Imran Khan Niazi: सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद से बौखलाए इमरान खान हर दिन पाकिस्तानी मीडिया के फ्रंट पेज पर छाए रहते हैं। कभी आर्मी पर मुखानी हमला बोलकर तो, कभी सरकार पर आरोपों का बौछार कर छाए रहते हैं। खैर इन सबके बीच इमरान खान अपने एक रिश्ते को पूरी दुनिया से छिपाए फिरते हैं। इसके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है। इमरान खान (Imran Khan Niazi) भी इसपर कभी बात नहीं करते। दरअसल, आर्मी को लेकर दिये अपने बयानों के चलते भी वो चर्चा में छाए रहते हैं। अब हाल का ही बयान ले लें जिसमें उन्होंने कहा था कि, पाकिस्तान आर्मी के चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल बढ़ा देना चाहिए। जिसपर विवाद शुरू हो गया है। लेकिन, लोगों को क्या पता कि सेना से इमरान खान (Imran Khan Niazi) का पूराना रिश्ता है। दरअसल, वो एक ऐसे लेफ्टिनेंट जनरल के खानदान से आते हैं जिन्होंने भारत के सामने घुटने टेक दिए थे।
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इमरान खान के आगे का टाइटल पाकिस्तान में गाली
पाकिस्तान में नियाजी किसी गाली से कम नहीं है और इमरान खान इसी से ताल्लुक रखते हैं। बात 20 अगस्त 2018 की है जब इरमान खान ने कैबिनेट डिविजन को एक नोटिफिकेशन जारी कर निर्देश दिया था कि, उन्हें आधिकारिक संपर्क में इरमान खान से ही संबोधित किया जाए न कि उनके पूरे नाम इमरान अहमद खान नियाजी से बुलाया जाए। लेकिन, जब विरोधियों ने उनपर हमला करना शुरू किया तो वो इमरान खान को नियाजी कहने से खुद को नहीं रोक सके। अब यही इमरान खान इस साल मई में मियांवली की एक रैली में कहते हैं कि, उन्हें इमरान खान की जगह इमरान नियाजी बुलाया चाना चाहिए। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया था कि, “अगर देश के डकैत उन्हें इमरान नियाजी बुलाते हैं, तो उन्हें अच्छा लगेगा”।
नियाजी से ताल्लुक रखते हैं इमरान खान
नियाजी पाकिस्तान को हार का एहसास दिलाता है और साथ मुल्क में इसे एक गाली की तरह समझा जाता है। पठान का बच्चा कहने वाले इमरान खान नियाजी जनजाती से गहरा ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता इकरमुल्ला खान नियाजी एक इंजीनियर थे। यही वजह है कि इमरान खान ने नियाजी को छुपा दिया है।
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1971 की हार के बाद से नियाजी का मतलब हार
पाकिस्तान को भारत के सामने सन् 1971 की जंग में सरेंडर करना पड़ा था। उस वक्त लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी को 90,000 सैनिकों के साथ सरेंडर करना पड़ा था। उनके आत्मसमर्पण के बाद ‘पूर्वी पाकिस्तान’ पाकिस्तान से आजाद हो गया था। इसके बाद बांग्लादेश का गठन हुआ। पाकिस्तान में हार की जांच के लिए एक कमीशन बना था और इसमें जनरल नियाजी को दोषी ठहराया गया था। जनरल नियाजी ने कहा था कि वह फौज का एक छोटा सा हिस्सा थे और इसलिए ही उन्होंने यह फैसला लिया था। ले. जनरल आमीर अब्दुला खान नियाजी या जनरल नियाजी ने वही ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर’ साइन किया था जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान पर जीत का ऐलान कर दिया था। उन्हें भारत ने युद्ध बंदी बना लिया था। लेकिन, कुछ दिनों बाद रिहा भी कर दिया था। जंग के बाद नियाजी को पाकिस्तान सेना से हटाने के साथ ही उन्हें दिये जाने सारे फायदे यहां तक कि पेंशन तक रद्द कर दिया गया। इसी पराजय के बाद नियाजी शब्द हार का प्रतीक बन गया था, जो अबतक ये प्रथा चलती आ रही है।
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