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आज पूरे हुए बलूचिस्तान के औपनिवेशीकरण के 75 साल:जेबी बलोच 

जमाल नासिर बलोच (बीच में) लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर में पाकिस्तान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन (फोटो: राहुल कुमार)

27 मार्च, 1948 को जब दक्षिण एशिया के कई राष्ट्र अपनी स्वतंत्र की स्थिति का जश्न मना रहे थे, तो एक राष्ट्र ऐसा भी था, जिसे फिर से उपनिवेश बनाया जा रहा था। बलूचिस्तान ने भारत और पाकिस्तान से पहले 11 अगस्त, 1947 को अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। लेकिन, पाकिस्तान और ब्रिटेन कभी नहीं चाहते थे कि बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश बने और बमुश्किल नौ महीनों में इसे पाकिस्तान ने बलपूर्वक अपना उपनिवेश बना लिया।

पाकिस्तान और ब्रिटेन दोनों ने दो संधियों पर हस्ताक्षर करके बलूचिस्तान को अपनी संप्रभु स्थिति स्वीकार करने के बाद भी धोखा दिया। 4 अगस्त, 1947 को कलात, पाकिस्तान और ब्रिटेन के अधिकारियों ने फ़ैसला किया कि कलात स्वतंत्र रहेगा और दूसरी बात कि 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तानी अधिकारियों ने कलात को एक स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्वीकार कर लिया था।

आज बलूचिस्तान पर कब्ज़े के 75 साल हो गए हैं और बलूचिस्तान के इतिहास और भविष्य पर चर्चा के लिए प्रस्तुत है इंडिया नैरेटिव का जमाल नासिर बलूच(जेबी) से लिया गया साक्षात्कार। जमाल नासिर बलूच  इस समय फ़्री बलूचिस्तान मूवमेंट (FBM) के विदेश मामलों के विभाग के प्रमुख हैं। यह एक राजनीतिक दल है, जिसका नेतृत्व स्वर्गीय नवाब ख़ैर बख़्श मर्री के पुत्र हिरबायर मर्री कर रहे हैं, जो कि स्वतंत्र बलूचिस्तान के लिए लड़ रहे हैं।

 

फ़्री बलूचिस्तान मूवमेंट (FBM) के जमाल नासिर बलूच

 

साक्षात्कार के अंश :

इंडिया नैरेटिव: 27 मार्च को पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान पर कब्ज़े के 75 साल पूरे हो हो गये हैं। एक बलूच और एफ़बीएम के प्रतिनिधि के रूप में आपको कहां लगता है कि परिस्थितियां बलूचों के ख़िलाफ़ गयी ?

जेबी: बलूचिस्तान के पूर्वी हिस्से पर पाकिस्तानी कब्ज़ा कोई अलग-थलग भू-राजनीतिक घटना नहीं थी, क्योंकि पाकिस्तान ने ब्रिटिश साम्राज्य के पूर्ण समर्थन और सहमति से बलूचिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया था। जब ब्रिटेन दूसरे विश्व युद्ध के कारण भारत के उपनिवेशीकरण को जारी रखने को लेकर आर्थिक रूप से सक्षम नहीं रह पाया, तो उन्होंने भारत को इस्लाम के नाम पर विभाजित कर दिया और ऑटोमन साम्राज्य के पतन के बाद पहला इस्लामिक राज्य पाकिस्तान बना दिया।

उस समय के बलूच शासकों ने अपने क्षेत्र की भू-राजनीति को नहीं समझ पाया था, और वे अपने क़ानूनी और राजनीतिक मामलों को चलाने के लिए ग़ैर-बलूच लोगों पर भी निर्भर थे। उदाहरण के लिए, एक गुजराती मुसलमान एम.ए. जिन्ना को हमारे क़ानूनी मामले को लड़ने के लिए बलूच राज्य द्वारा एक वकील के रूप में नियुक्त किया गया था। जिन्ना ने 1946 में ब्रिटिश साम्राज्य को यह याद दिलाने के लिए कैबिनेट मिशन को बलूचिस्तान का ज्ञापन प्रस्तुत किया था कि बलूचिस्तान एक ग़ैर-भारतीय राज्य है और ब्रिटिश वापसी के बाद बलूचिस्तान अपनी स्वतंत्रता हासिल कर लेगा। इसी तरह, बलूचिस्तान के शासक कलात के ख़ान ने अपनी सरकार चलाने के लिए भारतीय मुसलमानों को नियुक्त किया और एक ब्रिटिश को अपने विदेश मामलों के विभाग को संचालित करने के लिए नियुक्त किया। अपने स्वयं के युवाओं को शिक्षित करने और एक राज्य चलाने के लिए आंतरिक क्षमता के निर्माण के बजाय दुर्भाग्य से बलूच उन अभिजात वर्ग के विदेशियों पर निर्भर थे, जिन्होंने उन्हें और बलूचिस्तान को धोखा दिया।

दूसरी बात कि पाकिस्तान को ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया गया था, इसलिए ब्रिटेन ने व्यवस्थित रूप से बलूचिस्तान पर आक्रमण और कब्ज़ा करने के लिए पाकिस्तान के लिए क़ानूनी और भू-राजनीतिक अवसर पैदा किए। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में ब्रिटेन ने बलूचिस्तान के पट्टे वाले क्षेत्रों को अपने नए प्रभुत्व वाले पाकिस्तान को उपहार में दे दिया। इसके अलावा, जब बलूचिस्तान की संसद ने विलय के लिए पाकिस्तान के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया और स्वतंत्रता के लिए मतदान किया, तो बलूचिस्तान के लोकतांत्रिक जनादेश का समर्थन करने के बजाय ब्रिटेन ने पाकिस्तान का ही समर्थन कर दिया। 1876 की कलात-ब्रिटेन संधि में ब्रिटेन बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का गारंटर था। इस संधि के कारण ही ब्रिटेन बलूचिस्तान के क्षेत्र पर अपनी सेना तैनात कर सकता था या बलूचिस्तान की भूमि का उपयोग कर सकता था। 1876 की संधि के कारण ब्रिटिश साम्राज्य ने बलूचिस्तान में दुनिया के सबसे बड़े ब्रिटिश सैन्य ठिकानों में से एक क्वेटा का निर्माण किया।

ब्रिटिश साम्राज्य ने पहले विश्व युद्ध और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बलूचिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किया, लेकिन जब बलूच राष्ट्र को उसकी ज़रूरत पड़ी, तो उसने उस संधि का उल्लंघन किया। 1876 की संधि के अनुच्छेद 3 के अनुसार, यूनाइटेड किंगडम किसी भी बाहरी ख़तरे से बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मदद करने के लिए क़ानूनी रूप से बाध्य था। लेकिन,ब्रिटेन ने न केवल उस संधि का उल्लंघन किया, बल्कि बलूचिस्तान के ख़िलाफ़ पाकिस्तान का समर्थन भी किया। ब्रिटेन ने 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम में बलूचिस्तान के कब्ज़े का बीज बो दिया था, जिसने बलूचिस्तान को ब्रिटिश बलूचिस्तान से जुड़े क्षेत्रों को पट्टे पर दे दिया और फिर एक ब्रिटिश डगलस डेविड ग्रेसी के नेतृत्व में पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान पर आक्रमण किया।

 

इंडिया नैरेटिव: एक लेख के अनुसार, चीन ने अपने कर्मियों और परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए बलूच राष्ट्रवादियों से संपर्क किया है। क्या चीनियों ने FBM से संपर्क किया है, यदि हां, तो आपसे किसने संपर्क किया है ?

जेबी: चीन उन बलूच पक्षों के साथ उलझ रहा है, जो पाकिस्तानी राज्य के साथ सहयोग कर रहे हैं। ये बलूच पक्ष चीनी राज्य से लाभ और अनुबंध प्राप्त कर रहे हैं। जहां तक मेरी जानकारी है, चीन ने अख़्तर मेंगल और उनके राजनीतिक मोर्चों तक अपनी पहुंच बना ली है, जो स्वतंत्रता की आड़ में काम करते हैं, लेकिन वास्तव में ये समूह बीएनपी मेंगल का हिस्सा हैं। हम इन समूहों को वास्तविक स्वतंत्रता चाहने वाले नहीं मानते । मुझे किसी भी वास्तविक स्वतंत्रता-समर्थक बलूच समूह के साथ चीनी जुड़ाव की जानकारी नहीं है। चीन इस समय बलूचिस्तान और बलूच राष्ट्र के ख़िलाफ़ पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है। चीन हमारे क्षेत्र में एक तटस्थ शक्ति नहीं है और उन्होंने पहले ही बलूच राष्ट्र और बलूचिस्तान के ख़िलाफ़ एक पक्ष को चुन लिया है। इसलिए इन परिस्थितियों में हम चीन के साथ नहीं जुड़ सकते।

 

नैरेटिव इंडिया: कैनेडियन बैरिक गोल्ड ने रेको डीक खानों पर कब्ज़ा कर लिया है। क्या आपको लगता है कि वे बलूचिस्तान के साथ अपने व्यवहार में निष्पक्ष होंगे ?

जेबी: बलूचिस्तान पाकिस्तान का एक उपनिवेश है, यह एक अधिकृत क्षेत्र है। बलूचिस्तान में कैनेडियन बैरिक गोल्ड और चीनी एमसीसी में कोई अंतर नहीं है। पाकिस्तान मास्टर है, वह सभी सौदों के लाभार्थी है। बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों के मामले में सबसे अमीर देशों में से एक होने के बावजूद बलूच राष्ट्र सबसे अविकसित राष्ट्र बना हुआ है।

 

इंडिया नैरेटिव: FBM की नीति के तहत बलूचिस्तान में ईरानी बलूचिस्तान भी शामिल हैं। आप हमें क्या बता सकते हैं कि ईरानी पक्ष यानी सिस्तान बलूचिस्तान में विशेष रूप से ज़ाहेदान की घटना के बाद क्या हो रहा है ?

जेबी: मैं आपको यहां ठीक कर दूं। FBM की नीतियां बलूचिस्तान के आकार को कम या बढ़ा नहीं सकती हैं। बलूचिस्तान एक सचाई है, यह एक वास्तविकता है कि कोई इसे पसंद करे या न करे, ईरानी कब्ज़े वाला बलूचिस्तान बलूचिस्तान है, पाकिस्तानी कब्ज़े वाला बलूचिस्तान, जिसमें सिंध और पंजाब के कुछ इलाके शामिल हैं, बलूचिस्तान का हिस्सा हैं। अफ़ग़ानिस्तान के ऐतिहासिक बलूच क्षेत्र, जो मनमाने रूप से खींची गयी डूरंड रेखा से विभाजित थे, बलूचिस्तान का ही हिस्सा है। बलूचिस्तान को अवैध रूप से विभाजित किया गया था, इसलिए हमारे देश को फिर से जोड़ने के लिए हमारा संघर्ष न्यायसंगत और क़ानूनी है।

सितंबर 2022 में ज़ाहेदान नरसंहार ईरानी राज्य द्वारा पूर्व नियोजित था, जिसे कि उनकी योजनाओं के अनुसार अंजाम नहीं पा सका। ईरानी राज्य द्वारा 100 से अधिक निर्दोष बलूच लोगों को मार डाला गया। सैकड़ों निर्दोष बलूच लोगों को मार कर ईरान ने हमारी राष्ट्रीय एकजुटता और एकता को बढ़ाया है। यही कारण है कि ईरानी कब्ज़े वाले बलूचिस्तान में हर तबके के लोग आज़ादी और न्याय की मांग कर रहे हैं। कुर्दिस्तान, अरबिस्तान अल अहवाज़ और तुर्क अजरबैजान में भी लोग आगे बढ़ रहे हैं।

ईरान की मौजूदा आंतरिक स्थिति को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि आधुनिक ईरान कैसे अस्तित्व में आया। असल में ईरान एक औपनिवेशिक भू-राजनीतिक निर्माण है और हम बलूचिस्तान की मौजूदा स्थिति को शेष ईरान से अलग नहीं कर सकते। ईरान की स्थिति और भू-राजनीति पाकिस्तान से अलग है। पाकिस्तान में ग़ैर-पंजाबी अल्पसंख्यक हैं और जनसंख्या की दृष्टि से पंजाबी बहुसंख्यक हैं। वहीं ईरान में आबादी के लिहाज़ से फ़ारसी बहुसंख्यक नहीं हैं। कुछ अनुमानों के मुताबिक ईरान की आबादी में फ़ारसियों की संख्या महज़ 40 फ़ीसदी है। सभी राष्ट्र, बलूच, कुर्द, अरब, अजरबैजान तुर्क और फ़ारसी वर्तमान इस धार्मिक अधिनायकवादी शासन से छुटकारा पाना चाहते हैं।

हालांकि, फ़ारसियों को लगता है कि वे तथाकथित फ़ारसी साम्राज्य का सहारा लेकर शासन के बाद के ईरान में सभी देशों पर अपनी इच्छा थोप सकते हैं। दूसरी ओर, ग़ैर-फ़ारसियों को लगता है कि वे अपना भविष्य ख़ुद तय करना चाहते हैं। मुक्त बलूचिस्तान आंदोलन उन अन्य ग़ैर-फ़ारसी समूहों के साथ भी काम कर रहा है और सहयोग कर रहा है, जो राष्ट्रीय मुक्ति में विश्वास करते हैं। हमें लगता है कि ईरान अपने हित के लिए बदल जाएगा, ईरान में मौजूदा फ़ासीवादी शासन के पतन से सभी उत्पीड़ित राष्ट्रों को अपना भविष्य चुनने का लोकतांत्रिक अवसर मिलेगा। यदि सभी ग़ैर-फारसी लोकतांत्रिक ताकतें हमारे आपसी हितों और क्षेत्रीय शांति के लिए फ़ारसी अभिजात वर्ग को लोकतांत्रिक सिद्धांतों को स्वीकार करने के लिए सहयोग करें और मजबूर करें,तो ऐसा परिवर्तन संभव है।

 

इंडिया नैरेटिव: आप सऊदी अरब और ईरान के बीच नवीनतम शांति समझौते को कैसे देखते हैं। आप बलूचिस्तान के ईरानी पक्ष और बलूचिस्तान के पाकिस्तान पक्ष, दोनों में किस भू-राजनीतिक प्रभाव को देखते हैं ?

जेबी: मोहम्मद बिन सलमान के प्रति बाइडेन प्रशासन के रवैये के कारण सउदी चीन के क़रीब आ रहा है। हालांकि, चीन द्वारा मध्यस्थता किए गए सौदे की लंबे दौर की भविष्यवाणी करना जल्दबाज़ी होगी। यह सौदा कम से कम यह दिखाता है कि चीन हमारे क्षेत्र में एक बड़ी भूमिका निभाना चाहता है और अमेरिकी सहयोगी मध्य पूर्व में अमेरिकी रणनीति से संतुष्ट नहीं हैं। इस तरह के सौदे से बलूचिस्तान में सऊदी और ईरानी प्रॉक्सी के हितों को नुक़सान हो सकता है, जो अपने अस्तित्व के लिए ईरानी और सऊदी धन पर निर्भर हैं, लेकिन यह बलूच राष्ट्रीय संघर्ष और मुक्त बलूचिस्तान आंदोलन के लिए कोई समस्या पैदा इसलिए नहीं करेगा, क्योंकि हम किसी विशेष देश के हितों के लिए काम नहीं कर रहे हैं। हम बलूच के राष्ट्रीय हितों के लिए काम करते हैं, और ईरान में सत्तावादी शासन को उखाड़ फेंकना हमारे राष्ट्रीय हित में है।

इंडिया नैरेटिव: बलूच समूह विभिन्न मोर्चों पर (राजनीतिक, सैन्य रूप से आदि) लड़ रहे हैं, लेकिन हमें कोई संयुक्त प्रयास नहीं दिख रहा है। इस बारे में आपको क्या कहना है ?  और अगर आप अभी एकजुट नहीं हैं, तो आप कैसे कल्पना करते हैं कि एक स्वतंत्र बलूचिस्तान का शासन होगा ?

 

जेबी: वर्तमान बलूच राष्ट्रीय संघर्ष एक एकीकृत मोर्चे के रूप में शुरू किया गया था, लेकिन कुछ मित्र देशों द्वारा बाहरी हस्तक्षेप, पाकिस्तान समर्थक राजनीतिक समूहों जैसे बीएनपी मेंगल द्वारा बलूच स्वतंत्रता दलों में घुसपैठ और कुछ सशस्त्र समूहों की ग़लत नीतियों ने इस संघर्ष के भीतर फूट और अविश्वास पैदा कर दिया है। अतीत में हमने अलग-अलग मौक़ों पर राजनीतिक दलों को एक साथ लाने का प्रयास किया है और अभी भी एकता के लिए बलूच पार्टियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। जहां तक आज़ादी के बाद बलूचिस्तान का सवाल है, बलूचिस्तान लिबरेशन चार्टर का अध्याय तीन शासन के सम्बन्ध में हमारी नीतियों को स्पष्ट करता है। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि हमारी ज़मीन को कौन आज़ाद करता है, आज़ादी के बाद बलूचिस्तान की सत्ताधारी पार्टी का फ़ैसला गन से नहीं, बल्कि बैलेट से होगा।

 

इंडिया नैरेटिव: पाकिस्तान आर्थिक और राजनीतिक संकट से गुज़र रहा है और पाकिस्तान के लिए चीज़ें मुश्किल होती जा रही हैं। बलूच इस स्थिति को कैसे देखते हैं और पाकिस्तान की अस्थिरता बलूच आंदोलन को कैसे प्रभावित करती है ?

जेबी: पाकिस्तान के पास कभी स्थिर अर्थव्यवस्था नहीं रही है। विदेशी सहायता, अफ़ग़ान-सोवियत संघर्ष और फिर आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध ने पाकिस्तानी राज्य के लिए सरकारी तंत्र को चलाने के लिए पश्चिमी दुनिया से सहायता और धन प्राप्त करने के अवसर पैदा कर दिए थे। पाकिस्तान एक अवैध राज्य है, इसमें कोई लोकतंत्र नहीं है, और कोई सामाजिक या राष्ट्रीय एकता भी नहीं है। इसका विश्व मानचित्र पर अस्तित्व का कोई ऐतिहासिक आधार और औचित्य नहीं है। पाकिस्तान जैसी राजनीतिक संस्थायें एक व्यावहारिक अर्थव्यवस्था बना पाने में अक्षम हैं। जितना अधिक पाकिस्तान अस्थिर होगा, बलूच लोगों के लिए हमारी आज़ादी हासिल करने के लिए उतने ही अधिक अवसर पैदा होंगे। पाकिस्तान गड़बड़ है, लेकिन मुझे लगता है कि पाकिस्तान भी भाग्यशाली है कि उसे भारत जैसा अनपेक्षित और भ्रमित दुश्मन मिला है। भारत एक ऐसी आर्थिक शक्ति  है,जो वर्तमान मोदी सरकार के कारण हमारे क्षेत्र में कम से कमतर प्रभावशाली होता जा रहा है। इतनी दौलत और आर्थिक ताकत वाला कोई और यथार्थवादी देश पाकिस्तान का मसला बरसों पहले सुलझा चुका होता।