सबके दिमाग़ में यही सवाल है कि क्या चीन नक़दी की कमी से जूझ रहे पाकिस्तान के बचाव में आगे आयेगा ? यह सवाल ज़रूरी इसलिए भी हो जाता है,क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 6.5 अरब डॉलर के ऋण के पुनरुद्धार में देरी के बीच पाकिस्तान डिफ़ॉल्ट होने के क़रीब पहुंच रहा है। दक्षिण एशियाई देश में गहराते राजनीतिक संकट पर चीन ने कोई बयान नहीं दिया है, इसलिए चिंता का बढ़ जाना स्वाभाविक है।
इंडिया नैरेटिव से एक विश्लेषक ने कहा, ‘पाकिस्तान में चीन का दांव ऊंचा लगा हुआ है। उसे भारत को रोकने के लिए पाकिस्तान की भी ज़रूरत है, लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजिंग पाकिस्तान को पूरी तरह से राहत देने के लिए तैयार होगा। यह बहस का विषय है।”
ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि अगर पाकिस्तान आईएमएफ के बेलआउट पैकेज को प्राप्त करने में विफल रहता है, तो वह डिफॉल्ट हो सकता है। लंबी बातचीत के बावजूद दोनों के बीच अभी तक कोई सहमति नहीं बन पायी है। इसके अलावे, राजनीतिक उथल-पुथल के साथ आईएमएफ के साथ एक समझौते पर पहुंचने की पाकिस्तान की उम्मीदें धूमिल होती जा रही हैं। इस स्थिति में पाकिस्तान के पास अपने सहयोगियों, विशेष रूप से चीन तक पहुंचने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा। इसके पीछे का प्रमुख कारण है- चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) इस दक्षिण एशियाई देश से होकर गुज़र रहा है।
जहां चीन ने दिवालिया श्रीलंका को कोई भी पर्याप्त वित्तीय सहायता देने से परहेज़ किया, वहीं पाकिस्तान का मामला अलग हो सकता है, क्योंकि बीजिंग के अपने हितों की रक्षा करनी है।
हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि चीन इस समय अपने स्वयं के घर को व्यवस्थित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और इसलिए केवल “कुछ सहायता” प्रदान करने में सक्षम हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान को “पूरी तरह से ख़तरे से बाहर” नहीं निकाल सकता । विश्लेषक का कहना है,उन्होंने कहा, ‘चीन के पास उस तरह के हथियार नहीं हैं, जो पाकिस्तान को बचाने के लिए ज़रूरी हैं। केवल आईएमएफ ही ऐसा कर सकता है। अधिक से अधिक चीन कुछ मदद की पेशकश कर सकता है, जो पाकिस्तान को कुछ और महीनों के लिए खींच सकता है।’
चीन की अपनी चुनौतियां
कोविड के प्रकोप के बाद से कई आर्थिक चुनौतियों ने चीन को भी प्रभावित किया है।
सार्वजनिक और निजी ऋण में लगातार वृद्धि बीजिंग के लिए गंभीर चिंता का कारण बन गयी है। चीन के समग्र ऋण का आकलन करना तो मुश्किल है, क्योंकि इसका एक बड़ा हिस्सा स्थानीय सरकारों और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा वहन किया जाता है। फोर्ब्स के मुताबिक़, चीन की ऋण समस्या का आकार वास्तव में चौंका देने वाला है। इसका कहना है,”अंतिम आकलन के तौर पर जो सामने आया है,वह सभी प्रकार के ऋण- सार्वजनिक और निजी और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में 51.9 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है। यह चीन की अर्थव्यवस्था के आकार का लगभग तीन गुना है।इसे देश के सकल घरेलू उत्पाद द्वारा मापा जाता है।”
यह समस्या अस्थिर मैक्रो-इकोनॉमिक संकेतकों के साथ मिलकर इसकी अपनी आर्थिक वृद्धि को धीमी कर रही है। अप्रैल में एस एंड पी द्वारा विनिर्माण के लिए देश का एस एंड पी परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स एक बार फिर 50 अंक से नीचे गिरकर 49.5 पर आ गया था, जो असमान रिकवरी प्रवृत्तियों को दर्शाता है।
चीन दूसरे देशों को उधार देता है
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कहा कि 2008 और 2021 के बीच चीन ने 22 देशों को उबारने के लिए 240 बिलियन डॉलर ख़र्च किए, जो इसके ऋणी हैं और इसकी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर (BRI) परियोजना में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इन देशों में पाकिस्तान, अर्जेंटीना, केन्या और तुर्की शामिल हैं।
डेटा वेबसाइट स्टेटिस्टा के अनुसार, 2021 के अंत में जिन 98 देशों के लिए डेटा उपलब्ध था, उनमें से पाकिस्तान पर चीन का 27.4 बिलियन डॉलर, अंगोला का 22.0 बिलियन डॉलर और इथियोपिया का 7.4 बिलियन डॉलर का बाह्य ऋण बकाया था। केन्या, जिबूती, अंगोला, मालदीव, लाओस और श्रीलंका सहित कई देश उन देशों में शामिल हैं, जिन्हें चीनी ऋण प्राप्त हुआ है।
अवैध ऋण उन्मूलन समिति (CadTM) ने कहा कि जुलाई 2021 और मार्च 2022 के बीच पाकिस्तान की द्विपक्षीय ऋण सेवा का 80 प्रतिशत से अधिक बीजिंग में चला गया।
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