मोहम्मद अनस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिस्र की दो दिवसीय राजकीय यात्रा 1997 के बाद से किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली ऐसी आधिकारिक यात्रा है,जिसमें द्विपक्षीय भागीदारी के साथ-साथ लोगों का ध्यान धार्मिक तत्व ने भी अपनी ओर खींचा है। प्रधानमंत्री ने मिस्र के ग्रैंड मुफ़्ती शॉकी इब्राहिम अब्देल-करीम अल्लम से मुलाक़ात की और दार-अल-इफ़्ता में सूचना और प्रौद्योगिकी में उत्कृष्टता केंद्र की योजना कोलेकर प्रतिबद्धता जतायी।
दारुल इफ़्ता मिस्र के सामाजिक न्याय मंत्रालय के तहत इस्लामी क़ानूनी अनुसंधान के लिए मिस्र की एक सलाहकार संस्था है। इफ़्ता देश में इस्लाम की प्रैक्टिस से संबंधित मुद्दों पर फ़तवा (वकालत या सलाह) जारी करता है। मुफ़्ती भी सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति होते हैं।
कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि मोदी-मुफ़्ती की यह बैठक मुस्लिम जगत, विशेषकर पश्चिम एशिया में विदेश नीति के हितों को आगे बढ़ाते हुए इस्लाम पर “उदारवादी और शांति” की आवाज़ उठाने की भारत की सतत नीति को आगे बढ़ाती है।
अल्लम ने पिछले महीने भारत का दौरा किया था, जिसे अंतर्धार्मिक समझ को बढ़ावा देने के लिए एक यात्रा के रूप में वर्णित किया गया था। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के विभिन्न शहरों जैसे आगरा, अलीगढ़, जयपुर और हैदराबाद की भी यात्रा की थी और कई लोगों से मुलाक़ात की थी। वह छात्रों को संबोधित करने के लिए प्रसिद्ध अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भी गये थे।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि पीएम-मुफ़्ती बैठक में कट्टरपंथ और धार्मिक उग्रवाद के मुद्दे पर चर्चा हुई।
बागची ने इस बैठक का विवरण देते हुए कहा, “उन्होंने भारत और मिस्र के बीच मज़बूत सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंधों पर चर्चा की। यह चर्चा समाज में सामाजिक और धार्मिक सद्भाव और उग्रवाद और कट्टरपंथ का मुक़ाबला करने से संबंधित मुद्दों पर भी केंद्रित थी।”
अपने संबोधन में अल्लम ने भी स्पष्ट किया कि दोनों ने धार्मिक मामलों पर “सहयोग” पर चर्चा की है। उन्होंने समाज के सभी वर्गों के विकास के लिए भारत में “विवेकशील” नीतियां अपनाने के लिए पीएम मोदी की प्रशंसा भी की।
भारत-मिस्र संबंधों को स्पष्ट करते हुए मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक मोहम्मद सोलिमन ने डेली न्यूज़ मिस्र को बताया कि भारत और मिस्र आतंकवाद, क्षेत्रीय स्थिरता, समुद्री सुरक्षा और “वैश्विक (अव्यवस्था) व्यवस्था” जैसी आम चिंताओं पर रणनीतिक रूप से एकजुट हो रहे हैं। ”
🇪🇬🇮🇳 PM #Modi in Cairo after his landmark visit to Washington, making him the first PM to visit Cairo since 1997. From the prospective Tejas fighter jet deal to the allocation of an economic zone in the Suez Canal for India, #Egypt–#India relations are on a positive trajectory. pic.twitter.com/5oT42vqvMb
— Mohammed Soliman (@ThisIsSoliman) June 24, 2023
सोलिमन का यह भी कहना है कि भारत और मिस्र दोनों ही समकालीन समय में पश्चिमी प्रभुत्व वाली उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के ख़िलाफ़ ख़ुद को सभ्यतागत राज्यों के रूप में पेश कर रहे हैं। उन्होंने भारत-मिस्र संबंधों पर अपनी टिप्पणी में लिखा, “पश्चिमी प्रभुत्व वाली उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था।”
भारत-मिस्र के धार्मिक संबंध भी सदियों पुराने हैं। प्रसिद्ध अल अज़हर विश्वविद्यालय (मुसलमानों के बीच अल अज़हर शरीफ़ के नाम से लोकप्रिय) ने कई इस्लामी विद्वानों को पढ़ाया है। हर साल 100 से अधिक भारतीय छात्रों को अल अज़हर में प्रवेश मिलता है। यह संस्था दुनिया भर में मुस्लिम उम्माह को धार्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती है और ग्रैंड मुफ़्ती के कार्यालय से जारी फ़तवे तैयार करने में सहायता करती है।
Wishing my best to Br Hafiz Abdur Rahman, the outgoing president of Shibli National College, Azamgarh. Bhai has moved to Al Azhar University, Cairo for further studies. MashaAllah! pic.twitter.com/yqBiucBFt5
— Sharjeel Usmani (@SharjeelUsmani) May 4, 2023
अल अज़हर में अध्ययन करने वाले इस समय के सबसे प्रमुख मुसलमानों में से एक डॉ. ज़फ़रुल इस्लाम ख़ान हैं, जो दिवंगत मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान के बेटे हैं। इंडिया नैरेटिव से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और ग्रैंड मुफ़्ती के बीच मुलाक़ात को सिर्फ़ एक “कॉस्मेटिक आउटरीच” के रूप में देखा जाना चाहिए। “
उन्होंने यह भी बताया कि हाल के वर्षों में दारुल उलूम देवबंद जैसे विभिन्न भारतीय मदरसों में पढ़ाने के लिए मिस्र के शिक्षकों के आगमन को बलपूर्वक रोक दिया गया है, जो दर्शाता है कि सरकार ऐसे लोगों को संदेह की दृष्टि से देखती है। उन्होंने कहा, “यह ऐसे मदरसों का एक ख़ूबसूरत पहलू था, जहां विदेशी शिक्षक पढ़ाते थे।”
हालांकि, कुछ टिप्पणीकार प्रधानमंत्री की यात्रा को MENA क्षेत्र में भारत की विदेश नीति के आगे बढ़ाने के रूप में देखते हैं।
खाड़ी स्थित एक डिजिटल मीडिया आउटलेट से बात करते हुए पश्चिम एशिया के एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने कहा कि जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से भारत ने पश्चिम और अफ़्रीका में अपनी पहुंच का विस्तार किया है। यह MENA क्षेत्र में सबसे अधिक आबादी वाला देश भी है।
मिस्र इस क्षेत्र के शिखर पर है: इससे होकर अफ़्रीका के उत्तरपूर्वी कोने और एशिया के दक्षिणपश्चिम कोने के आर-पार हुआ जा सकता है।
विशेषज्ञ का कहना है, ”मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत ने अपनी विदेश नीति की पहुंच को व्यापक बनाने की कोशिश की है। भारत ने अफ़्रीकी महाद्वीप पर लगभग 20 नये मिशन खोले हैं।