ऑटोमन साम्राज्य से लेकर इजरायल तक खून से सना है सिर्फ 41 किमी लंबे गजा पट्टी का इतिहास। हमास की ओर से इजरायल पर हमले के बाद Gaza Patti और इजरायल के बीच काफी तनाव हबढ़ गया है। इजरायल ने गजा पट्टी के हमले के बाद उसके खिलाफ करीब 3 लाख सैनिकों को तैनात कर दिया है। इरादा साफ है,इजरायल चाहता है कि हमास को गाजा पट्टी की सत्ता से बेदखल कर दिया जाए। वहीं, हमास के आतंकी अभी भी लगातार रॉकेट फायर कर रहे हैं।
गाजा से वियतनाम तक कई सुरंग
फलस्तीनी आतंकी गुट हमास के इजरायल पर किए गए भीषण हमले के बाद दोनों ही पक्षों में जोरदार लड़ाई जारी है। इजरायल जहां हमास की हर तरफ फैली सुरंगों को बंकर बस्टर बम से ,निशाना बना रहा है। वहीं हमास भी इजरायल पर रॉकेट की बारिश जारी रखे हुए है। अब तक इस लड़ाई में जहां इजरायल के 1200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। वहीं Gaza Patti में इजरायली फाइटर जेट के पलटवार से भी 1200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और 3 लाख 38 हजार लोगों को विस्थापित होना पड़ा है।
गाजा पर हमला इतना आसान नहीं
इजरायल के करीब 3 लाख सैनिक कभी भी गाजा पट्टी(Gaza Patti) में हमास के ठिकानों पर धावा बोल सकते हैं। इजरायल ने इसके लिए पूरी तैयारी कर ली है। करीब 20 लाख की आबादी वाले गाजा पट्टी के इतिहास पर नजर डालें तो यह तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के दौर से ही भयानक लड़ाइयों का गवाह रह चुका है।
गाजा ने एक अशांत अतीत का किया है सामना
गाजा भूमध्यसागरीय तट पर एक तटीय पट्टी है, जो प्राचीन व्यापार और समुद्री मार्गों के एक चौराहे के रूप में एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान रखती है। गाजा ने एक अशांत अतीत का सामना किया है। साल 1917 में तुर्क साम्राज्य के शासन से लेकर पिछली शताब्दी में ब्रिटिश, मिस्र और इजरायली सैन्य शासन तक चली हिंसा के फलस्वरूप आज फलस्तीनी लोगों का घर गाजा दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेल के रूप में तब्दील हो गया है। इजरायल और मिस्र ने इसके चारों ही ओर से कड़ी नाकेबंदी कर रखी है।
1948 में ब्रिटिश शासन का हुआ अंत
साल 1940 के दशक के अंत में जब फलस्तीन में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकरण कमजोर हुआ, तो यहूदी और अरब समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया। यह आखिरकार मई 1948 में नए-नए स्थापित यहूदी राज्य इजरायल और उसके मुस्लिम अरब पड़ोसियों के बीच एक पूर्ण युद्ध में बदल गया। इस संघर्ष ने हजारों फलस्तीनी लोगों को विस्थापित कर दिया। इससे वे गाजा पट्टी में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए। मिस्र की हमलावर सेना ने इस संकीर्ण तटीय पट्टी पर कब्जा कर लिया, जिससे गाजा की आबादी लगभग 200,000 हो गई।
करीब एक दशक तक मिस्र का नियंत्रण
मिस्र ने दो दशकों तक चले अपने सैन्य शासन के तहत गाजा पट्टी का प्रशासन किया। मिस्र ने फलस्तीनी लोगों को मिस्र में काम करने और अध्ययन करने की अनुमति दी। फलस्तीनी ‘फिदायिन’ जिनमें से कई शरणार्थी थे, उन्होंने इजरायल पर हमले किए, जिससे इजरायल को इसका जवाब देना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र ने संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) की स्थापना की, जो वर्तमान में गाजा पट्टी और अन्य क्षेत्रों में 16 लाख पंजीकृत फलस्तीनी शरणार्थियों को सेवाएं प्रदान करती है।
साल 1967 की लड़ाई के बाद इज़राइली कब्जा
साल 1967 के पश्चिम एशिया के संघर्ष के दौरान इजरायल ने गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया। उस समय, एक इजरायली जनगणना में गाजा की आबादी 394,000 दर्ज की गई थी, जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक शरणार्थी थे। मिस्र के तस्वीर से बाहर होने के साथ, गाजा के कई लोगों को इजरायल के विभिन्न उद्योगों में रोजगार मिला। इजरायली सेना इस क्षेत्र को प्रशासित करने और बाद के दशकों में निर्मित बस्तियों की रक्षा के लिए बनी रही, जो फलस्तीनी असंतोष का स्रोत बन गई।
1987 में फलस्तीनी विद्रोह और हमास का उदय
साल 1967 के युद्ध के दो दशक बाद, फलस्तीनी लोगों ने अपना पहला विद्रोह या इंतिफादा शुरू किया। यह आंदोलन दिसंबर 1987 में गाजा के जबालिया शरणार्थी शिविर में एक इजरायली ट्रक और फलस्तीनी श्रमिकों के बीच एक दुखद दुर्घटना के बाद शुरू हुआ। इस घटना के परिणामस्वरूप पथराव, हड़ताल और बंद हुए। जनता में इस गुस्से का फायदा उठाते हुए मिस्र स्थित मुस्लिम ब्रदरहुड ने हमास की स्थापना की, जो गाजा में स्थित एक सशस्त्र फलस्तीनी गुट है। यह यासर अराफात की धर्मनिरपेक्ष फतह पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है।
साल 1993 में ओस्लो समझौता
साल 1993 में एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे फलस्तीनी प्राधिकरण का निर्माण हुआ। इस अंतरिम समझौते के तहत, फलस्तीनी लोगों ने शुरू में गाजा और पश्चिम बैंक में जेरिको में सीमित नियंत्रण प्राप्त किया। ओस्लो प्रक्रिया ने फलस्तीनी प्राधिकरण को कुछ स्वायत्तता प्रदान की और पांच वर्षों के भीतर राज्य का दर्जा देने की कल्पना की। हालांकि, यह सोच अधूरी रह गई, सुरक्षा समझौतों और निरंतर इजरायली बस्तियों के निर्माण पर विवादों ने संबंधों को खराब कर दिया।
दूसरा फलस्तीनी विद्रोह साल 2000 में हुआ
वर्ष 2000 में, इजरायली-फलस्तीनी संबंध दूसरे इंतिफादा के फैलने के साथ और खराब हो गए। इसके बाद आत्मघाती बम विस्फोट, गोलीबारी, इजरायली हवाई हमले, विध्वंस और कर्फ्यू तक का गाजा गवाह बना। गाज़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा, फलस्तीनी आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक था और बाहरी दुनिया से उनका एकमात्र संपर्क था। इसे इजरायल या मिस्र द्वारा नियंत्रित नहीं किया गया था, को ध्वस्त कर दिया गया था। इज़रायल ने तस्करी रोकने के लिए गाजा के मछली पकड़ने के क्षेत्र को भी प्रतिबंधित कर दिया।
2005 में गाजा से इजरायलियों की वापसी
अगस्त 2005 में, इजरायल ने गाजा पट्टी से अपने सैनिकों और वहां बसने वालों को वापस ले लिया, जिससे प्रभावी रूप से इस क्षेत्र को बाहरी दुनिया से अलग कर दिया गया। फलस्तीनी लोगों ने इजरायल के खाली किए संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद एक ‘सुरंग अर्थव्यवस्था’ तब पनपी जब मिस्र में सुरंगें खोदी गईं। हालांकि, निकासी ने भी बस्ती-आधारित उद्योगों को समाप्त कर दिया, जिससे गाजा के लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ।
हमास स्थापित होने के बाद गाजा अलग-थलग पड़ गया
हमास ने साल 2006 में फलस्तीनी संसदीय चुनावों में एक आश्चर्यजनक जीत हासिल की। इसके बाद में हमास ने गाजा पट्टी पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। हमास ने राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रति वफादार बलों को सत्ता से हटा दिया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कई देशों ने हमास-नियंत्रित क्षेत्रों में सहायता रोक दी और इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया। इजरायल ने हजारों फलस्तीनी श्रमिकों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया और गाजा क्रॉसिंग के माध्यम से लोगों और सामानों की आवाजाही पर कड़े प्रतिबंध लगाए। इससे गाजा की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा।
अंतहीन संघर्ष की कहानी
इजरायल और फिलिस्तीनी उग्रवादी समूहों के बीच संघर्ष, हमलों और प्रतिशोध का चक्र शुरू हो गया जिससे गाजा पट्टी को बार-बार आर्थिक झटके लगे हैं। सबसे गंभीर झड़पों में से एक साल 2014 में हुई, जब हमास और अन्य समूहों ने इज़रायली शहरों में रॉकेट दागे। इसके बाद गाजा में विनाशकारी इज़रायली हवाई हमले हुए और तोपखाने से बमबारी हुई। अब ताजा हमलों के बाद इजरायल ने प्रण किया है कि वह हमास को सत्ता से उखाड़ फेकेगा। हमास की सैन्य ताकत को खत्म कर देगा। आने वाले दिनों में भीषण हिंसा देखने को मिल सकती है जिसके खाड़ी के अन्य देशों में भी फैलने की आशंका है।
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