जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की शुक्रवार को मौत हो गई है। दरअसल, उन्हें एक चुनावी सभा में गोली मार दी गई थी। जिसके बाद उनको इलाज के लिए हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन वह अपने जीवन की जंग हार गए और उनकी मौत हो गई। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दोस्त शिंजो की मौत की खबर सुनते ही पूरी तरह से टूट गए हैं। जहां अभी पीएम मोदी अभी अटल बिहारी वाजपेयी, एपीजे अब्दुल कलाम, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज की मौत से उभर भी नहीं पाए थे कि अब जापान के पीएम का यूं अचानक इस दुनिया को अलविदा कह देना मोदी जी को एक बहुत बड़ा धक्का है। इसी कड़ी में आज हम आपको भारत और जापान दोनों के नेताओं के बीच बिताये हुए कुछ बेहद खास पलों की झलकियां साझा कर रहे हैं,जो इस प्रकार है…
शिंजो आबे न सिर्फ जापान की एक महान विभूति थे, बल्कि विशाल व्यक्तित्व के धनी एक वैश्विक राजनेता थे। भारत-जापान की मित्रता के वे बहुत बड़े हिमायती थे। बहुत दुखद है कि अब वे हमारे बीच नहीं हैं। उनके असमय चले जाने से जहां जापान के साथ पूरी दुनिया ने एक बहुत बड़ा विजनरी लीडर खो दिया है, तो वहीं मैंने अपना एक प्रिय दोस्त…। आज उनके साथ बिताया हर पल मुझे याद आ रहा है। चाहे वो क्योटो में ‘तोज़ी टेंपल’ की यात्रा हो, शिंकासेन में साथ-साथ सफर का आनंद हो, अहमदाबाद में साबरमती आश्रम जाना हो, काशी में गंगा आरती का आध्यात्मिक अवसर हो या फिर टोक्यो की ‘टी सेरेमनी’, यादगार पलों की ये लिस्ट बहुत लंबी है। मैं उस क्षण को कभी भूल नहीं सकता , जब मुझे माउंट फूजी की तलहटी में में बसे बेहद ही खूबसूरत यामानाशी प्रीफेक्चर में उनके घर जाने का मौका मिला था। मैं इस सम्मान को सदा अपने हृदय में संजोकर रखूंगा।
शिंजो आबे और मेरे बीच सिर्फ औपचारिक रिश्ता नहीं था। 2007और 2012के बीच और फिर 2020के बाद, जब वे प्रधानमंत्री नहीं थे, तब भी हमारा व्यक्तिगत जुड़ाव हमेशा की तरह उतना ही मजबूत बना रहा। आबे सान से मिलना हमेशा ही मेरे लिए बहुत ज्ञानवर्धक, बहुत ही उत्साहित करने वाला होता था। उनके पास हमेशा नए आइडियाज का भंडार होता था। इसका दायरा गवर्नेंस और इकॉनॉमी से लेकर कल्चर और विदेश नीति तक बहुत ही व्यापक था। वे इन सभी मुद्दों की गहरी समझ रखते थे।उनकी बातों ने मुझे गुजरात के आर्थिक विकास को लेकर नई सोच के लिए प्रेरित किया। इतना ही नहीं, उनके सतत सहयोग से गुजरात और जापान के बीच वाइब्रेंट पार्टनरशिप के निर्माण को बड़ी ताकत मिली। भारत और जापान के बीच सामरिक साझेदारी को लेकर उनके साथ काम करना भी मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। इसके जरिए इस दिशा में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिला। पहले जहां दोनों देशों के आपसी रिश्ते केवल आर्थिक संबंध तक सीमित थे, वहीं आबे सान इसे व्यापक विस्तार देने के लिए आगे बढ़े। इससे दोनों देशों के बीच राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर न केवल तालमेल बढ़ा, बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा को भी नया बल मिला।
वे मानते थे कि भारत और जापान के आपसी रिश्तों की मजबूती, न सिर्फ दोनों देशों के लोगों, बल्कि पूरी दुनिया के हित में है। वे भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट के लिए दृढ़ थे, जबकि उनके देश के लिए ये काफी मुश्किल काम था। भारत में हाई स्पीड रेल के लिए हुए समझौते को बेहद उदार रखने में भी उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई। न्यू इंडिया तेजी से विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, तो उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जापान कंधे से कंधा मिलाकर हर कदम पर भारत के साथ खड़ा रहेगा। भारत की आजादी के बाद इस सबसे महत्वपूर्ण कालखंड में उनका यह योगदान बेहद अहम है। भारत -जापान संबंधों को मजबूती देने में उन्होंने ऐतिहासिक योगदान दिया, जिसके लिए वर्ष 2021में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
आबे सान को दुनियाभर की उथलपुथल और तेजी से हो रहे बदलावों की गहरी समझ थी। उनमें दूरदर्शिता भरी थी और यही वजह थी कि वे वैश्विक घटनाक्रमों का राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर होने वाला प्रभाव, पहले ही भांप लेते थे। ये समझ कि किन विकल्पों को चुनना है, किस तरह के स्पष्ट और साहसिक फैसले लेने हैं, समझौतों की बात हो या फिर अपने लोगों और दुनिया को साथ लेकर चलने की बात, उनकी बुद्धिमत्ता का हर कोई कायल था। उनकी दूरगामी नीतियों – आबेनॉमिक्स – ने जापानी अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत किया और अपने देश के लोगों में इनोवेशन और आंत्रप्रन्योरशिप की भावना को नई ऊर्जा दी।
उन्होंने जो मजबूत विरासत हम लोगों के लिए छोड़ी है, उसके लिए पूरी दुनिया हमेशा उनकी ऋणी रहेगी। उन्होंने पूरे विश्व में बदलती परिस्थितियों को न केवल सही समय पर पहचाना, बल्कि अपने नेतृत्व में उसके अनुरूप समाधान भी दिया। भारतीय संसद में वर्ष 2007के अपने संबोधन में उन्होंने इंडो-पेसिफिक क्षेत्र के उदय की नींव रखी, साथ ही ये विजन प्रस्तुत किया कि किस प्रकार ये क्षेत्र इस सदी में राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक रूप से पूरी दुनिया को एक नया आकार देने वाला है।इसके साथ ही वे इसकी रूपरेखा तैयार करने में भी आगे रहे। उन्होंने इसमें स्थायित्व और सुरक्षा के साथ शांत और समृद्ध भविष्य का एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें वे अटूट विश्वास रखते थे। ये उन मूल्यों पर आधारित था, जिसमें संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता सर्वोपरि थी। इसमें अंतर्राष्ट्रीय कानूनों-नियमों और बराबरी के स्तर पर शांतिपूर्ण वैश्विक संबंधों पर भी जोर था। इसमें आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर हर किसी के लिए समृद्धि के द्वार खोलने का अवसर था।
चाहे Quad हो या ASEAN के नेतृत्व वाला मंच, इंडो पेसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव हो या फिर एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर या Coalition for Disaster Resilient Infrastructure, उनके योगदान से इन सभी संगठनों को लाभ पहुंचा है। इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में उन्होंने घरेलू चुनौतियों और दुनियाभर के संदेहों को पीछे छोड़कर, शांतिपूर्ण तरीके से डिफेंस, कनेक्टिविटी, इंफ्रास्ट्रक्चर और सस्टेनेबिलिटी समेत जापान के सामरिक जुड़ाव में आमूलचूल परिवर्तन लाने का काम किया है। उनके इसी प्रयास के कारण यह पूरा क्षेत्र आज बहुत आशान्वित है और पूरा विश्व अपने भविष्य को लेकर कहीं अधिक आश्वस्त है।
मुझे इसी वर्ष मई में जापान यात्रा के दौरान आबे सान से मिलने का अवसर मिला। उन्होंने उसी समय जापान-इंडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष का पदभार संभाला था। उस समय भी वे अपने कार्यों को लेकर पहले की तरह ही उत्साहित थे, उनका करिश्माई व्यक्तित्व हर किसी को आकर्षित करने वाला था। उनकी हाजिरजवाबी देखते ही बनती थी। उनके पास भारत-जापान मैत्री को और मजबूत बनाने को लेकर कई नए आइडियाज थे। उस दिन जब मैं उनसे मिलकर निकला, तब यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि हमारी यह आखिरी मुलाकात होगी।
वह हमेशा अपनी आत्मीयता, बुद्धिमत्ता, व्यक्तित्व की गंभीरता, अपनी सादगी, अपनी मित्रता, अपने सुझावों, अपने मार्गदर्शन के लिए बहुत याद आएंगे। उनका जाना हम भारतीयों के लिए भी ठीक उसी प्रकार दुखी करने वाला है, मानो घर का कोई अपना चला गया हो। भारतीयों के प्रति उनकी जो प्रगाढ़ भावना थी, ऐसे में भारतवासियों का दुखी होना बहुत स्वभाविक है। वे अपने आखिरी समय तक अपने प्रिय मिशन में लगे रहे और लोगों को प्रेरित करते रहे। आज वे भले ही हमारे बीच में न हों, लेकिन उनकी विरासत हमें हमेशा उनकी याद दिलाएगी। मैं भारत के लोगों की तरफ से और अपनी ओर से जापान के लोगों को, विशेषकर श्रीमती अकी आबे और उनके परिवार के प्रति हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करता हूं।
ओम शांति!
साभार: narendramodi.in