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UNSC की स्थायी सदस्य के लिए भारत सबसे प्रबल दावेदार, ब्रिटेन ने किया पुरजोर समर्थन!

UNSC की स्थायी सदस्य के लिए भारत का ब्रिटेन ने किया समर्थन!

ब्रिटेन से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार कर स्थायी सीटों की संख्या बढाने की अपील की है। बता दें कि जुलाई के महीने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता ब्रिटेन के हाथ में है।ब्रिटेन की स्थायी प्रतिनिधि बारबरा वुडवर्ड ने सुरक्षा परिषद में सुधार लाने की बात कही है। उन्होंने भारत ,जापान,जर्मनी और ब्राजिल को सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में शामिल करने की बात कही है।

ब्रिटेन के स्थायी प्रतिनिधि बारबरा वुडवर्ड ने भारत,ब्राजील ,जर्मनी और जापान के साथ-साथ अफ्रीकी प्रतिनिधित्व को शामिल करने का आह्वान किया है। इसके लिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीटों में विस्तार करने के लिए अपील भी की है। संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत बारबरा वुडवर्ड की टिप्पणियां तब आईं जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र  के पत्रकारों को महीने के लिए सुरक्षा परिषद के काम के कार्यक्रम के बारे में जानकारी देनी थी।

वुडवर्ड ने पत्रकारों से जानकारी साझा करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार की दिशा में काम करने के लिए सबसे पहले परिषद के सीटों में इजाफा करना होगा,साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत, ब्राजील, जर्मनी ,जापान और अफ्रीकी प्रतिनिधित्व को शामिल करने के लिए स्थायी सीटों का विस्तार करना होगा।

क्यों किया भारत का समर्थन?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के जुलाई महीने के अध्यक्ष और ब्रिटेन के राजदूत वुहवर्ड ने कहा कि “जिन चार देशों को स्थायी सदस्याता का समर्थन हमने किया है,उनके पीछे हमारी हमारी सोच आंशिक रूप से भौगौलिक संतुलन से संबंधित थी।“ साथ ही उन्होंने कहा कि ब्राजील और भारत को शामिल करने से परिषद के भौगौलिक प्रतिनिधित्व में व्यापकता आएगी। इसके साथ ही वुडवर्ड ने उन देशों को भी इसमें करने पर जोर दिया जिनका प्रभाव 1945 में मूल सुरक्षा परिषद बनाए जाने के समय की तुलना में अधिक है।

पूरे मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि और राजदूत रुचिरा कम्बोज का कहना है कि “आईजीएन के ‘रोल-ओवर’ निर्णय को केवल एक नासमझ तकनीकी कवायद तक सीमित नहीं किया जा सकता।“ वहीं कांबोज ने कहा था, ‘हम इस तकनीकी निर्णय को एक ऐसी प्रक्रिया में जान फूंकने के एक और बर्बाद अवसर के रूप में देखते हैं, जिसने चार दशकों से अधिक समय में जीवन या विकास का कोई संकेत नहीं दिखाया।’