछे हटना पड़ा जब 1945से 1947के दौरान ब्रिटिश सरकार से समझौते हो रहे थे।

सरदार पटेल ने मुस्लिम सदस्यों को सहमत कराकर पृथक् निर्वाचन प्रणाली को समाप्त कराया, जिससे संविधान सांप्रदायिकता से मुक्त हो सका। इसे कितने लोग जानते हैं! डॉ. भीमराव आंबेडकर ने उद्देशिका में बंधुता का समावेश कराया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा का भरोसा उन झंझावातों में भी विचलित होने नहीं दिया। संविधान की नींव में जो पत्थर लगे उन्हें बेनेगल नरसिंह राव ने लगाया, जिस पर इमारत बनी। उस इतिहास में एक पन्ना ‘राजद्रोह धाराओं की वापसी’ का भी है, जिसे असंवैधानिक संविधान संशोधन कहना उचित होगा। पंडित नेहरू ने यह कराया। यह अनकही कहानी भी इसमें आ गई है।