पाकिस्तान में आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा (Gen Bajwa) का कार्यकाल खत्म हो रहा है और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की मुसीबतें बढ़ने की घंटी बज चुकी है। जनरल बाजवा (Gen Bajwa) ने अपने कार्यकाल के आखिरी पब्लिक एडरेस में कहा कि आर्मी को निशाना बनाए जाने की हद हो गई है। फौज के धैर्य की भी सीमा होती है। पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी आर्मी जनरल ने किसी सियासी नेता को खुलेआम धमकी दी है। ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान में जो(Gen Bajwa) के बाद जो आर्मी चीफ होगा वो इमरान खान के साथ सख्ती से पेश आने वाला है।
ऐसी आशंकाए इसलिए भी हैं कि अगले आर्मी चीफ की नियुक्ति में जनरल बाजवा (Gen Bajwa) का बड़ा हाथ है। पाकिस्तानी फौज के चीफ के तौर पर आखिरी संबोधन में जनरल बाजवा ने एक और खुलासा भी किया कि पाकिस्तानी सेना पाकिस्तान की सत्ता और सियासत में पूरा दखल रखती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसी साल फरवरी में पाकिस्तानी सेना ने सत्ता और सियासत में दखल से किनारा कर लिया है। बाजवा (Gen Bajwa) बोले कि अब फौज मुल्क की सीमाओं की रक्षा पर ध्यान देगी। सत्ता और सियासत में सीधा हस्तक्षेप नहीं करेगी।
पाकिस्तान में पहले भी कई जनरलों ने तमाम बड़ी बातें कहीं हैं। बाजवा की बातें उनसे कुछ अलग तो हैं लेकिन यह संभव नहीं कि सेना सत्ता से अपना दखल वापस ले ले। क्यों कि बकौल जनरल बाजवा पाकिस्तान की विदेश-वित्त और गृहनीति में सेना शामिल रहती है। पिछले 75 साल से पाकिस्तानी सेना का इतना बड़ा हस्तक्षेप एक दम खत्म हो जाएगा- ऐसा सोचना भी मुमकिन नहीं है। क्यों कि रिटायर होने के बाद सेना के जनरल अरबपति बन कर निकलते हैं। अगर सेना सत्ता में हस्तक्षेप बंद कर देंगे तो उनकी ऐयाशियां ही खत्म हो जाएंगी। जनरल बाजवा नैतिकता और संवैधानिकता की बातें खुद के लिए तो कर सकते हैं लेकिन आगे आने वाले जनरल भी उनके पद चिन्हों पर चलेंगे ऐसी संभावना बहुत कम है।
जनरल बाजवा ने अपने आखिरी संबोधन में बहुत सारा झूठ भी बोला। हालांकि उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों की तरह भारत के बारे में बारूद तो नहीं उगली लेकिन 1971 की जंग के बारे में अब तक का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक झूठ बोला। जनरल बाजवा ने कहा कि 1971 की जंग में मात्र 34 हजार पाकिस्तानी सैनिक बांग्लादेश में थे। जबकि तथ्यात्मक, दस्तावेजी सुबूत हैं कि लगभग एक लाख सैनिकों के साथ जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के सामने सरैंडर किया था।
बांग्लादेश और भारत की बातें छोड़ भी दें लेकिन उन्होंने खुद पाकिस्तान के बारे में बातें कहीं हैं वो इमरान के लिए खतरे घण्टी और उनके सियासत में आने के संकेत जरूर हैं। वैसे पाकिस्तान की फितरत रही है कि जिस प्रधानमंत्री ने अपने पसंदीदा जनरल को फौज का मुखिया बनाया उसी जनरल से प्रधान मंत्री को सत्ता से बेदखल किया और खुद सत्ता पर आसीन हो गए हैं।
जनरल जियाउल हक से लेकर बाजवा तक लगभग ऐसा ही देखा गया है। बाजवा इस मामले में अपवाद रहे कि वो सीधे सत्ता की कुर्सी पर काबिज नहीं हुए लेकिन सरकार पिंडी से ही चलती रही। जनरल बाजवा को नवाज शऱीफ लेकर आए थे। उन्हें पाकिस्तान छोड़कर जाना पड़ा और इमरान खान ने 23 जनरलों का भविष्य खाक में मिलाते हुए बाजवा को तीन साल का एक्सटेंशन दिया था। अब उन्हीं बाजवा ने इमरान खान को खुली धमकी दे डाली। हालांकि, बाजवा ने कहीं भी इमरान खान का नाम नहीं लिया, यह उनकी राजनीतिक और कूटनीतिक परिपक्वताका प्रदर्शन करती है। साथ ही यह भी बताती है कि जनरल बाजवा (Gen Bajwa) अपने पूर्ववर्तियो से ज्यादा खतरनाक हैं, सियासी भाषा में ज्यादा Shrewd हैं।