अंतर्राष्ट्रीय

Nepal को चीन ने दिया धोखा, भारत ने लड़ा दी छाती, ऐसे होगी नेपाल की मदद

भारत और नेपाल के बीच दोस्ती बेहद ही गहरी है और समय-समय पर दोनों के बीच ये रिश्ता दिखता रहता है। चाहे नेपाल  (Nepal)में भूकंप आए या फिर बाढ़ या फिर कोई और प्राकृतिक आपदा भारत हमेशा मदद के लिए खड़ा रहता है। इसके साथ ही अन्य क्षेत्रों में नेपाल की भारत मदद करता है। नेपाल और चीन के बीच भी रिश्ता ठीक-ठाक है। हालांकि, चीन की हड़पने वाली मंसा के चलते नेपाल ड्रैगन से दूरी बनानी शुरू कर दी है। हाल ही में चीन ने नेपाल (Nepal) को ऐसा चोट दिया था कि उसकी भरपाई अब भारत कर रहा है। नेपाल की मदद के लिए भारत आगे आते हुए चीन के मना किए हुए प्रोजेक्ट को अपने हाथों में लिया है। जिसका नेपाल (Nepal) सरकार ने आभार जताया है।

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दरअसल, नेपाल की महत्वकांक्षी विद्युत परियोजना पश्चिमी सेती को अब भारत पूरा करने जा रहा है। नेपाल ने अपने देश के पश्चिमी हिस्से में पनबिजली संयंत्र लगाने के लिए भारतीय कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। इसी संयंत्र पर पहले चीन काम करने की योजना बना रहा था यहां तक चीन की एक कंपनी ने हस्ताक्षर भी कर दिए थे लेकिन, 2018 में वो पीछे हट गई थी। नेपाल में भारत की ओर से चलाई जा रही है पनबिजली के क्षेत्र में तीसरी परियोजना है।

इस सप्ताह काठमांडू में परियोजनाओं पर एक औपचारिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा बिजली क्षेत्र की साझेदारी के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया गया था, जिसमें नेपाल में परियोजनाओं में भारतीय बिजली की बड़ी कंपनियों की भागीदारी शामिल है। इससे जुड़े अधिकारियों के मुताबिक NHPC लिमिटेड ने एक सहमति पक्ष पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत कंपनी दो परियोजनाओं वेस्ट सेती (750 मेगावाट) और एसआर-6 (450 मेगावाट) के लिए संभाव्यता, पर्यावरणीय प्रभाव, डूब क्षेत्र और निर्माण लागत जैसे अध्ययन करेगी। दोनों परियोजनाओं की अनुमानित लागत 2.4 अरब डॉलर है। इससे पहले, दो अलग-अलग मौकों पर दो चीनी कंपनियां एमओयू पर हस्ताक्षर करने के बाद परियोजनाओं से हट गईं थीं।

बता दें कि, इससे पहले नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने NHPC के अध्ययन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी जिसके तहत 750 मेगावाट के वेस्ट सेती स्टोरेज हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और 450 मेगावाट के सेती रिवर-6 गाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को सुदूरपश्चिम प्रांत में बनाया जाना है। देउबा की ओर से कहा गया है कि, मेरी हालिया भारत यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मैं इस क्षेत्र में पारस्परिक रूप से लाभप्रद द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने की आवश्कता को रेखांकित करते हुए बिजली क्षेत्र में सहयोग पर एक विजन स्टेटमेंट पर सहमत हुए।

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मनमानी दर पर बिजली बेचना चाहता था ड्रैगन
चीन ने जिस भी देश में कदम रखा है उसे बरबाद कर के ही छोड़ा है। इसके पीछे कारण चीन की कर्ज नीती और उसकी मनमानी है। नेपाल में भी वो मनमानी दर पर बिजली बेचना चाहता और नेपाल उसके दबाव में नहीं आया जिसके चलते चीनी कंपनी ने इस परियोजना को छोड़ दिया। इससे पहले ऑस्ट्रेलिया भी दिलचस्पी दिखा चुका है। दरअसल, वेस्ट सेती परियोजना को चीन से पहले ऑस्ट्रेलिया ने लिया था लेकिन वो भी अलग हो गया। वेस्ट सेती प्रोजेक्ट को लेकर चीन और नेपाल के बीच कई मुद्दों पर विवाद हो चुका है। इसमें बिजली बनने के बाद उसकी खरीद दर प्रमुख थी। चीनी कंपनी ने नेपाल की ओर से बताए गए बिजली के दर को नाकाफी बताया था लेकिन, काठमांडू इसे उचित बता रहा था।

नेपाल को होगी अरबों की कमाई
भारत के इस कदम से नेपाल सरकार को अरबों की कमई होगी। देउबा ने नेपाल मेंबिजली बाजार को बढ़ावा देने के लिए भारत को धन्यवाद दिया। एक अनुमान के मुताबिक, इस परियोजना के पूरा होने के बाद नेपाल अपनी पूरी जलक्षमता का उपयोग करके भारत को बिजली बेचे तो वह 2030 में प्रति वर्ष 31,000 करोड़ रुपये तक कमा सकता है जो 2045 तक आगे बढ़गर प्रति वर्ष 1.069 लाख करोड़ रुपये तक जा सकता है।

आईएन ब्यूरो

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