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IMF की चेतावनी- पाकिस्तान में भड़क सकते हैं भयंकर दंगे

IMF on Pakistan

IMF on Pakistan: कंगाली से कराह रहा पाकिस्तान इस वक्त कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि चीन के साथ पाकिस्तान की दोस्ती अपसगुन बन गई है। जिन भी देशों ने चीन के कर्ज जाल में फंसा है वो बर्बाद हो गए। इसमें से पाकिस्तान भी एक है। पाकिस्तान में इस वक्त आर्थिक बदहाली के साथ, आधा मुल्क पानी में डूबा हुआ है। पाकिस्तान में बाढ़ के चलते करोड़ों लोगों का घर पानी में डूब गया है। इसके साथ ही राजनीतिक उथल कूद भी खूब देखने को मिल रही है। इस बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF on Pakistan) ने कहा है कि, पाकिस्तान में भयंकर दंगा भड़क सकता है। दरअसल, इस सप्ताह की शुरुआत में पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF on Pakistan) ने छह अरब डॉलर के रुके हुए कार्यक्रम की सातवीं और आठवीं समीक्षा को मंजूरी दी थी। इस बीच आईएमएफ ने इस कर्ज के साथ पाकिस्तान के लिए एक गंभीर चेतावनी भी दी है। आईएमएफ ने कहा कि पाकिस्तान में महंगाई खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। ऐसे में यहां भयंकर दंगों की आशंका भी पैदा हो गई है।

IMF ने कहा कि, पाकिस्तान में अगस्त माह में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के रिकॉर्ड 27.3 प्रतिशत पर पहुंचने और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में उबाल से देश में सामाजिक विरोध औऱ अस्थिरता की स्थिति पैदा हो सकती है। 1975 के बाद महंगाई दर पहली बार इतनी ऊंचाई पर पहुंची है। नकदी संकट से जूझ रहे देश में यह स्थिति तब है जब खाद्य पदार्थों और अन्य वस्तुओं की कीमतों पर भीषण बाढ़ के प्रभाव का अभी आकलन किया जाना बाकी है।

IMF ने सातवीं और आठवीं समीक्षाओं के सारांश में कहा, खाद्य वस्तुओं और ईंधन की ऊंची कीमतें सामाजिक विरोध और अस्थिरता को भड़का सकती हैं। आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड ने इस सप्ताह की शुरुआत में पाकिस्तान के छह अरब डॉलर के रुके हुए कार्यक्रम की सातवीं और आठवीं समीक्षा को मंजूरी दी थी। इसके दो दिन बाद पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) को बुधवार को नकदी संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिए 1.16 अरब डॉलर की जमा मिली थी। वहीं, विस्तारित कोष सुविधा (EFF) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि, गंभीर घरेलू और बाहरी वातावरण को देखते हुए परिदृश्य और कार्यक्रम कियान्वयन को लेकर जोखिम ऊंचा बना हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, विरोध-प्रदर्शन के जोखिम के अलावा सामाजिक-राजनीतिक दबाव भी ऊंचा रहने की आशंका है। इसका नीति और सुधार कार्यान्वयन पर भी असर पड़ सकता है।