आईएएनएस प्रकाशित
G-20 declaration: ‘भारत और अमेरिका ने दिल्ली में चीन के क़दम को विफल कर दिया। यह G-20 घोषणापत्र का सबसे अच्छा क्षण है।’ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नई दिल्ली में आयोजित हुए G-20 शिखर सम्मेलन से दूर रहने के फ़ैसले का उद्देश्य भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके बेहतरीन क्षण से वंचित करना हो सकता है, लेकिन वह अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ हैं। टाइम मैगज़ीन ने अपने नवीनतम अंक में कहा है कि इन नेताओं ने चतुराई से यह पता लगा लिया है कि वैश्विक मंच पर चीन का प्रभावी ढंग से मुकाबला किस तरह किया जाए।
ब्राजील से लेकर दक्षिण अफ़्रीका तक के G-20 के साथी देशों ने उस नई दिल्ली घोषणा के अंतिम मसौदे को तैयार करने में भारत की सफलता की सराहना की है, जो विश्व नेताओं के भारतीय राजधानी में इकट्ठा होने से कुछ दिन पहले तक हमेशा की तरह अस्पष्ट बनी हुई थी। भारत के नेतृत्व में G-20 की अध्यक्षता के लिए सबसे कठिन हिस्सा न केवल यूक्रेन में रूस के युद्ध पर आम सहमति बनाना था, बल्कि अफ़्रीकी संघ को पूर्ण G-20 सदस्य के रूप में पदोन्नत करने और जलवायु परिवर्तन और ऋण पुनर्गठन, उभरते बाज़ारों की सर्वोच्च प्राथमिकतायें वाले मुद्दों पर कार्रवाई करने जैसे चुनौतीपूर्ण मुद्दे थे।
टाइम ने कहा है कि अंतिम नतीजे से यूक्रेन नाराज़ हो सकता है, जिसे इस शिखर सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया, लेकिन वह पिछले साल बाली में था और युद्ध की भाषा पर समझौता एक साल पहले इंडोनेशियाई द्वीप रिसॉर्ट में नेताओं द्वारा किए गए समझौते की तुलना में कमज़ोर था।
अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए संयुक्त विज्ञप्ति की कोई भी आलोचना, जो मूल रूप से बाली के समान थी, लेकिन ज़मीन पर बहुत कम प्रभाव डालती, मोदी को जीत दिलाने के लिए चुकाई जाने वाली एक छोटी सी ऐसी क़ीमत है, जो चीन की वैश्विक शक्ति के प्रभाव को कुंद करने में सक्षम एक उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को मज़बूत करती है। टाइम पत्रिका के कई लेखकों ने दिल्ली के G-20 शिखर सम्मेलन पर लिखे गये विशेष फीचर में इसी तरह के भाव को अभिव्यक्त किया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत में अपने प्रशासन के लिए चीन और रूस को अलग-थलग करने और अमेरिका के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था को एक बूस्टर शॉट प्रदान करने की सबसे अच्छी उम्मीद देखी है।
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि परिणाम से पता चलता है कि वाशिंगटन अंततः तथाकथित ग्लोबल साउथ की भाषा सीख रहा है, जिसका मुख्य मार्गदर्शक भारत है।
कार्नेगी एंडोमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस में दक्षिण एशिया कार्यक्रम के निदेशक मिलन वैष्णव ने कहा, कुछ टिप्पणीकारों ने रूस-यूक्रेन पर कमज़ोर भाषा को पश्चिमी ‘दबाव’ के संकेत के रूप में इंगित किया है।
“लेकिन इसे देखने का एक और तरीक़ा है: पश्चिम ने यह सुनिश्चित करने में भी निवेश किया है कि भारत को जीत मिले। सर्वसम्मति की कमी भारत के लिए बहुत बड़ी निराशा होती।”
G-20 के शिखर सम्मेलन की गतिशीलता अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके आधिकारिक आवास पर देर रात हुई बैठक से सबसे अच्छी तरह चित्रित हुई, जहां महत्वपूर्ण मुद्दों पर पहले ही चर्चा कर ली गयी।
“अगर कोई क्षण था, जिसने इस शिखर सम्मेलन की गतिशीलता को चित्रित किया, तो वह विकासशील देशों को अधिक वित्तपोषण प्रदान करने के व्हाइट हाउस के नेतृत्व वाले प्रयासों पर चर्चा करने के लिए शनिवार को बाइडेन की वह बैठक थी।”
बाइडेन सदस्य देशों के योगदान में वृद्धि के साथ विश्व बैंक के वित्त को व्यापक आधार देने का समर्थन कर रहे हैं, ताकि इस बहुपक्षीय संस्था को विकासशील देशों को संकट से उबारने में सक्षम बनाया जा सके, जिन्होंने दबाव के तौर-तरीक़ों के तहत चीन से ऋण प्राप्त किया।
अमेरिका ने इस उद्देश्य के लिए विश्व बैंक को 18.5 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त धनराशि देने का वादा किया है।
बाइडेन को विश्व बैंक के भारतीय-अमेरिकी अध्यक्ष अजय बंगा और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा और दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफ़ोसा, यानी ब्रिक्स समूह के प्रमुख सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ चित्रित किया गया था,जिसमें चीन और रूस नहीं था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस महीने की शुरुआत में उस ब्लॉक का विस्तार हुआ, जो सात उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के समूह के लिए एक चुनौती बन गया।