अफ्रीका (Africa) के करीब मेडागास्कर में लगभग एक हजार साल पहले एक विशाल कछुआ रहा करता था। यहां पर वह पौधे खाकर अपना गुजारा किया करता था। इन पौधों को खाकर ये कछुआ मैमथ और अन्य बड़े शाकाहारी जीवों की श्रेणी में शामिल जो गया था। इस विलुप्त हो चुके कछुए के बारे में नई स्टडी में मालूम हुआ कि वैज्ञानिक पश्चिमी हिंद महासागर (Indian Ocean) में मेडागास्कर और अन्य द्वीपों पर रहने वाले विशाल कछुओं की वंशावली पर स्टडी कर रहे थे। तब उन्हें इस बारे में पता चला है।
वैज्ञानिकों को कछुए के पैर की हड्डी मिली थी। बाद में उन्होंने इसके न्यूक्लियर और माइटोकॉन्ड्रियल DNA का विश्लेषण किया। इससे उन्होंने पाया कि यह एक नई प्रजाति है, जिसे उन्होंने एस्ट्रोचेलिस रोजरबोरी नाम दिया है। 11 जनवरी को साइंस जर्नल में इससे जुड़ा अध्ययन प्रकाशित किया गया है। कछुए की प्रजाति का नाम फ्रांसीसी पशु चिकित्सक और पश्चिमी हिंद महासागर के विशाल कछुओं के विशेषज्ञ दिवंगत रोजर बार के नाम पर दिया गया है।
कछुए का वजन भारी-भरकम
इस बारे में अब तक कोई स्पष्ट जानकारी हाथ नहीं लग पाई है कि कछुआ कब विलुप्त हुआ था। मगर अध्ययन के मुताबिक इसकी टांग एक हजार साल पुरानी है। इस स्टडी के सह लेखक कैरेन सेमंड्स ने कहा, जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी बेहतर होती रहती है, वैसे-वैसे ही हम नए डेटा प्राप्त करते रहते हैं जो हमारा दृष्टिकोण बदलता है। कछुए के नई प्रजाति की खोज रोमांचक है। पश्चिमी हिंद महासार में ज्वालामुखी द्वीप और प्रवाल द्वीपसमूह एक समय विशाल कछुओं से भरा हुआ था।
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हर साल खा जाते हैं इतने पौधे
एक लाख कछुए आज भी मेडागास्कर के उत्तर पश्चिमी इलाके में रह रहे हैं। यहां वह हर साल 1.18 करोड़ किग्रा पौधे खा जाते हैं। इस क्षेत्र की अधिकांश प्रजातियां अब मानवीय गतिविधियों के कारण विलुप्त हो चुकी हैं। जीवाश्म विज्ञानी अभी भी इन कछुओं का पता लगाने में लगे हैं। उनका कहना है कि अगर हम यह जानना चाहते हैं कि इन द्वीपों का पारिस्थितिक तंत्र मूल रूप से कैसा था तो हमें विशाल कछुओं को शामिल करना होगा।