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पृथ्वी पर जीवन का होने वाला है दी एंड? वैज्ञानिक बोले, पृथ्‍वी का गड़बड़ाया सिस्‍टम, मानवता के लिए सुरक्षित नहीं

End of Earth: वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि पृथ्वी (End of Earth) पर मौजूद वह सिस्‍टम जिसकी वजह से जीवन संभव है बहुत ज्‍यादा क्षतिग्रस्त हो चुका है। इसे इतना ज्‍यादा नुकसान पहुंचा है कि यह ग्रह अब मानवता के लिए सुरक्षित जगह बनने से काफी बाहर हो गया है। उन्‍होंने अपनी जांच में पाया कि नौ में से छह ग्रहीय सीमाएं इंसानों की वजह से बढ़े प्रदूषण और प्राकृतिक दुनिया के विनाश की वजह से खत्‍म हो गई हैं। उनका कहना है कि ये सीमाएं दरअसल प्रमुख ग्‍लोबल सिस्‍टम की सीमाएं हैं, जैसे कि जलवायु, जल और वन्यजीव में विविधता। लेकिन अब इसके क्षतिग्रस्‍त हो जाने से एक स्वस्थ ग्रह को बनाए रखने की क्षमता के असफल होने का खतरा बढ़ गया है।

सिस्‍टम सुरक्षित स्थिति से हुआ दूर

वैज्ञानिकों ने बताया है कि ग्रहों की टूटी हुई सीमाओं का मतलब यानी सिस्टम एक सुरक्षित और स्थिर स्थिति से बहुत दूर चला गया है। यह सिस्‍टम 10000 साल पहले यानी अंतिम हिमयुग के अंत से लेकर औद्योगिक क्रांति की शुरुआत तक मौजूद था। संपूर्ण आधुनिक सभ्यता की शुरुआत इसी समय में हुई है जिसे होलोसीन भी कहा जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह जांच मल्यांकन सभी नौ ग्रहों की सीमाओं में से पहला था और पूरे ग्रह के लिए पहली वैज्ञानिक स्वास्थ्य जांच का प्रतिनिधित्व करता था। उनका कहना है कि छह सीमाएं टूट गई हैं तो दो टूटने के करीब हैं। ये दो हैं वायु प्रदूषण और महासागरों में एसिड का बढ़ना।

ओजोन का छेद सिकुड़ा

एक सीमा जिसे खतरा नहीं है वह वायुमंडलीय ओजोन है। हाल के दशकों में विनाशकारी रसायनों को एक फेज में खत्‍म करने के तरीके से खत्‍म करने की कार्रवाई की वजह से ओजोन का छेद सिकुड़ गया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि सबसे चिंताजनक नतीजा यह है कि सभी चार जैविक सीमाएं, जो जीवित दुनिया में मौजूद हैं, उच्चतम जोखिम स्तर पर या उसके करीब थीं। जीवित दुनिया पृथ्वी के लिए खासतौर पर महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि यह कुछ भौतिक परिवर्तनों की भरपाई करके लचीलापन प्रदान करती है जैसे ही कार्बन डाइऑक्साइड प्रदूषण को सोखने वाले पेड़।

ग्रहों की सीमाएं क्‍या हैं

वैज्ञानिकों ने कहा कि ग्रहों की सीमाओं को बदला नहीं जा सकता है कि जिसके आगे अचानक और गंभीर गिरावट हो। इसके बजाय ये सीमाएं ऐसे बिंदु हैं जिनके बाद पृथ्वी के भौतिक, जैविक और रासायनिक जीवन समर्थन प्रणालियों में परिवर्तनों का जोखिम काफी बढ़ जाता है। ग्रहों की सीमाएं पहली बार साल 2009 में तैयार की गईं और साल 2015 में इन्‍हें अपनाया गया। उस समय सिर्फ सात ग्रहों की ही जांच की जा सकी थी। उस समय स्टॉकहोम रेजिलिएंस सेंटर के डायरेक्‍ट प्रोफेसर जोहान रॉकस्ट्रॉम ने इसे तैयार करने वाली टीम को लीड किया था। उनका कहना है कि विज्ञान और दुनियाभर में समाजों पर पड़ने वाली सभी चरम जलवायु घटनाओं को लेकर वास्तव में चिंतित हैं। लेकिन जो बात और भी अधिक चिंतित करती है, वह है ग्रहों की घटती लचीलापनऔर यह काफी खतरनाक है।

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