यूक्रेन जंग शुरू होने की सबसे बड़ा वजह नाटो (NATO) रहा है। मिंस्क समझौते के अनुसार यूक्रेन ने यह बात मान ली थी कि वो कभी भी नाटो में शामिल नहीं होगा। लेकिन अचानक से यूक्रेन रट लगाने लगा कि वो नाटो में शामिल होने जा रहा है और पश्चिमी देश मिलकर इसे मिलाने की कोशिश करने लगें ताकि अमेरिका रूस पर कंट्रोल पा सके। ये बात रूस को गवारा नहीं थी, रूस ने बार-बार कहा कि अगर वो नाटो में शामिल होता है तो फिर स्थिति बिगड़ जाएगी। अंत में हुआ भी यही। अब रूस के दो और पड़ोसी देश फिनलैंड और स्वीडन को अमेरिका नाटो में शामिल करने की रणनीति बना रहा है। खबरों की माने तो इन दो देशों में नाटो में शामिल होने की प्रक्रिया तेज कर दी है और अगर ऐसा हुआ तो रूस चुप नहीं बैठेगा। माना जा रहा है कि, अब थर्ड वर्ल्ड वॉर को कोई नहीं रोक सकता।
मीडिया में आ रही खबरों की माने तो, फिनलैंड और स्वीडन मई में आधिकारिक तौर पर नाटो में सदस्यता लेने की बात करेंगे। इल्तलेहती अखबार के मुताबिक फिनलैंड और स्वीडन के नेता 16 मई के करीब मिलने की योजना बना रहे हैं और उसके बाद सार्वजनिक रूप से गठबंधन में शामिल होने के लिए आवेदन करने की अपनी योजना की घोषणा कर सकते हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा किए जाने के बाद से नॉर्डिक देशों ने नाटो के साथ सहयोग बढ़ाना शुरू कर दिया। लेकिन यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से फिनलैंड और स्वीडन जैसे देश अपने रुख पर विचार कर रहे हैं और नाटो की सदस्यता चाहते हैं। फिनलैंड के विदेश मंत्री पेक्का हाविस्टो ने नाटो में शामिल को लेकर पूछे गए सवाल पर जवाब देने से इनकार कर दिया हालांकि उन्होंने कहा कि वह चाहेंगे कि फिनलैंड और स्वीडन एक समान विकल्प के साथ चलें।
इधर रूस का लगातार कहना है कि जो भी नाटो में शामिल हुआ तो गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहेगा। लेकिन, रूसी चेतावनी के बाद भी फिनलैंड और स्वीडन नाटो का सदस्य बनने की कोशिश में लगे हुए हैं। इन दोनों देशों की नाटो सदस्यता के लिए आवेदन करने पर पुतिन पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि अगर वो नाटो की सदस्यता लेते हैं, तो रूस द्वारा बाल्टिक देशों और स्कैंडिनेविया के करीब परमाणु हथियार तैनात कर देगा।