नॉर्वे (Norway) में हाल ही में फॉस्फेट का एक अच्छा-खासा भंडार मिला है। यह भंडार इतना बड़ा है कि यह दुनिया भर में ऊर्जा की मांग पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है। खनन कंपनी नोर्गे माइनिंग ने दक्षिणी-पश्चिमी नॉर्वे में 2018 में फॉस्फेट खनिज के भंडार की पहचान की थी। अब कंपनी ने घोषणा की है कि उसने 70 अरब टन तक का भंडार खोजा है। कंपनी के मुताबिक यह इतना ज्यादा है कि 100 वर्षों तक पूरी दुनिया में बैटरी और सोलर पैनल की आवश्यक्ता को पूरा कर सकता है।
नॉर्वे की खोज इसलिए जरूरी
इसका इस्तेमाल सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहन और खाद बनाने में किया जाए तो अगले 50 साल तक दुनिया की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। फॉस्फेट रॉक फॉस्फोरस के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण घटक है, जो ग्रीन टेक्नोलॉजी के विकास में आवश्यक है। हालांकि इस समय दुनिया में फॉस्फेट की आपूर्ति को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 1669 में जर्मन वैज्ञानिक हेनिग ब्रांट ने इसकी खोज की थी। इसके बाद फॉस्फोरस के इस्तेमाल ने टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने में मदद मिली। हालांकि वह शुरुआत में धातुओं को सोने में बदलने के लिए पारस पत्थर की खोज कर रहे थे, जो निरर्थक साबित हुआ। आधुनिक समय में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों, सौर पैनल, कंप्यूटर चिप और लीथियम-आयरन फॉस्फेट में इस्तेमाल किया जाता है।
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रूस के पास सबसे बड़ा भंडार
अभी तक सबसे शुद्ध फॉस्फेट का सबसे बड़ा भंडार रूस के पास है। लेकिन रूस ने जब से यूक्रेन पर हमला किया है, तभी से फॉस्फेट की सप्लाई चेन बाधित हुई है। यूरोपीय संघ फॉस्फेट चट्टानों के आयात पर निर्भर है। ज्यादातर फॉस्फेट रॉक चीन, इराक और सीरिया जैसे देशों से आता है। हालांकि नॉर्वे की खोज से सिर्फ यूरोपीय यूनियन ही नहीं, बल्कि दुनिया पर प्रभाव होगा।